For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोच का सफ़र (लघुकथा )

जब मैं कल रात ड्यूटी से घर आई , तो महाभारत घर में पहले से ही हमेशा की तरह चल रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा कि जब घर वालों ने अपनी मर्जी से मेरी शादी की, मेरी राय तक नहीं पूछी गई l क्यूंकि मेरे जैसी जो पहले ही तीस पार कर चुकी होl उन से भला कौन राय लेता l मैं तो बोझ थी, जिसको निपटाना चाहा l जानलेवा बीमारी ने शादी के कुछ महीनों बाद ही उनको मुझसे जब दूर कर दिया। तब मुझे लगा, अब मुझे उस घर में एक अजनबी की तरह नहीं रहना चाहिए, मैं जल्दी से उनका बोझ कम करना चाहा। उनके जाने के बाद, मैं उस घर में अकेले कैसे रह सकती थी, उसके चाचा ने शादी की, अब वह मेरा बोझ कहाँ उठाएंगे, लेकिन मैं अपने घर वापस आने के बाद भी, घर में कड़वाहट भरे माहौल के कारण मुझे नौकरी करने के बाद भी रहना मुश्किल हो गया। मगर घर से बाहर निकलकर ही कोई जीवन की सच्चाई का सामना कर सकता है, मुझे अब इस बात का अहसास हो गया है, जैसे रोज घर में ऐसा माहौल चल रहा है, इस में अब रहना मुश्किल हो गया । तो आज मैंने घर छोड़ने का मन बना लिया है, काम के बाद घर आने की बजाय, मैंने कामकाजी महिलाओं के लिए बने क्वार्टरों की ओर अपने कदम बढ़ा दिएl 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 449

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on November 8, 2020 at 12:31pm

जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब, आपकी लघुकथा अभी समय चाहती है, बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई ।

Comment by मोहन बेगोवाल on November 5, 2020 at 9:34pm

  सोच का सफ़र

कल रात जब मैं ड्यूटी से घर आई, तो घर में पहले जैसी महाभारत चल रही थी l मुझे तो लगता है कि मैं तो यहाँ भी बिगानी बनी हूँ , ये मुझे समझ नहीं आ रही कि जब उन्होंने मेरी शादी अपनी मर्जी से कर दी, कब मेरे साथ वो चला बीमारी के साथ भी उसने शादी की जो जल्दी उसे ले गई l
मेरी कब राए ली थी, शादी करते वक्त, लेते भी क्यूँ, मैं पहले ही तीस पार कर चुकी थी l वह तो अपने बोझ को कम करना चाहते थेl
मैं भी उस घर में अकेले कैसे रहती, चाचे ने शादी की, अब वह मेरा बोझ कहाँ उठाता l यहाँ आ कर भी मैंने तल्ख़ माहौल कारण नौकरी कर लीl मगर घर से बाहर निकल कर ही जिंदगी की सचाई के रूबरू हुआ जा सकता है , मुझे ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ, आज मैंने घर छोड़ने का मन बना लिया है । और सुबह मैं नौकरी से घर की तरफ़ आने की जगह मेरे पाँव नौकरीसुदा औरतों के लिए बने क्वाटर की तरफ़ बढ़ गए l

Comment by Chetan Prakash on November 5, 2020 at 6:09pm

'सोच का सफर' शीर्षक के आलोक मे अच्छी लघु कथा कही जाएगी। परन्तु लघु कथा, क्षमा करें, सत्य के बोध जिस क्षण में घटित होता है उसको समर्पित होती है, न कि अनावश्यक वृतान्त को, आदरणीय मोहन बेनोवाल साहब । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service