(2122 1212 22/122)
लोग घर के हों या कि बाहर के
प्यार करिएगा उनसे जी भर के
जाने क्या कह दिया है क़तरे ने
हौसले पस्त हैं समंदर के
जिस्म पर जब कोई निशाँ ही नहीं
कौन देखेगा ज़ख़्म अंदर के
दोस्ती उन से कर ली दरिया ने
जो थे दुश्मन कभी समंदर के
एक शीशे से ख़ौफ़ खाते हैं
लोग जो लग रहे थे पत्थर के
एक बस माँ को बाँट पाए नहीं
घर के टुकड़े हुए बराबर के
गरचे हर घर की है कहानी…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on August 2, 2020 at 3:30pm — 15 Comments
बह्रे मज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
221 / 2121 / 1221 / 212
मुहलत जो ग़म से पाई थी वो भी नहीं रही
इक आस जगमगाई थी वो भी नहीं रही [1]
देकर लहू जिगर का मसर्रत जो मुट्ठी भर
हिस्से में मेरे आई थी वो भी नहीं रही [2]
शाहाना तौर हम कभी अपना नहीं सके
आदत में जो गदाई थी वो भी नहीं रही [3]
दुनिया घिरी है चारों तरफ़ से बुराई में
बंदों में जो भलाई थी वो भी नहीं रही…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on August 2, 2020 at 3:25pm — 12 Comments
राखी
"अभी आ जाएगी तुम्हारी लालची बहन हमारा बजट ख़राब करने,क्या उसे नही पता? लोकडाउन के कारण हमारी आर्थिक हालत ठीक नहीं है? अब उसका बोझ भी उठाना पड़ेगा और राखी का उपहार भी देना पड़ेगा ,"भाभी मेरे भाई से कह रही थी।
"अरे मीनू ऐसे क्यों बोल रही हो? दीदी बहुत समझदार हैं ।इस बार उन्हें हम कोई घर में रखा कोई सूट या साड़ी दे देंगे।"
"मेरी बात ध्यान से सुन लो ! मैं अपना कोई सूट उन्हें नहीं देने वाली,वो मुझे अपने मायके से मिले हैं।" मेरा भाई लाचार सा खड़ा ये सब सुन रहा था। मैं दरवाजे…
Added by Madhu Passi 'महक' on August 2, 2020 at 3:16pm — 6 Comments
फिर कौवा पहचान लिया गया ', वृद्ध काक अपने साथियों से बोला।
' उस मूर्ख काक की दुर्दशा - कथा शुरू कैसे हुई?' काक मंडली ने सवाल उछाला।
' वही रंग का गुमान उसको ले डूबा।कोयल अपने सुमधुर सुर के चलते पूजी जाती।लोग उसे सुनने का जतन करते।यह देख वह ठिंगना कौवा कोयल बनने चला।रंग कोयल जैसा था ही।बस मौका देखकर कोयलों के समूह में शामिल हो गया। उनके साथ लगा रहता। उसे गुमान हो गया कि अब वह भी कोयल हो गया। वह अन्य कौवों को टेढ़ी नजर से देखता।'
'फिर क्या हुआ दद्दा?'…
Added by Manan Kumar singh on August 2, 2020 at 6:30am — No Comments
मुँह लटकाए बैठा है क्यूँ
हौंसला अपना बुलंद कर
गोर्वित वंश का वंशज है तू
निडर होकर आगे बढ़ ||
कदम चूमेगी मंजिल एक दिन
अनिश्चितता ना हृदय धर
कट जायेगी दुख की घड़ियाँ
इसकी ना तू चिंता कर ||
हर पल हर क्षण वक़्त बदलता
इसके संग तू खुद को बदल
कर्तव्य धर्म की पुजा कर
कर्मठता संग तू आगे बढ़ ||
स्वर्ण इतिहास है तेरे वंश का
उसकों तू ना कलंकित कर
समस्याओ से यदि टूट जाएगा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 1, 2020 at 1:30pm — 2 Comments
अनगिन हों सूरज दहकते हों तारे
पर साँसों में भी घुल जाए अँधियारा
तो कोई करे भी तो क्या करे
प्रहरी हों रक्षक पति ही पति हों
पर फांसी हो जाये निज साड़ी किनारा
तो कोई करे भी तो क्या करे …
ContinueAdded by amita tiwari on August 1, 2020 at 5:30am — 3 Comments
