For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुश्तैनी कर्ज़

चार रुपये लिए थे, मेरे दादा ने कर्ज़ में

कल तक बाबा चुका रहे थे, ब्याज उसका फर्ज़ में

 

रकम बढ़ी फिर किश्त की, हर साल के अंत में

मूलधन खड़ा है अब भी, ब्याज दर के द्वंद में

 

चार बीघा ज़मीन थी, अपना खेत खलिहान था

हँसता खेलता घर हमारा, स्वर्ग के समान था

 

बाढ़ आयी सब तबाह हुआ, बाबा की हिम्मत टूट गयी

कल तक जो खिली हुई थी, किस्मत जैसे रूठ गयी

 

साहूकार ने हांथ बढ़ाया, सहयोग के नाम पर

कब से नज़र जमा रखी थी, उसने हमारी मकान पर

 

फसल उजड़ी बैल मरे, सबकुछ बाढ़ के भेंट चढ़ी

द्वार हमारे लेनदार की, लंबी सी कतार लगी

 

गहने बेचे माँ ने तन के, बर्तन बासन का दान लिया

दो बीघा ज़मीन को भी, कौड़ियों में नीलाम किया

 

बिन कागज के पैसे देकर, साहूकार ने एहसान किया

कई सालों में आखिर उसने, हमारा घर अपने नाम किया

 

दादा गुजरे बाबा गुजरे, मैं भी बूढ़ा होने को

मेरा बेटा बड़ा हुआ अब, कर्ज़ के बोझ को ढोने को

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

Views: 186

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AMAN SINHA on May 23, 2023 at 6:13pm
आदरणीय,
मैंने अभी अभी लिखना शुरू किया है, आपका मार्गदर्शन मेरे लिए बहुमुल्य है| सुधार करना तो एक अनवरत प्रक्रिया है, और मैं ऐसा करने से पीछे नहीं हटूंगा, यह मेरा आपसे वादा है|

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 16, 2023 at 12:17am

आदरणीय अमन सिन्हा जी, आपने पुश्तैनी क़र्ज़ की पीड़ा को बहुत मार्मिक ढंग से शाब्दिक किया है. भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. यह भी अवश्य है कि अपने भावों को शाब्दिक करने के क्रम में रचना के गठन पर भी ध्यान दिया जाये तो रचना में निखर आ जाता है और वह अधिक सम्प्रेषणीय और प्रभाव कारी हो जाती है. केवल द्वीपदी में लयहीन प्रस्तुति उन भावो का वैसा संचार नहीं कर पाती जैसा अपेक्षित होता है. आप ओबीओ मंच पर छंदों के जो पाठ उपलब्ध हैं उन्हें अवश्य देखिएगा. रचना में लयात्मकता कविता का गुण है. जैसे आपकी प्रस्तुति को यदि लयबद्ध किया जाये तो कुछ ऐसी होगी -

चार रुपये बस लिए कर्ज़ में सालों पहले दादा ने
अब तक उसका ब्याज चुकाते फ़र्ज़ समझकर बाबूजी

बढ़ती गई रकम किश्तों की, रहा मूलधन वैसा ही
दिन-पर-दिन बस ब्याज बढ़ा है, लगता सबकुछ पैसा ही
जमीं चार बीघा थी लेकिन, खुद की खेती करते थे
गल्ला घर में आता, लाते - खुशियाँ भर भर बाबूजी

बाढ़ तबाही लेकर आई, हिम्मत भी सारी टूटी
कल तक किस्मत साथ हमारे, फिर जैसे हमसे छूटी
साहूकार ने हाथ बढ़ाया, बस सहयोग जताया था
समझ न पाए उसकी नज़रों में अपना घर बाबूजी

फसलें उजड़ी, बैल मर गए, जीवन की निठुराई में
बर्तन बासन दान लिया, सब गहने बेचे माई ने
दो बीघा का पट्टा भी फिर भेंट चढ़ा नीलामी के
लम्बी कतारें लेनदारों की देखें दर पर बाबूजी

साहूकार ने खेल रचा था, बिन कागज़ देकर पैसे
घर को खुद के नाम लिखाकर, समझाया जैसे-तैसे
दादा बाबूजी जी तो गुजरे, मैं भी बूढ़ा होने को
मेरे बेटे, बोझ क़र्ज़ का जाते देकर बाबूजी

इन पंक्तियों में केवल आपके भावों को लयात्मकता दी है. एक बार विचार अवश्य कीजियेगा. सादर  

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
5 minutes ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
24 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
36 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
43 minutes ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
54 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
55 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय आजी भाई , ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"वाह वा , आदरणीय लक्ष्मण भाई बढ़िया ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय आजी भाई उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. सुरेन्द्र भाई "
2 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service