दिल मेरा यह हाल देख घबराता है
शहर का अब मजदूरों से क्या नाता है।
खून पसीने से अपने था सींचा जिसको
बुरे दौर में दामन शहर छुड़ाता है।
आया संकट कोरोना का देश में जबसे
सड़कों पर लाचार मनुज दिख जाता है।
जिसने चमकाया शहरों को हो लथपथ
आज वही शहरों से फेंका जाता है।
देख दर्द होता है दिल में अब अवनीश
दुनियां को रचता क्या एक विधाता है।
मेहनत करने वाला क्यूँ दर दर भटके
क्यूँ नेता साहब सेठ ऐंठ दिखलाता…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on May 31, 2020 at 10:34pm — 4 Comments
एक मजदूर जननी एक मजबूत जननी
कितने आलसी हो चले हैं दिन
कितनी चुस्त हो चली हैं रातें
इधर खत्म से हो चले किस्से
उधर खत्म सी हो चली बातें
जानते थे दिन कि
अब क्यों हो चले है ऐसे
जानते थे दिन कि
कभी नहीं थे ऐसे ऐसे
सुनते थे कि दिन -दिन का फेर होता है
सुनते थे कि इंसाफ मे देर हो भी जाये
सुनते थे कि इंसाफ मे अंधेर नहीं होता है
पर दिन का एक नकाब…
Added by amita tiwari on May 31, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
Added by Anvita on May 31, 2020 at 3:49pm — 10 Comments
22 22 22 22
मैंने डिग्री हासिल की है
सब कहते हैं,नाक बची है।1
फेल अगर तुम हो जाओ, तो
लोग कहेंगे,नाक कटी है।2
गुस्से का इजहार हुआ तो,
यूं लगता है,नाक चढ़ी है।3
हो जाते जब लोग बड़े, सब
कहते,उनकी नाक बड़ी है।4
सर्दी - खांसी,नजला हो,तो
कहते,खुलकर नाक चली है।5
ऑक्सीजन से जीवन देती,
कहते,कितनी नाक भली है!6
'मौलिक व अप्रकाशित'
Added by Manan Kumar singh on May 31, 2020 at 10:58am — 5 Comments
(2122 1212 22/112)
शह्र में फ़िर बवाल है बाबा
ये नया द्रोहकाल है बाबा
एक तालाब अब नहीं दिखता
क्या यही नैनीताल है बाबा?
क्या इसे ही उरूज कहते हैं?
अस्ल में ये ज़वाल है बाबा
भूख हर रोज़ पूछ लेती है
रोटियों का सवाल है बाबा
आंख इतना बरस चुकी अब तो
आंसुओं का अकाल है बाबा
मैं अकेला ही लड़ पड़ा सबसे
देखकर वो निढाल है बाबा
क़ब्र के वास्ते जगह न रही
फावड़ा है…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on May 31, 2020 at 8:00am — 18 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
जिसके लिए स्वयं को यूँ पाषान कर गये
दो फूल उसके आपको भगवान कर गये।१।
**
कारण से कुछ के मस्जिदें बदनाम हो गयीं
मन्दिर को लोग कुछ यहाँ दूकान कर गये।२।
**
करता रहा था जानवर रखवाली रातभर
बरबाद दिन में खेत को इन्सान कर गये।३।
**
अपनी हुई न आज भी पतवार कश्तियाँ
क्या खूब दोस्ती यहाँ तूफान कर गये।४।
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दिखते नहीं दधीचि से परमार्थी सन्त अब
मरकर भी अपनी देह जो यूँ दान कर गये।५।
**
माटी भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2020 at 9:30am — 18 Comments
2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
अपने ही पापों से मन घबराता है
सीने में इक अपराधों का खाता है
लाचारी से कुछ भारी है मजबूरी
आँखों में ताकत है देख न पाता है
उसकी मजबूरी समझूँ या अपना दुख
गुलशन से सहरा में कोई आता है?
