अपनी माटी गांव छोड़,हम
माया नगरी आए थे..
अम्मा बाबू और बच्चों के
सपने संग में लाए थे।
हाँफ रहे बेजान शहर मे
जीवन हमने डाला था..
अपने श्रम सीकर से इसको
हरा भरा कर डाला था।
टैम्पो रिक्शा खींचा हमने
उद्योगों के पहिये घुमाए थे
रहे सदा झोपड़ी मे हम
पर कितने महल बनाए थे।
समय का पहिया ऐसे घूमा
सारे पहिए जाम हुए...
तुम अपने थे,फिर यों कैसे
निष्ठुर बन अनजान हुए।
एक बार तो कहते हमसे
रूको यहाँ मत जाओ…
Posted on August 24, 2020 at 10:00am — 3 Comments
पन्द्रह अगस्त फिर आया है
हमको यह याद दिलाने को,
स्वतंत्रता की खुशी मनाएं
पर ना भूलें बलिदानों को।
ये धरती, येअम्बर अब भी
साक्षी है उन दीवानों की,
सर्वस्व लुटाकर अमर हुए
आजादी के परवानों की।
ना सहन कर सके जो थे
भारत माता का बन्धन,
निज शीश चढ़ा आहुति में
करते थे राष्ट्र यज्ञ, वन्दन।
हम भूलें नहीं कभी भी
आजादी का वह नारा,
हम मिटें भले, लेकिन यह
लहराए तिरंगा प्यारा।
हम बंटे नहीं टुकड़ों में
यह शपथ हमें लेना है,
उन वीरों की यह…
Posted on August 24, 2020 at 9:30am — 2 Comments
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