212 212 212 212
1
दोस्तों के बिना ज़िन्दगी दोस्तो
इक कहानी उदासी भरी दोस्तो
2
बीच में फ़ासले ला के दौलत के क्यों
आज़माने लगी दोस्ती दोस्तो
3
हाथ में हाथ डाले खड़ी दोस्ती
गर्दिश-ए-दौराँ से लड़ के भी दोस्तो
4
कारवाँ अज़्म का रोके रुकता नहीं
राह चाहे हो मुश्किल भरी दोस्तो
5
हार बैठे हैं दिल कू-ए-उल्फ़त में हम
अब न खेलेंगे बाजी नई दोस्तो
6
सुब्ह होते ही बेहिस जहाँ के सितम
ढूँढ लेंगे हमारी गली दोस्तो
7
लब से कुछ भी नहीं कह सके थे मगर
फिर भी समझा था वो अनकही दोस्तो
8
दर्द सहते रहे अश्क बहते रहे
पर नहीं ला सके लब प सी दोस्तो
9
रात लम्बी भी थी और तारीक भी
जिससे 'निर्मल' बख़ूबी लड़ी दोस्तो
मौलिक व अप्रकाशित
रचना निर्मल
Comment
आ. रचना जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी बेहद शुक्रिय:।
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीया...बधाई
आदरणीय समर कबीर सर् आदाब। जी सर्, 'पर शिकायत किसी से न की दोस्तो' रख लेती हूँ। बेहद शुक्रिय: सर्।
'आह भी इक न उसने भरी दोस्तो'
इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'आह भी इक न हमने
भरी दोस्तो'
या
'पर शिकायत किसी से न की दोस्तो'
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