दृश्य देखकर वृद्धाश्रम का,
रूह मेरी सिहर उठी।
क्यूं उन निर्दयी औलाद ने,
फ़र्ज़ का गला घोंट दिया।।
लाड़ प्यार से पाला जिनको,
बच्चों पर सर्वस्व लूटा दिया।
क्यों ऐसी ममता के साए को
निर्दयी औलाद ने भुला दिया।।
क्यूं कदम नहीं लड़खड़ाए उसके,
जब ऐसा उसने कृत्य किया।
क्यूं भूल गया वो उनका एहसान,
जिसने उसको अपना नाम दिया।।
आँख के तारे को बूढ़ी आँखों का ,
क्यूं दर्द दिखाई नहीं दिया।
फर्ज निभाने के समय
क्यूं फ़र्ज़ से पल्ला झाड़…
Added by Neeta Tayal on August 28, 2020 at 8:31am — 3 Comments
छंद - मंदाक्रान्ता
(मातारा भानस नसल ताराज ताराज गागा = 17 वर्ण)यति =4,10,17
मेेले में ओ सहियर चलो आज जाए गुमेंगे,
आया है ये दिन लहरका मोज मस्ती करेंगे,
मेले की है रमझट बड़ी आ टहेले वहाँ पे,
खोजे मेरा प्रियतम मुझे ओ सखीरी चलो रे|
भागी भागी गुपचुप सखी मैं, बात कोई न जाने,
पानी का लें घट झपट से, लौटना जल्द माने,
मैंने लाई यह तुज लिए हा नयी ओढनी रे,
देखो कैसी तुम पर झझती ओढ ले ओढनी रे|
देखें मेला सहियर चलो ना रहे…
ContinueAdded by Mukulkumar Limbad on August 27, 2020 at 8:30pm — 3 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
फेंका जो होता आप ने पत्थर सधा हुआ
दिखता जरूर भेड़िया घायल गिरा हुआ।१।
**
हर बार अपनी चाल जो होती नहीं सफल
है दुश्मनों से आज भी कोई मिला हुआ।२।
**
स्वाधीन हो के भी कहाँ स्वाधीन हम हुए
फिरता न यूँ ही हाथ ले फदली कटा हुआ।३।
**
रोटी मिली न मुझको न तुझको खुशी मिली
ऐसी गजल से बोल तो किस का भला हुआ।४।
**
कल तक जो हँसता खेल के चिंगारियों से था
रोता है आज देख के निज घर जला हुआ।५।
**
मैं जुगनुओं को मुँह…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2020 at 7:17pm — 4 Comments
(12122)×4
ये ज़िंदगी का हसीन लमहा
गुजर गया फिर तो क्या करोगी
जो जिंदगी के इधर खड़ा है
उधर गया फिर तो क्या करोगी
तुम्हें सँवरने का हक दिया है
वो कोई पत्थर का तो नहीं है
लगाये फिरती हो जिसको ठोकर
बिखर गया फिर तो क्या करोगी
कि जिनकी शाखों पे तो गुमां है
मगर उन्हीं की जड़ों से नफरत
"वो आँधियों में उखड़ जड़ों से"
शज़र गया फिर तो क्या करोगी
जिसे अनायास कोसती हो
छिपाए बैठा है पीर…
ContinueAdded by आशीष यादव on August 25, 2020 at 2:30am — 6 Comments
छंद - तोटक
(सलगा सलगा सलगा सलगा = 12 वर्ण)
नभ बादल बादल आज यहाँ,
चमकार करे सुन वीज यहाँ,
नभ काजल काजल मेश हुआ,
दिलका दव ठार तु यही दुआ|
मृग-बादल आज महेर दया,
दिलसे बरसो अब छोड़ हया,
गजराज जरा गरजे नभमें,
वनराज फिरे फिरसे वनमें|
टपके जलबुंद हजार कहीं,
झमकार सुनो जलधार यही,
जल-चुंबन अंबर से बरसे,
पल ये पल को धरती तरसे|
मधु सोडम जो प्रसरी भुवने,
तन वो मन हाश भरे सुखमें,…
Added by Mukulkumar Limbad on August 24, 2020 at 11:30pm — 5 Comments
मेरा सीमित प्यार तुम्हे आयाम चाहिए
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 24, 2020 at 2:55pm — 4 Comments
अपनी माटी गांव छोड़,हम
माया नगरी आए थे..
अम्मा बाबू और बच्चों के
सपने संग में लाए थे।
हाँफ रहे बेजान शहर मे
जीवन हमने डाला था..
