बह्र 2122-2122-2122-212
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दे रहा है ज़िस्म को जो दर कदम पर इक सिला।।
इक तेरी तस्वीर और अंतिम तिरा वो फैसला।।
खंडरों की शानों शौक़त दिन ब दिन बेहतर हुई।
जैसे पतझड़ कह रहा हो लौट मुझको मय पिला।।
बढ़ रहा हूँ कुछ कदम, हूँ कुछ कदम ठहरा हुआ।
बाद तेरे टूटने जुड़ने लगा है हौसला।।
ना कभी ओझल हुआ था,ना ही ओझल हो कभी।
इसमें है अहसासे उलफत ,इश्क का जो भी मिला।।
चल चलें कुछ दूर पैदल, दो कदम मंजिल बची ।
दो कदम…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 20, 2018 at 6:30pm — 8 Comments
212 212 212 212
शाख़ से टूट कर उड़ते पत्ते रहे ।
कुछ शजर जुल्म तूफाँ का सहते रहे ।।
घर हमारा रकीबों ने लूटा बहुत ।
और वह आईने में सँवरते रहे ।।
था तबस्सुम का अंदाज ही इस तरह ।
लोग कूंचे से उनके निकलते रहे ।।
देखकर जुल्फ को होश क्यों खो दिया ।
आपके तो इरादे बहकते रहे ।।
दिल लगाने से पहले तेरे हुस्न को ।
जागकर रात भर हम भी पढ़ते रहे ।।
यह मुहब्बत नहीं और क्या थी सनम ।
लफ्ज़ खामोश थे बात करते रहे ।।
कैसे कह दूं कि मुझसे…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 20, 2018 at 3:30pm — 2 Comments
2212 2212 2212 2212
ऐ चाँद अपनी बज़्म में तू रातभर छुपता रहा ।।
आखिर ख़ता क्या थी मेरी जो हुस्न पर पर्दा रहा ।।
कुछ आरजूएं थीं मेरी कुछ थी नफ़ासत हुस्न में ।
वो आशिकी का दौर था चेहरा कोई जँचता रहा ।।
मासूमियत पर दिल लुटा बैठा जो अपना फ़ख्र से ।
उस आदमी को देखिए अक्सर यहाँ तन्हा रहा ।।
रुकता नहीं है ये ज़माना लोग आगे बढ़ गए ।
मैं कुछ खयालातों को लेकर अब तलक ठहरा रहा ।।
था मुन्तजिर मैं आपके वादे को…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 20, 2018 at 3:00pm — 5 Comments
पुराने ज़माने की बात है ।
दो पङोसी देशों मे आपस सहयोग बढने लगा था । कहते हैं कि जब सहयोग बढता है तो परस्पर विश्वास जनम लेता है और विश्वास से प्रेम । प्रेम से मेल जोल बढता है और मेलजोल से खुशहाली आती है । लेकिन खुशहाल प्रजा भलीभांति शासित नही होती । क्योंकि खुशहाल व्यक्ति सम्पन्न होता है और समपन्न ही शक्तिशाली । फिर शक्तिशाली तो शासन ही करता है , उसे शासित नही किया जा सकता । गडरिया तो भेड़ों के झुंड को ही चराता है , कभी शेरों के झुंड को चराते किसी को देखा गया है क्या ?…
Added by Mirza Hafiz Baig on March 20, 2018 at 1:00pm — 6 Comments
एक राजा के राज्य मे जब प्रजा का असंतोष चरम पर पहुंच गया और साम्राज्य की रक्षा करना असंभव लगने लगा तो वह जंगल मे महात्मा की शरण मे जा पहुंचा ।
"महात्मा ! विकट परिस्थिति है । उपाय बताएं ।" राजा ने हाथ जोङकर महात्मा से विनती की ।
"उपाय तो आसान है राजन ।" महात्मा ने कहा "तेरे राज्य की कौनसी सीमा सबसे ज्यादा अशांत है ?"
"कोई नही ! मेरे तो सभी पङोसी राजाओं से मधुर संबंध है । इससे बाहरी आक्रमण से देश सुरक्षित रहता है ।" राजा ने उत्तर दिया ।
…
Added by Mirza Hafiz Baig on March 20, 2018 at 1:00pm — 9 Comments
बेबस-स्वर
जीवन के अन्त में
चित्त के नेपथ्य में
सृजन की थकन
बेहद उदास
मैं सोच रहा
तुम्हारा असीम विश्वास
आत्मा की…
ContinueAdded by vijay nikore on March 20, 2018 at 1:00pm — 10 Comments
मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन
11212 11212 11212 11212
जरा-सा छुआ था हवाओं ने, कि नदी की देह सिहर गयी
तभी धूप सुब्ह की गुनगुनी, उन्हीं सिहरनों पे उतर गयी
खिली सरसों फिर से कछार में, भरे रंग फिर से बहार में
घुली खुश्बू फिर से बयार में, कोई टीस फिर से उभर गयी
उसी एक पल में ही जी लिए, उसी एक पल में ही मर गए
वही एक पल मेरी सांस में, तेरी सांस जब थी ठहर गयी
जमी…
ContinueAdded by Ajay Tiwari on March 20, 2018 at 12:28pm — 9 Comments
मापनी 221 2121 1221 212
आँगन, वो’ छत, वो’ चाँद, सितारे कहाँ गए.
