थकन भले ही देह में, किन्तु न माने हार
स्वर्ग श्रम से नित करे, वह नीरस संसार।१।
*
लहू देह से बन बहे, जिसके पलपल स्वेद
जग में बाँटे हर्ष जो, सब से लेकर खेद।२।
*
कर्मलीन जो हर समय, दिवस रात्रि में जाग
जगने देते पर नहीं, शोषक उस का भाग।३।
*
श्रम से उस के हो गये, चन्द लोग धनवान
जिसकी हालत को कहे, जग दोषी भगवान।४।
*
हिस्से में ले जी रहा, भले भूख मजदूर
गाली, लाठी, गोलियाँ, मिलें उसे भरपूर।५।
*
गुजर किया मजदूर ने,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2023 at 11:50am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
बातों में सिर्फ देश का उद्धार हो रहा
बाँकी स्वयं के वास्ते व्यापार हो रहा।१।
*
चमकेगी उनकी और सियासत पता उन्हें
बेवश युवा यहाँ का जो मिस्मार हो रहा।२।
*
कीमत बढ़े ही जा रही हर एक चीज की
निर्धन का जीना रोज ही दुश्वार हो रहा।३।
*
कुर्सी पे जब से बैठे हैं ईमानदार ढब
नेता वतन का और भी मक्कार हो रहा।४।
*
आँधी चली है देश में कैसी विकास की
लाचार अब तो और भी लाचार हो रहा।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2023 at 9:55pm — 2 Comments
उषा अवस्थी
क्षमाशीलता प्रेम की नदी बहे जिस गाँव
जिसको जो भी चाहिए, मिले वहीं उस ठाँव
करुणा औ वैराग्य का जिसमें जगा विवेक
जन्म उसी का इस धरा पर सार्थक,नि:शेष
जीवन अभिनय की विधा,चले श्रॄंखलाबद्ध
इच्छाओं , आशाओं की उलझन से सन्नद्ध
जिसने तोड़ी यह कड़ी , हुआ सत्य,उन्मुक्त
पार सभी सीमाओं से जाग्रत ,शुद्ध , प्रबुद्ध
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 28, 2023 at 10:00am — 1 Comment
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 27, 2023 at 9:03pm — 4 Comments
महावृक्ष बनकर लहराता
नफ़रत का पौधा
पत्ते हरे फूल केसरिया
लाल-लाल फल आते
प्यास लहू की लगती जिनको
आकर यहाँ बुझाते
सबसे ज्यादा फल खाने की…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 26, 2023 at 9:53am — 4 Comments
2122 2122 2122 212
हमने तो मुद्दत से उनका ख्वाब भी देखा नहीं
लग रहा है इस दिए में तेल अब ज्यादा नहीं
ज़िन्दगी का क्या भरोसा डगमगाते दौर में
आप तक ले जाये ऐसा तो कोई रस्ता नहीं
शायरी भी बोझ दिल का बन गयी है दोस्तो
वो कोई कैसे पढ़ेगा जो मैं लिख सकता नहीं
तुम अगर आ जाओ अब भी तो ही क्या हो जाएगा
मैं नहीं,तुम भी नहीं वो,वक़्त भी वैसा नहीं
एक सूरत लेकिन अब भी है मेरे उद्धार की
पर सिवा तेरे किसी में ध्यान भी…
Added by मनोज अहसास on April 25, 2023 at 11:43pm — 5 Comments
दोनों के ठहाकों की गूँज सुन एकत्र हुई भीड़ से आवाज आई, "मौन माहौल में ऐसी हँसी क्यूं, भाई?"