लाख कोशिशें कर के माना है हमनें
जो होना है आखिर वो हो जाता है
दिल मे कोई भीड़ सलामत है लेकिन
तेरा चेहरा साफ नहीं दिख पाता है
क्या जाने अफसाना है या सच कोई
आखिर में जो सच की जीत बताता है
ढलता है जब सूरज अपनी भी…
ContinueAdded by मनोज अहसास on May 29, 2020 at 12:35pm — 8 Comments
बह्र-फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फैलुन
मुँह अँधेरे वो चला आया मेरे घर कमबख्त
आ गई फिर से मुसीबत मेरे सर पर कमबख्त
इस समय खौफजदा लगती है दुनिया सारी
सबके सीने में समाया हुआ है डर कमबख्त
चाहता हूँ मैं उड़ूँ नील गगन मे लेकिन
साथ देते ही नहीं अब मेरे ये पर कमबख्त
बन के तूफान चला आया शहर के अन्दर
कर गया कितनों को बरबाद समन्दर कमबख्त
लाख चाहूँ मैं उसे मुट्ठी में कर लूँ लेकिन
दो कदम दूर ही रहता है मुकद्दर कमबख्त
वो भी कहता है कि…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on May 29, 2020 at 8:30am — 2 Comments
टिड्डियाँ
चीन नहीं जायेंगी
वह आयेंगी
तो सिर्फ भारत
क्योंकि वह जानती हैं
कि चीन में
बौद्ध धर्म आडंबर में है
और भारत में
आचरण है, संस्कार है
यहाँ अहिंसा
परम धर्म है
यहाँ आजादी है
अभिव्यक्ति की
भ्रमण की, निवास की
व्यवसाय की. समुदाय की
जो चीन में नहीं है
वे जानती हैं
चीन यदि जायेंगी
तो बच नहीं पाएंगी
आहार पाने की कोशिश में
आहार बन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2020 at 4:59pm — 4 Comments
जिन्दगी की डाँट खाकर भी सँभल पाये न हम
चाह कर भी यूँ पुराना पथ बदल पाये न हम।१।
**
एक संकट क्या उठा के साथ छूटा सबका ही
हाथ था सबने बढ़ाया किन्तु चल पाये न हम।२।
**
फर्क था इस जिन्दगी को जीने के अन्दाज में
आप सा छोटी खुशी पर यूँ उछल पाये न हम।३।
**
भूख तक तो ठीक था मुँह फेरकर सब चल दिये
लुट रही इन इज्जतों पर क्यों उबल पाये न हम।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2020 at 6:55am — 6 Comments
खेल लेने दो इन्हे यह बचपने की उम्र है
गेंद लेकर हाथ में जा दृष्टि गोटी पर टिकी
लक्ष्य का संधान कर , एकाग्रता की उम्र है
खेल.....
गोल घेरे को बना हैं धरा पर बैठे हुए
हाथ में कोड़ा लिए इक,सधे पग धरते हुए
इन्द्रियाँ मन में समाहित, साधना की उम्र है
खेल.....
टोलियों में जो परस्पर आमने और सामने
ज्यों लगे सीमा के रक्षक शस्त्र को हैं तानने
व्यूह रचना कर समर को जीतने की उम्र है
खेल.....
मौलिक…
ContinueAdded by Usha Awasthi on May 27, 2020 at 7:59pm — 6 Comments
22 22 22 22
कैसी आज करोना आई
करते है सब राम दुहाई।
आना जाना बंद हुआ है,
हम घर में रहते बतिआई!
दाढ़ी मूंछ बना लेते हैं
सिर के बाल करें अगुआई।
बंद पड़े सैलून यहां के
रोता फिरता अकलू नाई।
डर के मारे दुबके हैं सब
नाई कहता, 'आओ भाई!
मास्क लगाकर मैं रहता हूं
तुम क्योंकर जाते खिसियाई?
मुंह ढको,फिर आ जाओ जी,
घर जाओ तुम बाल कटाई।
एक दिवस की बात नहीं यह
आगे बढ़ती और लड़ाई।
झाड़ू पोंछा,बर्तन बासन,
अपना कर,अपनी…
Added by Manan Kumar singh on May 27, 2020 at 1:15pm — 7 Comments
कभी लड़ाई कभी खिचाई, कभी हँसी ठिठोली थी
कभी पढ़ाई कभी पिटाई, बच्चों की ये टोली थी
एक स्थान है जहाँ सभी हम, पढ़ने लिखने आते थे
बड़े प्यार से गुरु हमारे, हम सबको यहाँ पढ़ाते थे
कोई रटे है " क ख ग घ", कोई अंग्रेजी के बोल कहे
पढ़े पहाड़ा कोई यहां पर, कोई गुरु की डाँट सहे
एक यहां पर बहुत तेज़ था, दूजा बिलकुल ढीला था
एक ने पाठ याद कर लिया, दूजे का चेहरा पीला था
कमीज़ तंग थी यहाँ किसी की, पतलून किसी की ढीली…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 27, 2020 at 8:06am — 3 Comments
Added by रणवीर सिंह 'अनुपम' on May 26, 2020 at 10:37pm — 4 Comments
उफ़ ! क्या किया ये तुम ने, वफ़ा को भुला दिया,
उस शख़्स ए बावफ़ा को, कहो क्या सिला दिया।
जो ले के जाँ, हथेली पे, हरदम रहा खड़ा,
तुम ने उसी को, ज़ह्र का, प्याला पिला दिया।
अब क्या भला, किसी पे कोई, जाँ निसार दे,
जब अपने ख़ूँ ने, ख़ून का, रिश्ता भुला दिया।
गुलशन की जिस ने तेरे, सदा देखभाल की,
उस बाग़बां का तू ने, नशेमन जला दिया।
गर वो मिलेंगे हम से, कभी पूछ लेंगे हम,
क्यूँ ख़ाक़ में हमारा,…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 26, 2020 at 12:08pm — 16 Comments
छंद विधान [20 मात्रा,12,8 पर यति,अंत 122 से]
मन में हो शंका तो, खून जलाए।
ऐसे में रातों को, नींद न आए।।
बात अगर मन में जो, रखी दबाए।
अंदर ही अंदर वह, घुन सा खाए।। (1).