वो दिल की’ हसरतों के’ शरारे कहाँ गए.
निश्छल सरल वो’ प्रेम के’ किस्से पले जहाँ,
पनघट, नदी वो’ झील किनारे कहाँ गए.
आये थे’ जिन्दगी में दिखाने…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 20, 2018 at 9:13am — 16 Comments
20 मार्च "विश्व गौरैया दिवस" पर विशेष
याद आ रही है...
करीने से बँधी चोटियाँ
आँगन में खेलती बेटियाँ
गुड्डा-गुड़िया, गोटी-चिप्पी,
आइ-स्पाइस, छुआ-छुई
चंदा-चूड़ी, लँगड़ी-बिच्छी
याद आ रहा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2018 at 9:00am — 29 Comments
मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुम
सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था
ख़्वाबों में मेरे आपको आना ही नहीं था
बाग़ी है अगर तुझ से तो अब कैसी शिकायत
औलाद का हक़ तुझको दबाना ही नहीं था
वो होके पशेमान यही बोल रहे हैं
मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था
सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे
सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं था
बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे
फिर तुमको यहाँ शोर…
ContinueAdded by Samar kabeer on March 19, 2018 at 2:00pm — 37 Comments
2122 2122 212
धूप का विस्तार लगाकर सो गए
छांव सिरहाने दबाकर सो गए
oo
ज़िंदगी से थक-थका कर सो गए
वो चराग़-ए-जाँ बुझा कर सो गए
oo
गुफ़्तगू की दिल मे ख़्वाहिश थी मगर
वो मेरे ख़्वाबों में आकर सो गए
oo
तंग थी चादर तो हमने यूँ किया
पांव सीने से लगाकर सो गए
oo
उनकी नींदों पर निछावर मेरे ख़ाब
जो ज़माने को जगाकर सो गए
oo
बे-कसी में…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on March 18, 2018 at 11:00pm — 19 Comments
रामदीन |” अख़बार एक तरफ रखते हुए और चाय का घूंट भरते हुए पासवान बाबू ने आवाज़ लगाई
“जी बाबू जी |”
“मन बहुत भारी हो रहा है |दीपावली गुजरे भी छह महीने हो गए | सोचता हूँ दोनों बेटे बहुओं से मिल लिया जाए|---- ज़िन्दगी का क्या भरोसा !”
“ऐसा क्यों कहते हैं बाबूजी !हम तो रोज़ रामजी से यही प्रार्थना करते हैं की बाबूजी को लंबा और सुखी जीवन दे |”
“ये दुआ नहीं मुसीबत है |बुढ़ापा ---अकेलापन----तेरे माई जिंदा थी तब अलग बात थी पर अब ---“ वो गहरी साँस भरते हुए कहते हैं
“हम क्या…
ContinueAdded by somesh kumar on March 18, 2018 at 11:00pm — 8 Comments
यह वर्ष नया मंगलमय हो
कोंपल फूटी है तरुवर पर
नव पल्लव का निर्माण हुआ
टेसू की लाली उभरी है
पुलकित हर तन, हर प्राण हुआ
हर मन से बाहर हर भय हो
यह वर्ष नया मंगलमय हो।
गेंहूँ बाली पूरी होकर
अब लहर लहर लहराती है
सरसों पर पीला रंग चढ़ा
भवरों को यह ललचाती है
भँवरों के गीतों-सी लय हो
यह वर्ष नया मंगलमय हो।
जाड़े को विदा किया हमने
गर्मी को दिया बुलावा है
हर चीज नई-सी लगती है
जब साल नया यह आया…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 18, 2018 at 8:50am — 10 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
वो मेरी खामोशियों को हाँ म हाँ समझा किया
मुझको धरती और खुद को आसमाँ समझा किया
पहना जब तक सादगी और शर्म का मैंने लिबास
ये ज़माना यार मुझको नातवाँ समझा किया
उस कहानी के सभी किरदार उसको थे अज़ीज़
बस मेरे किरदार को ही रायगाँ समझा किया
जिस्म मेरा रूह मेरी जिस चमन पर थी निसार
वो फ़कत मुझको वहाँ का पासबाँ समझा किया
जिसकी दीवारों में माज़ी सांस लेता था कभी
यादों से भरपूर घर को वो…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 17, 2018 at 2:30pm — 18 Comments
आदित्य और नियति(शादी के पहले छह महीने )
