Added by सतविन्द्र कुमार राणा on May 25, 2017 at 11:30pm — No Comments
वो मेरा अस्तित्व थे, मैं उनकी प्रतिछाप
खोए जब पदचिह्न तो, गूँज उठी यह थाप
गूँज उठी यह थाप, रहा संकल्प अधूरा
आखिर कैसे कौन करेगा उसको पूरा
इतना विस्तृत गहन रहा भावों का घेरा
जो उनका संकल्प, बना है अब वो मेरा
हाय! अबोला सब रहा, कह पाती सब काश
अब कह दूँ कैसे अकथ, तोड़ समय का पाश
तोड़ समय का पाश, धार को कैसे…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on May 25, 2017 at 8:00pm — 7 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on May 25, 2017 at 3:24pm — 11 Comments
Added by बसंत कुमार शर्मा on May 25, 2017 at 10:00am — 2 Comments
जब यहां खड़े हो रहे हैं
तुम्हारे साथ
मुझे नहीं पता क्या करना है
या कौन हूँ
खो गया और टूटा हुआ
आदमी
बाहर जोड़े अपने
हाथ
मुझे नहीं पता
कब बारी है
मुझे बहा दिया गया
आपके द्वारा
कुचला और टूटा भी
अब मुझे नहीं पता कि मैं कौन हूँ ...
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by narendrasinh chauhan on May 24, 2017 at 12:30pm — 3 Comments
Added by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2017 at 9:46am — 4 Comments
२१२२/११ २ २/२२ (११२)
.
तेरे सदमे से उबर जाऊँगा,
न उबर पाया तो मर जाऊँगा.
.
अपनी ही मौत का इल्ज़ाम हूँ मैं
क्यूँ किसी ग़ैर के सर जाऊँगा.
.
मेरी बेटी! तू मुझे “भौ” कर के
जब डरायेगी तो डर जाऊँगा.
.
बूँद रहमत की, फ़क़त एक ही बूँद
काश बरसे तो मैं तर जाऊँगा.
.
आती सदियों की तलब की ख़ातिर
जाम कुछ “नूर” से भर जाऊँगा.
.
निलेश "नूर"
.
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 23, 2017 at 7:00pm — 13 Comments
(2122-2122-2122-212)
पहले सूरज सा तपें खुद को ज़रा रोशन करें
फिर थमें मत फिर किसी को चाँद सा रोशन करें।
ये नहीं, कोई दिया बस इक दफ़ा रोशन करें
गर करें, बुझने पे उसको बारहा रोशन करें।
मेरी भी वो ही तमन्ना है जो सारे शह्र की
आप मेरे घर में आएं घर मेरा रोशन करें।
सामने है इक चराग़ और आप के हाथों में शमअ
आप किस उलझन में हैं जी?क्या हुआ? रोशन करें!
तीरगी के हैं नुमाइंदे सभी इस शह्र में
कौन है…
Added by Gurpreet Singh jammu on May 23, 2017 at 10:04am — 21 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on May 23, 2017 at 1:28am — 7 Comments
विश्वास ....
क्या है विश्वास
क्या वो आभास
जिसे हम
केवल महसूस कर सकते हैं
और गुजार देते हैं ज़िंदगी
सिर्फ़ इस यकीन पर कि
एक दिन तो
उसे हम स्पर्श कर लेंगे
छू लेंगे एक छलांग में
आसमान को
या
वो है विश्वास
जिसे हम जानते हुई भी
कि वो
चाहे कितना भी
हमारी साँसों के करीब क्यूँ न हो
छोड़ देगा
हमारा साथ
निकल जाएगा चुपके से
हमारे क़दमों के नीचे से
जैसे
ज़मीन होने का…
Added by Sushil Sarna on May 22, 2017 at 8:30pm — 2 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
छोड़कर हमको किसी की जिंदगानी हो गए
ख्वाब आँखों में सजे सब आसमानी हो गए
प्रेम की संभावनाएँ थीं बहुत उनसे, मगर,
जब मिलीं नजरें परस्पर,शब्द पानी हो गए
वो उगे थे जंगलों में नागफनियों की तरह,
आ गए दरबार में तो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 22, 2017 at 3:30pm — 16 Comments
Added by नाथ सोनांचली on May 22, 2017 at 12:30pm — 20 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 22, 2017 at 12:28pm — 1 Comment
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on May 22, 2017 at 9:00am — 17 Comments
2122 : 2122 212
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
वह जमीं पर आग यूँ बोता रहा
और चुप हो आसमां सोया रहा।1
आँधियों में उड़ गये बिरवे बहुत
साँस लेने का कहीं टोटा रहा।2
डुबकियाँ कोई लगाता है बहक
और कोई खा यहाँ गोता रहा।3
पर्वतों से झाँकती हैं रश्मियाँ
भोर का फिर भी यहाँ रोना रहा।4
हो…
Added by Manan Kumar singh on May 22, 2017 at 8:27am — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 22, 2017 at 7:45am — 6 Comments
1212 1122 1212 22 (ग़ज़ल कतआ से शुरू है )
किसी की आँख से अश्कों की आशनाई का
किसी जुबान से लफ़्ज़ों की बेवफाई का
सुखनवरों का हुनर है जो ये समझते हैं
भला क्या रिश्ता है कागज से रोशनाई का
जमीन बिछ गई आकाश बन गया कम्बल
बटा ग़िलाफ़ तलक माँ की उस रिजाई का
जहर भी पी गई मीरा जुनून-ए-उल्फत में
न होश था न उसे इल्म जग हँसाई का
लगाम लग गई उसके फिजूल खर्चों पर
गया जो पैसा…
ContinueAdded by rajesh kumari on May 21, 2017 at 3:30pm — 13 Comments
१२१२/११२२/१२१२/२२ (११२)
.
किसे गुरेज़ जो दो-चार झूठ बोले है,
मगर वो शख्स लगातार झूठ बोले है.
.
चली भी आ कि तुझे पार मैं लगा दूँगी,
हमारी नाव से मँझधार झूठ बोले है.
.
सवाल-ए-वस्ल पे करना यूँ हर दफ़ा इन्कार
ज़रूर मुझ से मेरा यार झूठ बोले है.
.
कहानी ख़ूब लिखी है ख़ुदा ने दुनिया की,
कि इस में जो भी है किरदार, झूठ बोले है.
.
पटकना रूह का ज़िन्दान-ए-जिस्म में माथा,
बिख़रना तय है प् दीवार झूठ बोले है.
.
निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 21, 2017 at 9:33am — 25 Comments
“छह महीने होने आए, डॉक्टर साहब माई की सेहत में कोई खास अंतर तो दिख नही रहा!”
आश्रम के संचालक ने अपने आश्रम के नियमित डॉक्टर से चिंता बांटी, जो अभी अभी सब मरीज़ों का रुटीन चेकअप करके आश्रम स्थित छोटे से कमरे में आकर बैठें थे जो कि उनका आश्रम में क्लिनिक था।
“हाँ, विलास बाबू! है तो चिंता की बात, इतनी ऊँचाई से गिरी थी और उम्र भी है,आप खुद ही सोचिए।” डॉक्टर साहब में गोल-गोल शब्दों में स्पष्ट किया।
“हाँ आपने कहा तो था शहर ले जाने को, पर क्या करें हमारी विवशता है। वो तो आपका सहारा है…
Added by Seema Singh on May 21, 2017 at 9:00am — 6 Comments
Added by Mohammed Arif on May 21, 2017 at 7:54am — 15 Comments
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