बुद्धि नष्ट क्रोधी की, क्रोध कराए।
क्रोधी ही अपनों से, बैर बढ़ाए।।
बात सही क्रोधी को,समझ न आए।
गर्त में पतन के भी, क्रोध गिराए।। (2).
ईर्ष्या से मानव की, बुद्धि नसाए।
ईर्ष्या ही मन में भी, क्रोध बढ़ाए।।
ईर्ष्या …
ContinueAdded by Hariom Shrivastava on May 25, 2020 at 8:00pm — 3 Comments
बह्र - मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन
221 2121 1221 212
अन्धों के गांव में भी कई बार ख्वामखाह
करती है रोज रोज वो ऋंगार ख्वामखाह
रिश्ता नहीं है कोई भी उससे तो दूर तक
मुजरिम का बन गया है तरफदार ख्वामखाह
फोकट में एक रोज की छुट्टी चली गई
इतवार को ही पड़ गया त्यौहार ख्वामखाह
नाटक में चाहते थे मिले राम ही का रोल
रावण का मत्थे मढ़ गया किरदार ख्वामखाह
ये बुद्ध की कबीर की चिश्ती की है जमीन
फिर आप भाँजते हैं क्यूँ तलवार ख्वामखाह
खबरे बढ़ा चढ़ा…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on May 25, 2020 at 5:07pm — 16 Comments
अपने जीवन काल में , देखी पहली ईद |
मोबाइल में कर रहा , मैं अपनों की दीद ||
बिन आमद के घट गयी , ईदी की तादाद |
फीका बच्चों को लगे , सेवइयों का स्वाद ||
कहे मौलवी ईद है , कैसी बिना नमाज़ |
रब रूठा तो क्या करें, कौन सुने आवाज़ ||
ख़ूब मचलती आस्तीं , हमकिनार हों यार |
लेकिन सब दूरी रखें , कोविड करे गुहार ||
ग्राहक का टोटा हुआ ,सूने हैं बाज़ार |
घर में सारे बंद हैं , ठंडा है व्यापार ||
चन्द जगह पर विश्व में , जबरन हुई नमाज़ |
जिए…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 25, 2020 at 2:30pm — 10 Comments
ईद कैसी आई है ! ये ईद कैसी आई है !
ख़ुश बशर कोई नहीं, ये ईद कैसी आई है !
जब नमाज़े - ईद ही, न हो, भला फिर ईद क्या,
मिट गये अरमांँ सभी, ये ईद कैसी आई है!
दे रहा कोरोना कितने, ज़ख़्म हर इन्सान को,
सब घरों में क़ैैद हैं, ये ईद कैसी आई है!
गर ख़ुदा नाराज़ हम से है, तो फिर क्या ईद है,
ख़ौफ़ में हर ज़िन्दगी, ये ईद कैसी आई है!
रंज ओ ग़म तारी है सब पे, सब परीशाँ हाल हैं,
फ़िक्र में रोज़ी की सब, ये ईद कैसी आई…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 25, 2020 at 6:00am — 9 Comments
(2122 1122 1122 22 /112 )
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आपने मुझ पे न हरचंद नज़रसानी की
फिर भी हसरत है मुझे इश्क़ में ज़िन्दानी की
**
दिल्लगी आपकी नज़रों में हँसी खेल मगर
मेरी नज़रों में है ये बात परेशानी की
**
मौत जब आएगी जन्नत के सफ़र की ख़ातिर
कुछ ज़रूरत न पड़ेगी सर-ओ-सामानी की
**
या ख़ुदा ऐसा कोई काम न हो मुझ से कभी
जो बने मेरे लिए वज्ह पशेमानी की
**
जिस तरह चाल वबा ने है चली दुनिया में
हर बशर के लिए है बात ये हैरानी…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 24, 2020 at 3:00pm — 4 Comments
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