"खुद पर हँस रहा हूं।" पहले व्यक्ति ने जवाब दिया।
"कारण?" भीड़ ने जानना चाहा।
"अपने मत से मैंने ऐसी सरकार चुनी। मति मारी गई थी मेरी।"
"और तुम....?" दूसरे से सवाल हुआ।
"मैंने मत नहीं दिया था। खुश हूं।"
फिर भीड़ शराबियों की तलाश में आई पुलिस के पीछे दौड़ी जो एक अधनंगे भिखारी को नशाखोरी के आरोप में पकड़कर ले जाने लगी थी।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on April 25, 2023 at 1:53pm — 2 Comments
चार रुपये लिए थे, मेरे दादा ने कर्ज़ में
कल तक बाबा चुका रहे थे, ब्याज उसका फर्ज़ में
रकम बढ़ी फिर किश्त की, हर साल के अंत में
मूलधन खड़ा है अब भी, ब्याज दर के द्वंद में
चार बीघा ज़मीन थी, अपना खेत खलिहान था
हँसता खेलता घर हमारा, स्वर्ग के समान था
बाढ़ आयी सब तबाह हुआ, बाबा की हिम्मत टूट गयी
कल तक जो खिली हुई थी, किस्मत जैसे…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 23, 2023 at 8:32am — 2 Comments
दोहा मुक्तक
मन को जब मन में मिली , मन चाही पहचान ।
मन में जागे प्यार के, अनजाने तूफान ।
मन की मोहक कल्पना, मन के सुन्दर तीर -
मन ही मन मुस्का रहे, मन के सब अरमान ।
* * *
पागल इच्छा सो गई, स्वप्न हुए साकार ।
चातक नैनों को मिला, तृष्णा का उपहार ।
शापित अभिलाषा हुई, मन को मिला न मीत -
क्षीण बिम्ब सब हो गए, धधक पड़े शृंगार ।
सुशील सरना / 22-4-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 22, 2023 at 2:54pm — 2 Comments
212 212 212 212
मैं उसी मोड़ पर सोचता रह गया
वो गया याद का सिलसिला रह गया
उसके होंठो पे कुछ बात सी रह गयी
मेरे मन में भी कुछ अनकहा रह गया
देख कर सब मुझे बात करने लगे
हाय क्या शख़्स था और क्या रह गया
आज फिर आँखों में है नमी अज़नबी
आज फिर आइना ताकता रह गया
मिट गया प्यार मायूस नाकाम हो
प्यार का दर्द लेकिन बचा रह गया
कहकहों से भरी चाँद की महफ़िलें
इक चकोरा उसे टेरता रह गया
दोस्त दामन बचाकर बिछड़ते…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 21, 2023 at 8:00am — 2 Comments
Added by Usha Awasthi on April 19, 2023 at 10:22pm — 2 Comments
एक ताज़ा ग़ज़ल जो अधूरी लगती है
122 122 1212 122 122 1212
मेरे साथ लम्हें गुज़ार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?
मुझे इस भंवर से उबार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?
भले आज तुझसे मैं दूर हूँ, किसी बेबसी का सुरूर हूँ
मुझे फिर से दिल में उतार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?
मैं तेरी नज़र का करार था ,तेरे सूने मन की बहार था।
मुझे गौर से तो निहार ले ,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?
मुझे देख ले फिर उसी तरह,मेरे पास आजा किसी तरह
मुझे चाँद कह के पुकार ले,मुझे भूलने…
Added by मनोज अहसास on April 18, 2023 at 11:17pm — 2 Comments
बदलते मौसम-से बदल गए
बढाते हुए कदम और आगे बढ़ गए
कौन कहता है कि हरजाई हो
बदलना था तुमको और तुम बदल गए|
छूट गए गलियारे कितने ही!
रूठ गए सुखद पल उतने ही
अब बहार आये लगता नहीं है
क्यारियाँ महके लगता नहीं है|
नहीं! नहीं! कुछ अलग नहीं हुआ है
दुनिया का दस्तूर ही तो निभाया है
भावनाओं का कुचलना स्वाभाविक था
यूँ कदम-तले रौंद देना ही ठीक था |
खुश हैं गलियारे तुम्हारे करीब…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 17, 2023 at 6:35pm — No Comments
2122 1122 1122 22
उठ के चल राह में तू मेरी उजाले कर दे
या कि चुपचाप मुझे मेरे हवाले कर दे
तुझको पीना है मेरा खून अभी मुद्दत तक
मेरे हिस्से में भी दो चार निवाले कर दे
अपनी तकदीर से ज्यादा तुझे शक है मुझपर
मेरे पीछे तू कईं देखने वाले कर दे
ये भी मुमकिन है बदल दे मुझे रस्तों का मिजाज़
ये भी मुमकिन है तेरे पाँवों में छाले कर दे
तोड़ डाला है हवाओं ने भरम मेरा तो
कहीं ये दौर तेरे…
Added by मनोज अहसास on April 13, 2023 at 11:22pm — No Comments
उषा अवस्थी
सुबह सबेरे थैलियाँ लेकर निकलें आप
तोड़ पुष्प झोली भरें प्रभु-पूजा के काज
भगवन भूखे भाव के, न जानें यह मर्म
दूजों के श्रम की करें चोरी, नित्य अधर्म
माली से ले आज्ञा, गुरु के हित, सुखधाम
फुलवारी में जनक की, फूल चुने तब राम
मन्दिर में प्रभु को प्रसन्न करने के हित,भोर
गलियों - गलियों डोलते हैं प्रसून के चोर
पाले, पोसे , सींच कर बड़ा करे कोई और
नष्ट करें शाखाओं को खींच-खींच…
ContinueAdded by Usha Awasthi on April 13, 2023 at 5:58pm — 2 Comments
कोई हुस्न-परस्त जो अपने रब की बातें करता है
तिल की बातें करता है या लब की बातें करता है.
