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अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

एक ताज़ा ग़ज़ल जो अधूरी लगती है

122 122 1212 122 122 1212
मेरे साथ लम्हें गुज़ार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?
मुझे इस भंवर से उबार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?

भले आज तुझसे मैं दूर हूँ, किसी बेबसी का सुरूर हूँ
मुझे फिर से दिल में उतार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?

मैं तेरी नज़र का करार था ,तेरे सूने मन की बहार था।
मुझे गौर से तो निहार ले ,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?

मुझे देख ले फिर उसी तरह,मेरे पास आजा किसी तरह
मुझे चाँद कह के पुकार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?

नहीं हो सका वो मिलन तो क्या,बुझी दिल से ग़म की अगन तो क्या?
सभी फैसलों को बिसार ले ,मुझे भूलने का सवाल क्यों?

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Comment by मनोज अहसास on June 22, 2023 at 8:00pm

आदरणीय नीलेश जी

ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

आप आये हौसला बढ़ गया मेरा

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 18, 2023 at 4:11pm

आ मनोज जी,

अभी विस्तृत टिप्पणी नहीं कर पा रहा हूं। संक्षेप में यह कि बहर 11212, 11212, 11212, 11212 के करीब है।

दूसरे, मुझे भूलने का ख़्याल क्यूं, यह आधा मिसरा पूरी ग़ज़ल में बढ़ा हुआ है। न भी होता तो भी ग़ज़ल पूरी हो जाती।

सादर

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