For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहती नदी से पूछा मैंने
बहती रहती हो थमती नहीं

देख मुझको वो मुस्कायी
बोली कुछ पल कुछ भी नहीं ।

देख हंसी उसकी फिर पूछा मैंने
बोलो न क्यों तुम रूकती नहीं

देख मेरी उत्सुकता वह बोली
अरे मेरी भोली सी बहना

रुक गयी तो कैसे चलेगा
खेतों का गागर कैसे भरेगा

सागर से फिर कौन मिलेगा
हरियाली से कौन बतियाईएगा

इतराती नहीं नारी हूँ मैं भी
चंचल हिरणी , मनभावन हूँ मैं भी

टकरा जाती हूँ चट्टानों से
बादलों से करती हूँ मैं बातें

सूरज की तपिश को पी लेती
चाँद को निगल जाती हूँ मैं

देख मुझको पुकारता है सागर
प्यार से अपनी लेहरो से करता है बातें

तेज़ बहतीं हूँ कहीं निर्मल धारा हूँ
कहीं पर्वतों से दूध बरसाती

कहीं झरनों की धार बन जाती
हर रूप मेरा तुमको क्यों भाता

बोल बहना क्यों करती हो बातें
देख उसको मैं फिर बोली

बहती हुई जीवंत लगती हो
तुमसे जब जब करती हूँ बातें

लगता है तुम बहुत कुछ सिखाती हो
जीवन की ऊँची नीची डगर को

तुम बहुत अच्छे से समझती हो
अपनी गति से पार करती हो

जीवन हो तुम , सखी मानती हूँ
तुम नदी सही पर मेरी माँ हो ।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 755

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 22, 2017 at 8:21pm
धन्यवाद आदरणीय नरेंद्र जी
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 22, 2017 at 8:20pm
आदाब आदरणीय समर साहब,सादर धन्ययवाद
Comment by narendrasinh chauhan on May 22, 2017 at 5:20pm

सुन्दर रचना 

Comment by Samar kabeer on May 22, 2017 at 2:44pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,बहुत सुंदर कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 22, 2017 at 1:16pm
धन्यवाद आदरणीय आरिफ़ साहब।
Comment by Mohammed Arif on May 22, 2017 at 1:10pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, नदी को आधार और जीवनदायिनी बनाकर सहज , सरल और सरस कविता की बानगी पेश की आपने । नये बिम्ब और प्रतीकों की कमी महसूस हो रही है । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service