२१२२ २१२२ २१२२ २१२
छोड़कर हमको किसी की जिंदगानी हो गए
ख्वाब आँखों में सजे सब आसमानी हो गए
प्रेम की संभावनाएँ थीं बहुत उनसे, मगर,
जब मिलीं नजरें परस्पर,शब्द पानी हो गए
वो उगे थे जंगलों में नागफनियों की तरह,
आ गए दरबार में तो रातरानी हो गए
सत्य का था बोलबाला, त्याग था, सद्भाव था,
आज के युग में सभी किस्से कहानी हो गए
चीज क्या है जिंदगी ये, जब समझ पाए जरा,
वो भी फानी हो गए, हम भी फानी हो गए
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया
आदरणीय Ravindra Pandey जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया
आदरणीय Ravindra Pandey जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया
आदरनीय बसंत भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।
waah......ham bhi fani ho gaye....
आदरणीय Gajendra shrotriya जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका, हौसला अफजाई के लिए
आदरणीय Anuraag Vashishth जी आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
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