छोटी सी इस बात पर ,
हुजूर जरा गौर करें।
देश के लिए कुछ करना हो तो,
खुद से ही शुरुआत करें।।
ना सोचें कौन साथ देगा,
फर्ज अपना अदा करें।
देश के लिए,देश की खातिर,
खुद को ही अर्पण करें।।
हर जरूरतमंद के लिए ,
मसीहा बन खड़े रहें।
गर जरूरत आन पड़े तो,
जान भी कुरबां करें।।
देशभक्ति दिल में जगाकर,
खुद में परिवर्तन करें।
स्वदेशी को अपनाएं और
विदेशी का बहिष्कार…
ContinueAdded by Neeta Tayal on July 31, 2020 at 1:30pm — 2 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
तू अपने आप को अब मेरे रू ब रू कर दे
बहुत दिनों की मेरी पूरी आरज़ू कर दे
**
वबा के वार से दुश्वार हो गया जीना
ख़ुदाया अम्न को तारी तू चार सू कर दे
**
बता मैं दश्त में पानी कहाँ तलाश करूँ
चल अपनी चश्म के अश्कों से बा-वज़ू कर दे
**
ख़ुदा किसी को न औलाद ऐसी अब देना
जो वालिदेन की इज़्ज़त लहू लहू कर दे
**
मैं जानता हूँ सदाओं की भीड़…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 30, 2020 at 4:00pm — 6 Comments
बह्र- 2122 2122 2122 212
मीडिया की फ़ौज लेकर रह्म कब खाने गए
झोपड़ी में सिर्फ़ वे दिल अपने बहलाने गए
रेडियो से ही हुआ करती थी सुब्ह-ओ-शाम जब
दौर वह यारो गया और उसके दीवाने गए
नीम पीपल छाँछ लस्सी बाजरे की रोटियाँ
ज़िन्दगी से गाँव की ये सारे अफ़साने गए
जोड़ते थे जो दिलों को अपनी माटी से यहाँ
फ़ाग चैता और कजरी के वे सब गाने गए
पूछने पर लाल के माँ ने कहा पापा तेरे
ओढ़कर प्यारा तिरंगा चाँद को लाने…
Added by नाथ सोनांचली on July 30, 2020 at 11:16am — 13 Comments
2122 2122 2122 2122
इश्क बनता जा रहा व्यापार पानी गिर रहा है
हुस्न रस्ते में खड़ा लाचार पानी गिर रहा है
चंद जुगनू पूँछ पर बत्ती लगाकर सूर्य को ही
बेहयाई से रहे ललकार पानी गिर रहा है
टाँगकर झोला फ़कीरी का लबादा ओढ़कर अब
हो रहा खैरात का व्यापार पानी गिर रहा है
बाप दादों की कमाई को सरे नीलाम कर वह
खुद को साबित कर रहा हुँशियार पानी गिर रहा है
झूठ के लश्कर बुलंदी की तरफ बढ़ने लगे हैं
साँच की होने लगी…
Added by आशीष यादव on July 30, 2020 at 5:21am — 8 Comments
(2122 1122 1122 22/112)
उनके ख़्वाबों पे ख़यालात पे रोना आया
अब तो मत पूछिये किस बात पे रोना आया
देखता कौन भरी आँखों को बरसातों में
फिर से आई हुई बरसात पे रोना आया
आप चाहें तो जो दो दिन में सुधर सकते हैं
उन बिगड़ते हुए हालात पे रोना आया
मुद्दतों जिनके जवाबात को तरसा हूँ मैं
आज कुछ ऐसे सवालात पे रोना आया
मुझको मालूम था अंजाम यही होना है
जीत रोने से हुई मात पे रोना आया
दिन…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on July 29, 2020 at 12:00pm — 13 Comments
2122 2122 2122 212
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अपनी धुन में सब मगन हैं किससे क्या चर्चा करें.
किसको अपना दिल दिखायें किसके ग़म पूछा करें.
अब हमारी धडकनों का मोल कुछ लग जाये बस,
चल चलें मालिक के दर पर और कोई सौदा करें.
ज़िन्दगी इस खूबसूरत जाल में लिपटी रही,
रात में लिक्खें ग़ज़ल दिन में तुझे सोचा करें.
दे सके तो दे हमें वो वक़्त फिर मेरे ख़ुदा,
रात भर जागा करें और खत उन्हें लिक्खा करें.