अपने श्रम सीकर से इसको
हरा भरा कर डाला था।
टैम्पो रिक्शा खींचा हमने
उद्योगों के पहिये घुमाए थे
रहे सदा झोपड़ी मे हम
पर कितने महल बनाए थे।
समय का पहिया ऐसे घूमा
सारे पहिए जाम हुए...
तुम अपने थे,फिर यों कैसे
निष्ठुर बन अनजान हुए।
एक बार तो कहते हमसे
रूको यहाँ मत जाओ…
Added by Sheela Sharma on August 24, 2020 at 10:00am — 3 Comments
पन्द्रह अगस्त फिर आया है
हमको यह याद दिलाने को,
स्वतंत्रता की खुशी मनाएं
पर ना भूलें बलिदानों को।
ये धरती, येअम्बर अब भी
साक्षी है उन दीवानों की,
सर्वस्व लुटाकर अमर हुए
आजादी के परवानों की।
ना सहन कर सके जो थे
भारत माता का बन्धन,
निज शीश चढ़ा आहुति में
करते थे राष्ट्र यज्ञ, वन्दन।
हम भूलें नहीं कभी भी
आजादी का वह नारा,
हम मिटें भले, लेकिन यह
लहराए तिरंगा प्यारा।
हम बंटे नहीं टुकड़ों में
यह शपथ हमें लेना है,
उन वीरों की यह…
Added by Sheela Sharma on August 24, 2020 at 9:30am — 2 Comments
खालीपन का भारीपन
नहीं मालूम, नहीं मालूम मुझको
मेरा यह अनुभव केवल मेरा ही है
या है यह हर किसी का
कहीं कुछ खो देने की पीड़ा से निवर्त होने का
अनवरत प्रारम्भिक प्रयास…
ContinueAdded by vijay nikore on August 24, 2020 at 7:30am — 4 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
1.
बहुत कुछ कह जाती हैं
कुछ
कहने से पहले
ये
ख़ामोश सी आँखें
............................
2.
गुंजित कर गईं
कितनी ही चुप सी दस्तकें
एक
जुगनू सी याद
.................................
3.
कब टूटा है
आसमान से चाँद
टूटते तो
तारे हैं
अतृप्त अभिलाषाओं के
आसमान से
दिल के
..............................
4.
करती रही बातें
बिस्तर पर
सोये सपनों से…
Added by Sushil Sarna on August 23, 2020 at 9:50pm — 6 Comments
2122 2122 212
रात क्या क्या गुनगुनाती रह गई
आपकी बस याद आती रह गई।1
सर्द मौसम हो गया कातिल बहुत
सांस अपनी सनसनाती रह गई।2
चांद में है दाग़,देखा आपने,
चांदनी यूं मुस्कुराती रह गई।3
सिलसिले सब याद में आते रहे
आरज़ू तो कुनमुनाती रह गई।4
गीत बनता लय पिरोकर,क्या कहूं?
बात दिल की ही लजाती रह गई।5
आंख हरदम जो बिछाती थी हवा,
इस दफा वह भाव खाती रह गई। 6
आशिया रौशन हुआ था बस…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on August 22, 2020 at 9:44pm — 6 Comments
झाँका , झाँका , देखो झाँका
चाँद हमारे अँगना
आने वाला है कोई
बाजे मेरा कँगना
हो, हो , हो , हो
झाँका, झाँका , देखो झाँका
सुहाना समां है
खुला आसमां है
करतीं ठिठोली
तारों की टोली
झूमे , झूमे , देखो झूमे
आज हमारे अँगना
आने....
बहे पुरवइया
डोले मन की नैया
मौसम की घड़ियाँ
जादू की छड़ियाँ
फेरें , फेरें , जादू फेरें
आज हमारे…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 21, 2020 at 11:35pm — 8 Comments
21.8.20
एकाकी मन........