खाना लगा दूँ ?” घर लौटे आदित्य से नियति ने पूछा
“दोस्तों के साथ बाहर खा लिया |”
“बता तो देते |” नियति ने मुँह गिराते हुए कहा
“कई बार तो कह चुका हूँ कि जब दोस्तों के साथ बाहर जाता हूँ तो खाने पर इंतजार मत किया करो |”आदित्य ने तेज़ आवाज़ में कहा
नियति की आँखों में आँसू आ गए आदित्य
“अच्छा बाबा सॉरी !अब प्लीज़ ये इमोशनल ड्रामा बंद करो |” आदित्य ने कान पकड़ते हुए कहा और नियति अपने आँसू पोछने लगी
रात को…
ContinueAdded by somesh kumar on March 17, 2018 at 11:25am — 4 Comments
एक समय था जब आनंदी लाल जी घंटों अख़बार पढ़ा करते थे । उम्र बढ़ने के साथ-साथ नेत्र ज्योति ने साथ छोड़ दिया । उन्हें अब अक्षर दिखाई नहीं देते । पोता चिण्टू सुबह की ताज़ा ख़बरें और अनमोल विचार रोज़ पढ़कर सुनाता है । वह दादा जी का सच्चा समाचार वाचक है । आज सुबह के सारे समाचार सुन लेने के बाद दादा जी बोले-" बेटा चिण्टू कोई अच्छा-सा अनमोल वचन सुनाओ ।" कुछ देर अख़बार के पन्ने पलटने के बाद चिण्टू बोला -" दादा जी ,व्हिक्टर ह्यूगो का बहुत बढ़िया विचार आया है वो सुनाता हूँ । सुनो ,"बुद्धिमान व्यक्ति बूढ़ा नहीं…
ContinueAdded by Mohammed Arif on March 17, 2018 at 8:30am — 20 Comments
22 22 22 2
खन खन करता कंगन है
साँसों में भी कम्पन है
मैं पत्थर हूँ राहों का
तू खुश्बू है चन्दन है
आहट है किन कदमों की
उर में कैसा स्पंदन है
आँखों ने क्या कह डाला
आकुल ये मन वंदन है
मन मन्दिर में आ जाओ
स्वागत है अभिनन्दन है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 17, 2018 at 8:30am — 20 Comments
बह्र:-2122-2122-2122-212
बढ़ गई जिस दौर रिश्तों की नमीं और दूरियां ।।
खुद-ब-खुद लेनी पड़ी खुद को खुद की सेल्फियां।।
जिसको समझा शान आखिर अब वो आ कर के खड़ा ।।
मुँह चिढ़ाता दौर मेरा ,खुद -जनी नाकामियां।।
नाम अब है गर्व का ,खुदग़रज ओऱ बे अदब।
झुकना अब न चाहता हैं नवजवां कोई मियां।।
देश के होने लगे जब मज़हबी हालात यूँ।।
राजनीतिक सेंकने लगते हैं अपनी रोटियां।।
रास्ता सबका अलग, अब बँट ही जाना है…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 11:56am — 5 Comments
अपाहिज - लघुकथा –
"अरे चन्दू भैया, यह क्या कर रहे हो? आपको देखकर तो हमको भी शर्म आ रहा है"?
"अब तू ही बता, शंकर, हम क्या करें?, इंजीनियरिंग की डिग्री लिये बैठे हैं। तीन साल हो गये, नौकरी खोजते खोजते। इंटर्व्यू में जाने के लिये भी पैसा नहीं है। उधारी भी अब कोई नहीं देता। माँ बापू से मांगने में भी शर्म लगता है"।
"चन्दू भैया, ऐसे भीख माँगने से कितना दिन तक गुजारा होगा"?
"आठ दस दिन में जो पैसा इकट्ठा होता है, उससे दो चार जगह इंटर्व्यू दे आते हैं। तू बता, कितने समय…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 16, 2018 at 11:10am — 8 Comments
सुझाव / इस्लाह आमंत्रित
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जब क़लम उठाता हूँ यह सवाल उठता है
क्यूँ ग़ज़ल कही जाए कब ग़ज़ल कही जाए?
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क्या अगर कोई तितली फूल पर जो मंडराए
टूट कर कोई पत्ता शाख़ से बिछड़ जाए
तोड़ कर सभी बन्धन पार कर हदों को जब
इक नदी उफ़न जाए, दौडकर समुन्दर की
बाँहों में समा जाए तब ग़ज़ल कही जाए?
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इक पुराने अल्बम से झाँक कर कोई चेहरा
तह के रक्खी यादों के ढेर को झंझोड़े और
इक किताब में बरसों से सहेजी पंखुड़ियाँ
यकबयक बिखर…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2018 at 8:30am — 11 Comments
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