सारा जीवन एक उलझन के भँवर में फँस…
ContinueAdded by मनोज अहसास on July 29, 2020 at 1:30am — 5 Comments
(221 2121 1221 212 )
अपने हिसार-ए-फ़िक्र से बाहर बशर निकल
दुनिया बदल गई है तू भी अब ज़रा बदल
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रफ़्तार अपनी वक़्त कभी थामता नहीं
अच्छा यही है वक़्त के माफ़िक तू दोस्त ढल
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पीछे रहा तो होंगी न दुश्वारियां ये कम
चाहे तरक़्क़ी गर तो ज़माने के साथ चल
**
रिश्ते निभाने के लिए है सब्र लाज़मी
रखना तुझे है गाम हर एक अब सँभल सँभल
**
तूफ़ान में चराग़ की मानन्द क्यों…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 27, 2020 at 10:30pm — 6 Comments
सुनो सखी इस सावन में तो झूलों पर भी रोक लगी
जिससे लगता नेह भरी सब साँसों पर भी रोक लगी।१।
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घिरघिर बदली कड़क दामिनी मन को हैं उकसाती पर
भरी उमंगों से यौवन की पींगों पर भी रोक लगी।२।
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कितने मास करोना का भय देगा कारावास हमें
मिलकर हम सब कैसे गायें गीतों पर भी रोक लगी।३।
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सूखी तीज बितायी सब ने कैसी होगी राखी रब
कोई कहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2020 at 1:15pm — 8 Comments
122 / 122 / 122 / 122
मक़ाम ऐसे चाहत में आने लगे हैं
अब उनके सितम दिल को भाने लगे हैं [1]
मज़े वस्ल में पहले आते थे जो सब
हमें अब वो फ़ुर्क़त में आने लगे हैं [2]
उन्हीं का तो ग़म हमने ग़ज़लों में ढाला
ये एहसाँ वो हम पर जताने लगे हैं [3]
नया जौर का सोचते हैं तरीक़ा
वो उँगली से ज़ुल्फ़ें घुमाने लगे हैं [4]
मुझे लोग दीवाना समझेंगे शायद
मेरे ख़त वो सबको सुनाने लगे हैं [5]
हुए इतने बेज़ार ज़ुल्मत से…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on July 27, 2020 at 9:59am — 13 Comments
1222 1222 122
यहाँ तनहाइयों में क्या रखा है
चलो भी गाँव में मेला लगा है
तुझे मैं आज पढ़ना चाहता हूँ
मिरी तक़दीर में अब क्या लिखा है
किनारे पर भी आकर डूब जाओ
नदी है,नाख़ुदा तो बह चुका है
निकलना चाहता है मुझसे आगे
मिरा साया मिरे पीछे पड़ा है
ज़रा आगे चलूँ या लौट जाऊँ
गली के मोड़ पर फिर मैक़दा है
उसी पर मर रहे हैं लोग सारे
जो अपने आप पर कब से फ़िदा है
सितारों चैन से…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on July 27, 2020 at 8:00am — 13 Comments
2122 / 1122 / 1122 / 22
उस अधूरी सी मुलाक़ात पे रोना आया
जो न कह पाए हर उस बात पे रोना आया [1]
दूरियों के थे जो क़ुर्बत के भी हो सकते थे
ऐसे खोए हुए लम्हात पे रोना आया [2]
दे गए जाते हुए वो जो ख़ज़ाना ग़म का
जाने क्यूँ उस हसीं सौग़ात पे रोना आया [3]
रो लिए उनके जवाबात पे हम जी भर के
फिर हमें अपने सवालात पे रोना आया [4]
आँख भर आई अचानक यूँ ही बैठे बैठे
क्या बताएँ तुम्हें किस बात पे रोना आया [5]
दिल तो…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on July 26, 2020 at 4:46pm — 11 Comments
लिव इन
सोनल और विकास शुरू से ही साथ पढ़े थे । दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी । ये दोस्ती कब प्यार में बदल गयी किसी को पता ही नहीं चला । रिद्धिमा और मनोज भी इन दोनों के दोस्त थे । कॉलेज में ये चारो हमेशा साथ साथ रहते थे । पढ़ाई पूरी करने के बाद रिद्धिमा और मनोज ने शादी कर ली । दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी बहुत खुशहाल थी । सोनल शुरू से ही आज़ाद ख्यालों वाली लड़की थी । उसे ज़िम्मेदरियों में बंधकर रहना बिलकुल पसंद नहीं था। संयोगवश सोनल और विकास को मुंबई में नौकरी मिल गई। अब विकास के घर वाले भी…
ContinueAdded by Madhu Passi 'महक' on July 24, 2020 at 1:00pm — 12 Comments
2122 1212 22
खुद को पा लेने की घड़ी होगी,
वो मयस्सर मुझे कभी होगी।
हाथ से हाथ को छू लेने से
दिल की सिलवट भी खुल गयी होगी।
याद लिपटी है उसकी चादर-सी,
देह लाज़िम मेरी तपी होगी।
उसके बिन मैं सँभल चुका हूँ अब,
मस्त उसकी भी कट रही होगी।
बोल ज्यादा मगर सभी मीठे,
आज भी वैसे बोलती होगी?
तब शरारत ढकी थी चुप्पी में,
आज भी उसको ढाँपती होगी।
दिल में कोई चुभन हुई मेरे,…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 24, 2020 at 12:00am — 4 Comments
बहुरूपिया - लघुकथा -----
"अरे अरे उधर देखो, वह कौन आ रहा है। कितना विचित्र पहनावा पहन रखा है। और तो और चेहरा भी तरह तरह के रंगो से बेतरतीब पोत रखा है।चलो उससे बात करते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया।"
"नहीं नहीं, पागल मत बनो। कोई मानसिक रोगी हुआ तो? पता नहीं क्या कर बैठे?"
"तुम तो सच में बहुत डरपोक हो सीमा|"
इतने में पास से गुजरते एक बुजुर्ग ने उन बालिकाओं का वार्तालाप सुना तो बोल पड़े,"डरो नहीं, ये हमारे मुल्क के बादशाह हैं। यह इनका देश की गतिविधियों को जाँचने परखने…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 23, 2020 at 6:16pm — 6 Comments
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