For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( ये नया द्रोहकाल है बाबा...)

(2122 1212 22/112)

शह्र में फ़िर बवाल है बाबा
ये नया द्रोहकाल है बाबा

एक तालाब अब नहीं दिखता
क्या यही नैनीताल है बाबा?

क्या इसे ही उरूज कहते हैं?
अस्ल में ये ज़वाल है बाबा

भूख हर रोज़ पूछ लेती है
रोटियों का सवाल है बाबा

आंख इतना बरस चुकी अब तो
आंसुओं का अकाल है बाबा

मैं अकेला ही लड़ पड़ा सबसे
देखकर वो निढाल है बाबा

क़ब्र के वास्ते जगह न रही

फावड़ा है कुदाल है बाबा

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1022

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on June 4, 2020 at 9:53pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.

सादर प्रणाम

बकौल दुश्यंत कुमार..

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं..

बस मुझे और कुछ नहीं कहना. आपका कमेंट बाक्स में दोबारा आना मेरे लिए गर्व की बात है.हार्दिक आभार बंधु.

Comment by सालिक गणवीर on June 4, 2020 at 9:53pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.

सादर प्रणाम

बकौल दुश्यंत कुमार..

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं..

बस मुझे और कुछ नहीं कहना. आपका कमेंट बाक्स में दोबारा आना मेरे लिए गर्व की बात है.हार्दिक आभार बंधु.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2020 at 10:26am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । मूल रूप से हिन्दी साहित्य में शब्दों को क्लिष्ट के साथ साथ बोलचाल के रूप में भी अपनाने को मान्यता है । यही हम हिन्दी भाषी गजल में भी अपना लेते हैं । मैं समझता हूँ कि उर्दू शब्दों की क्लिष्ठता में भी लचीलापन स्वीकार लेना चाहिए ।

Comment by सालिक गणवीर on June 4, 2020 at 10:13am
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'
सादर प्रणाम
मोहतरम इस बहस को विराम देना ही उचित होगा, इसलिये मैने विवादित शब्द हटा दिया है. किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरी मंशा नहीं है .रही बात हिन्दी उर्दू की,जनाब ये हमेशा बहस का मुद्दा रहा है. फ़ैज साहब किरन लिखते हैंं ,हम हिंदी में लिखने वाले किरण, आपने भी सहीह लिखा है ,मैं तो सही लिखता हूँ, कुछ लोग झूट लिखते हैं, हम लोग झूठ लिखते हैं. जनाब ,ऐसा करने से शब्द का अर्थ तो नहीं बदल जाता. कोई भी भाषा समृद्ध तभी होगी जब उसमें दूसरी भाषाओं के शब्दों का समावेश होगा.
Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 3, 2020 at 8:22pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, इस सुंदर ग़ज़ल पर बधाई क़ुबूल फ़रमाएँ। लेकिन ग़ज़ल पर चर्चा पढ़ कर मन विचलित हो उठा। मैं जितने अरसे से उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब के संपर्क में हूँ, ये देखा और अनुभव किया है कि वे नौ-मश्क़ शाइरों को ग़ज़ल की तालीम देने के लिए पूरी तरह समर्पित हैं, और जान-पहचान हो या न हो, सभी का मार्गदर्शन पूरे जज़्बे और ईमानदारी से करते हैं। किसी लफ़्ज़ का अगर वो दुरुस्त वज़न बताते हैं तो अपनी तसल्ली के लिए उस्ताद शाइरों के अशआर ढूँढे जा सकते हैं (लेकिन जितनी बार मैंने ऐसा किया है, ये पाया है कि वे हमेशा सहीह होते हैं)। और अगर असातिज़ा के अशआर आपको ग़लत सिद्ध करते हैं तो सहीह वज़न को तस्लीम करना चाहिए और सुधार करना चाहिए। बाक़ी "ख़याल" को लेकर तो कोई संदेह की गुंजाइश ही नहीं है कि इसका वज़न 121 है। इसमें हिंदी-उर्दू का सवाल तो पैदा ही नहीं होता। साहित्यकार की तो ज़िम्मेदारी है कि भाषा के बिगाड़ को रोके, तो अगर साहित्यकार ही सारे नियम छोड़-छाड़ के आम लोगों की भाषा को अपना लेगा तो नई पीढ़ी की रहनुमाई कौन करेगा? शब्दों के सही उच्चारण का क्या होगा? अब आम लोग तो 'ख़याल' को 'ख़्याल', 'ख्याल', 'खयाल', 'खियाल', 'खैयाल' और न जाने क्या-क्या कहते हैं। तो क्या इन सभी शब्दों को मान्यता दे दी जाए? हर लफ़्ज़ का एक सही उच्चारण तो होगा न साहिब? ये कुछ अशआर ढूँढें है आपके लिए, पुराने से लेकर आधुनिक शाइरों के, कृपया देखिये इनमें 'ख़याल' का वज़न क्या लिया गया है:

221 / 2121 / 1221 / 212
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में
'ग़ालिब' सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है
(मिर्ज़ा ग़ालिब)

221 / 2121 / 1221 / 212
उस का ख़याल चश्म से शब ख़्वाब ले गया
क़स्मे कि इश्क़ जी से मिरे ताब ले गया
(मीर तक़ी मीर)

1212 / 1122 / 1212 / 22
गुज़र गया वो ज़माना कहूँ तो किस से कहूँ
ख़याल दिल को मिरे सुब्ह ओ शाम किस का था
(दाग़ देहलवी)

221 / 2121 / 1221 / 212
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप
महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ मैं
(अब्दुल हमीद अदम)

221 / 2121 / 1221 / 212
शम-ए-नज़र ख़याल के अंजुम जिगर के दाग़
जितने चराग़ हैं तिरी महफ़िल से आए हैं
(फ़ैज़ अहमद फ़ैज़)

11212 / 11212 / 11212 / 11212
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
कई साल बाद मिले हैं हम तेरे नाम आज की शाम है
(बशीर बद्र)

Comment by सालिक गणवीर on June 3, 2020 at 7:14am

मोहतरम समर कबीर साहब

आदाब

जनाब, मैं समझता हूँ एक शब्द के लिए इतनी बहस उचित नहीं है. इसे क्या मैं इस शे'र को  ही ग़ज़ल से हटा देता हूँ. लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि जो शब्द हमारी बातचीत में शामिल हैं, उनका उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है. हम लोग हिंदी उर्दू के चक्कर में फंसे रहे तो किसी का भला नहीं होने वाला. बेहतर है,ग़ज़ल को ग़ज़ल ही रहने दिया जाए. वैसे भी वर्तमान मेंं ग़ज़ल  का अर्थ ही पूरी तरह बदल चुका है.

Comment by Samar kabeer on June 2, 2020 at 6:27pm

मोहतरम मैने गूगल भी किया तब ख़्याल लिखा.//

आपको यही बताना चाहता हूँ कि गूगल ने कई लोगों की नैया डुबोई है,इसके भरोसे न रहें, क्या आप किसी शाइर का शैर मिसाल में पेश कर सकते हैं जिसमें 'ख़्याल' 21 पर लिया गया हो? वैसे जानकारी देना मेरा काम है,मानना या न मानना आपकी मर्जी पर है ।

Comment by सालिक गणवीर on June 2, 2020 at 5:59pm

आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.

शब्दों के चयन में मैं बहुत सावधानी बरतता हूँ जनाब.मैं आपकी इस बबात से सहमत नहीं हूँ कि ख़याल और ख़्याल एक ही शब्द है.यहां मैं हिंदी या उर्दू की बात नहीं कर रहा हूँ, बल्कि जिस अर्थ के लिए इनका उपयोग होता है ,उसकी बात कर रहा हूँ .यथा

अपना ख़्याल रखना ...

साहिर साहब का मशहूर गाना..कभी कभी मेरे दिल मेंं ख़याल आता है.

अपने शैर में ख़्याल का इस्तेमाल इसलिए किया ताकि शैर बेबह्र न हो और अर्थ भी न बदले.

मोहतरम मैने गूगल भी किया तब ख़्याल लिखा.उस्ताद मोहतरम से गुजारिश है कि इसे अन्यथा न लिया जाए. सादर .आपका शागिर्द.

Comment by Samar kabeer on June 2, 2020 at 2:54pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।


'ये ग़रीबों का ख़्याल है बाबा'

इस मिसरे में 'ख़याल' शब्द को 21 पर लेना उचित नहीं,इसे 121 पर ही लेना दुरुस्त है ।

//ख़याल और ख़्याल दो भिन्न शब्द हैंं,आदरणीय, पहले का अर्थ कल्पना और दूजे का देखभाल होता है.// 

आपकी बात दुरुस्त नहीं है,"ख़याल" शब्द एक ही है,लेकिन इसके अर्थ भिन्न हैं, ये अरबी भाषा का शब्द है,अर्थ:-

1-तसव्वुर(कल्पना)वो सूरत जो आदमी बेदारी में तसव्वुर करे या ख़्वाब में देखे ।

2-फ़िक्र, अंदेशा ।

3-ध्यान ।

4-समझ,राय, मंशा,इरादा ।

5-तवज्जो,इलतिफ़ात ।

6-वह्म, गुमान ।

7-एक राग का नाम ।

8-मज़मून,पास,लिहाज़ ।

उम्मीद है आप समझ गए होंगे? मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by सालिक गणवीर on June 1, 2020 at 11:22pm
प्रिय रुपम
बहुत शुक्रिया ,बालक.ऐसे ही मिहनत करते रहो.बहुत ऊपर जाना है.
सस्नेह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service