झूठ है
एकांत में
सिर्फ एकांत होता है
एकाकी मन
वहीं शांत होता है
थक जाता है ये एकाकी मन
ज़िंदगी के जालों को
सुलझाते सुलझाते
अनकहे अहसासों को
दबाते दबाते
भावनाओं की गठरी को
उठाते उठाते
अंधेरों की स्याह चादर में
अपने ही साये
एकाकीपन की देह को
नोचते नज़र आते हैं
सच तो ये है
एकांत में अनचाहे बवंडर
एकाकी मन के
एकाकीपन को लील जाते हैं
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 21, 2020 at 7:47pm — 8 Comments
221 1221 1221 122
हर सम्त अंँधेरा है इसे दूर भगाओ
है कोई मुनव्वर तो मिरे सामने आओ
क़ातिल हो तो क़ातिल की तरह पेश भी आओ
घायल हूँ मिरे ज़ख़्म पे मरहम न लगाओ
कोई न उठाएगा यहाँ बोझ तुम्हारा
शानों को ज़रा और भी मजबूत बनाओ
कश्ती को सँभालो न रहो चूर नशे में
गर डूबना है डूबो हमें तो न डुबाओ
काँटों की तो तासीर है वो चुभते रहेंगे
तुम फूल हो ख़ुशबू की तरह फैलते जाओ
ऐसे भी वो करता है सर-ए-आम…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on August 21, 2020 at 12:00pm — 14 Comments
2122 2122 2122 212
शायरी अब क्या रूठेगी,सोचता हूं आजकल,
हो रही बुझती अंगीठी,सोचता हूं आजकल।1
शेर मुंहफट हो गए हैं,हर्फ लज्जित हो रहे,
शायरों की सांस फूली,सोचता हूं आजकल।2
मुंह चिढ़ातीं आज बहरें,खुल रहे हैं राज कुछ,
पिट रही कैसी मुनादी? सोचता हूं आजकल।3
राह अब अंधे दिखाते,झूठ ताना दे रहा,
हो रही सच की गवाही, सोचता हूं आजकल।4
शब्द सारे मौन लगते,अर्थ होता गौण है,
चल रही हैं गाली ' - ताली, सोचता हूं…
Added by Manan Kumar singh on August 21, 2020 at 9:30am — 12 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
शीशे को भी रखने वाले पत्थर लोगों नहीं रहे
यौवन के अब पहले जैसे तेवर लोगों नहीं रहे।१।
**
ढूँढा करते हैं गुलदस्ते तितली भौंरे आज यहाँ
काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।
**
केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब
ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।
**
एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया
रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।
**…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2020 at 9:00am — 10 Comments
2122 / 2122 / 2122 / 212
हो रही है दिल पे खट-खट मौत की दस्तक है क्या
जा रहे वापस या उसके क़दमों की ठक-ठक है क्या
फिर उठा है हर तरफ़ ये इक धुआँ सा आज क्यों
आग जिससे घर जला था बढ़ गई दिल तक है क्या
भूल बैठा है मुझे तू सुन के या अन्जान है
मेरी आहों की रसाई आज भी तुझ तक है क्या
गुम हुआ हूँ जबसे मैं उसके ख़याल-ओ-ख़्वाब में
बोलता हूँ जब भी कुछ ये सुनता हूंँ बक-बक है…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 20, 2020 at 6:06pm — 15 Comments
पढ़ी - लिखी जो गृहणियाँ
देखें निज परिवार
घर में बूढ़ी सास हैं
और श्वसुर लाचार
शिशु जिनके हैं पालने
सेवा की दरकार
आया पर छोड़ें नहीं
सहें स्वयं सब भार
गढ़ती हैं व्यक्तित्व वह
जिस विधि कोई कुम्हार
खोट सुधार सहन करें
चाहे विघ्न हजार
सदा करें निष्काम हो
सबके सुख की वृद्धि
प्रेम , हर्ष , ऐश्वर्य की
होती तभी समृद्धि
घर कुटुम्ब के हेतु जो
अपना सुख दे…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 19, 2020 at 7:24pm — 8 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
किसी की आँख का काँटा न तू होना गँवारा कर
किसी की आँख का तारा स्वयम् को हाँ बनाया कर।१।
**
ये जननी जन्म भूमि तो सभी को स्वर्ग से भी बढ़
गढ़ी हो नाल जिस भूमी उसे हर पल सँवारा कर।२।
**
उतर जाये तो जीवन ये रहे लायक न जीने के
उतरने दे न पानी निज न औरों का उतारा कर।३।
**
जो अपनी नींद सोता हो जो अपनी नींद जगता हो
उसी सा होने की जिद रख उसी को बस सराहा कर।४।
**
हँसी की बात लगती पर हँसी में मत उड़ा देना
अगर दाड़ी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 4:01pm — 3 Comments
सभी पंक्तियाँ 16-16 मात्राभार के क्रम में
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी
रोज सवेरे से सिर धुनते
शाम ढले तक याद संभाली
एक सिरा न हाथ में आया
टुकड़े टुकड़े रात खंगाली
आँगन ढूढ़ा कमरा ढूढ़ा
ढूढ़ लिए दालान अटारी
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी
देख पपीहे की अकुलाहट
आसमान में बादल आये
बुलबुल छेड़े खूब तराना
भँवरे फूलों पे मंडराये
तू भी कोयल बड़ी…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 18, 2020 at 11:00pm — 6 Comments
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1970
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