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वो सुहाने दिन

कभी लड़ाई कभी खिचाई, कभी हँसी ठिठोली थी

कभी पढ़ाई कभी पिटाई, बच्चों की ये टोली थी

एक स्थान है जहाँ सभी हम, पढ़ने लिखने आते थे

बड़े प्यार से गुरु हमारे, हम सबको यहाँ पढ़ाते थे

कोई रटे है " क ख ग घ", कोई अंग्रेजी के बोल कहे

पढ़े पहाड़ा कोई यहां पर, कोई गुरु की डाँट सहे 

एक यहां पर बहुत तेज़ था, दूजा बिलकुल ढीला था

एक ने पाठ याद कर लिया, दूजे का चेहरा पीला था

 

कमीज़ तंग थी यहाँ किसी की, पतलून किसी की ढीली थी

किसी ने अपने फटे झोले को, अपने हाथों से सी ली थी

कपडे चमके यहाँ किसी के, किसी का बिलकुल मैला था

पन्नी था पास किसी के, और पास किसी के अच्छा थैला था

भले ना जाने एक दूजे को, यहां पर कोई गैर न था

गन्दे थे हर हाथ यहाँ पर, पर मन में कोई मैल न था

कोई किसी को पिछे छोड़े, आपस में ऐसी होर नहीं

भीड़ बहुत थी यहाँ पर लेकिन, कोलाहल थी शोर नहीं

 

मैं ऊंचा हूँ मैं अच्छा हूँ, ऐसी कोई बात नहीं

जीवन भर की यादें हैं ये, एक दो दिन का साथ नहीं

सबको साथ लेकर चलना, ऐसे ही भाव पनपते है

गुरुओं के मेहनत से ही, तब ऐसे चरित्र उभरते हैं

बात बात में हँसना रोना, अब याद बहुत ही आता है

खोया हुआ बचपन यारो, लौट कर कब यूं आता है

आज जो निकला पास से उसके, पैर वहीं पर  ठिठक गए

अपने बचपन की सब यादें , एक क्षण ही  सिमट गए

एक पते पर सारी खुशियाँ,हम को यु ही मिल पाएं 

थैला टाँगे कंधे पर हम,फिर, दौड़े, स्कूल पहुँच जाएं

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

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Comment by AMAN SINHA on May 28, 2020 at 9:03pm

श्रीमान राम साहब और कबीर साहब,

हौंसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद। 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 28, 2020 at 4:39pm

बचपन की यादे आपकी कविता पढ़कर ताजा हो गईंं। खूबसूरत कविता. के लिये बधाई

Comment by Samar kabeer on May 28, 2020 at 1:59pm

जनाब अमन सिन्हा जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

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