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दिल तो फिर भी धड़कन धड़कन सब की बातें करता है
ज़ह’न है साहूकार फ़क़त मतलब की बातें करता है.
.
लड़ते लड़ते दुश्मन से भी हो जाता है इश्क़ अजब
जुगनू भी अक्सर दीये से शब् की बातें करता है.
.
इक मुद्दत से यार! चलन से बाहर है ये लफ़्ज़-ए-वफ़ा
दिल नादान मुअर्रिख़ जैसा; कब की बातें करता है. मुअर्रिख़- इतिहास-कार…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2023 at 4:00pm — 6 Comments
दिल में जो मेरे ख़्वाब मुहब्बत के पल गए
इस ज़िन्दगी के सारे मआनी बदल गए
ग़ैरों में इतना दम कहाँ था मात दे सकें
अपने समर के बीच विभीषण निकल गए
आहों का मेरी उन प नहीं कुछ असर हुआ
सुन कर मगर उसे कई पत्थर पिघल गए
उसकी जुदाई में मेरी हालत को देख कर
यमराज के भी भेजे फ़रिश्ते दहल गए
दावा था जिनका साथ निभाएँगे उम्र भर
ग़ुर्बत में जीता देख के रस्ते बदल गए
उसको मैं बेवफ़ाई का दूँ दोष किस…
ContinueAdded by Ajay Kumar on April 11, 2023 at 8:48pm — No Comments
वो मुझसे दूर होती गई
और मैं देख्ता रहा चुपचाप
कुछ कर न सका
दुख की सीमा मत पूंछो
कितना कम्मपित था हृदय अरे
मन भीषण सन्ताप से पीडित था
कुछ कर न सका
कुछ कर न सका हे नाथ
वो मुझसे दूर होती गई
और मैं देख्ता रहा चुपचाप
मानव हृदय भी कैसा है
कुछ सोच रहा कुछ होता है
मानव हृदय भी कैसा है
कुछ सोच रहा कुछ होता है
बस में इसके कुछ भी तो नहीं
बस पडा पडा ये रोता है
वो दूर गई जाती ही रही…
Added by DR ARUN KUMAR SHASTRI on April 10, 2023 at 1:30am — No Comments
दोहा मुक्तक
नाम बदलने से कहाँ , खुलें भाग्य के द्वार ।
बिना कर्म संसार में, कब होता उद्धार ।
जब तक चलती जिन्दगी, चले जीव संग्राम -
जीवन के हर मोड़ का, हार जीत शृंगार ।
***
काहे अपने रूप पर, करता जीव गुमान ।
कहते हैं रहती नहीं, उम्र ढले पहचान ।
बुझ कर भी बुझती नहीं, अरमानों की आँच -
मुट्ठी भर की जिंदगी, तेरी है इंसान ।
सुशील सरना /
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 5, 2023 at 1:01pm — 2 Comments
22 22 22 22
जो सच का पैरोकार नहीं
वो काग़ज़ है अख़बार नहीं
बेशक मैं गुल का हार नहीं
पर नफ़रत का भण्डार नहीं
…
ContinueAdded by Ajay Kumar on April 4, 2023 at 9:00pm — 2 Comments
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