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उषा अवस्थी

सुबह सबेरे थैलियाँ लेकर निकलें आप

तोड़ पुष्प झोली भरें प्रभु-पूजा के काज

भगवन भूखे भाव के, न जानें यह मर्म

दूजों के श्रम की करें चोरी, नित्य अधर्म

माली से ले आज्ञा, गुरु के हित, सुखधाम

फुलवारी में जनक की, फूल चुने तब राम

मन्दिर में प्रभु को प्रसन्न करने के हित,भोर

गलियों - गलियों डोलते हैं प्रसून के चोर

पाले, पोसे , सींच कर बड़ा करे कोई और

नष्ट करें शाखाओं को खींच-खींच झकझोर

त्रेता, द्वापर युग रहे विपुल बगीचे , बाग़

हरियाली,"सौन्दर्य," की रक्षा करनी आज

डाली पर शोभा अतुल ,भरते नव उल्लास

कोमल,सुरभित सुमन, द्रुम का क्यों करते नाश?

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Usha Awasthi on April 30, 2023 at 1:24pm

आ0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, हार्दिक धन्यवाद आपका

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2023 at 11:13am

आ. ऊषा जी,  अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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