Added by Rachna Bhatia on June 10, 2019 at 7:55pm — 5 Comments
"अरे महमूद भाई, कहाँ हो. आज सोसाइटी की मीटिंग में नहीं जाना क्या", रजनीश ने घर में कदम रखते हुए आवाज लगायी.
"आ रहे हैं भाई साहब, आजकल पता नहीं क्या हो गया है, ऑफिस से आने के बाद खामोश से रहते हैं", भाभीजान ने पानी का ग्लास रखते हुए कहा.
"कुछ परेशानी होगी ऑफिस की, मैं पूछता हूँ उससे. वैसे भी आजकल काम बहुत बढ़ गया है और तनाव भी", रजनीश ने सोफे पर बैठते हुए कहा और पानी का ग्लास उठा लिया.
"चाचू, मेरी चॉकलेट कहाँ है", कहते हुए छोटी आयी और रजनीश की गोद में चढ़ने लगी. रजनीश ने…
ContinueAdded by विनय कुमार on June 10, 2019 at 7:30pm — 6 Comments
“यार बड़ी दिक्कत है आजकल.”
“क्यों क्या हुआ.”
“रोज़ धर्म और देश भक्ति को लेकर बवाल हुआ करता है.”
“जब कुछ करने को न हो तब ऐसी छोटी-छोटी चीज़ें टाइम पास का अच्छा साधन होती हैं.”
“तुम्हारे कहने का मतलब जो कुछ भी आजकल हो रहा, सब टाइम पास है?”
“बिलकुल.”
“परसों जो लड़कों में मारपीट हुई, पुलिस ने लाठीचार्ज किया, मीडिया में बवाल मचा हुआ है, सब टाइम पास है?”
“बिलकुल है भाई. इसके अलावा इस बवाल का मतलब क्या है? तुम्हें कुछ सार्थकता दिखती है? नारे क्या देश…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on June 9, 2019 at 11:25pm — 8 Comments
सुबह का अखबार जैसे खून से सना हुआ था, इतनी वीभत्स खबर छपी थी जिसकी कल्पना करके ही दिमाग सुन्न हो जा रहा था. सामने चाय की प्याली रखी हुई थी लेकिन उसे पीने की इच्छा मर चुकी थी. उसने अपना सर पकड़ा और बिस्तर पर ही निढाल हो गयी.
"क्या हो गया है इस समाज को, अब और कितना नीचे गिरेंगे हम लोग?, उसके मुंह से बुदबुदाहट की शक्ल में आवाज निकली.
कुछ देर बाद कामवाली बाई आयी और उसने देखा कि चाय वैसे ही रखी है तो उसने टोका "मैडम, तबियत ठीक नहीं है क्या? मैं दूसरी चाय बना लाती हूँ और कोई दवा भी ला…
Added by विनय कुमार on June 9, 2019 at 11:16pm — 10 Comments
कैसे होते हैं फ़ना प्यार निभाने के लिए
छोड़ जाऊंगा नज़ीर ऐसी ज़माने के लिए
**
रूह का हुस्न जिसे दिखता वही आशिक़ है
जिस्म का हुस्न तो होता है लुभाने के लिए
**
दरमियाँ गाँठ दिलों के जो पड़ी कब सुलझी
कौन दीवार उठाता है गिराने के लिए
**
अच्छे लोगों की कमी रहती है क्या जन्नत में
क्यों ख़ुदा उनको है तैयार बुलाने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 8, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
शरणार्थी
(1)
---
दो मित्र आपस में बातें कर रहे थे;एक मानवतावादी था, दूसरा समाजवादी।पहले ने कहा-
अरे भई!वो भी आदमी हैं,परिस्थिति के मारे हुए।बेचारों को शरण देना पुण्य-परमार्थ का काम है।
दूसरा:हाँ तभी तक,जबतक यहाँ के लोगों को शरणार्थी बनने की नौबत न आ जाये।
(2)
---
-हाँ,जुझारूपन हमारे खून में है।
-हमारी खातिर तुम क्या करोगे?
-जान भी दे सकते हैं।
-हमें वोट चाहिए।जान…
Added by Manan Kumar singh on June 8, 2019 at 8:53am — 2 Comments
1-
तुलसी बाबा कह गए, परहित सरिस न धर्म।
परपीड़ा सम है नहीं, अधमाई का कर्म।।
अधमाई का कर्म, मर्म यह जिसने जाना।
उसको ही नरश्रेष्ठ, जगत ने भी है माना।।
जहाँ प्रेम सौहार्द, वहीं है काशी-काबा।
परहित सरिस न धर्म, कह गए तुलसी बाबा।।
2-
सबको ही यह ज्ञात है, परहित सरिस न धर्म।
किंतु आज वह चैन में, जिसके कुत्सित कर्म।।
जिसके कुत्सित कर्म, उसी के वारे न्यारे।
झूठ कपट छल छिद्र, स्वार्थ ने पैर पसारे।।
मिथ्या पाले दम्भ, आदमी भूला रब को।
रब…
Added by Hariom Shrivastava on June 7, 2019 at 7:11pm — 3 Comments
गर्मी पर 5 दोहे ....
लू में हर जन भोगता, अनचाहा संताप।
दुश्मन मेघों का बना,भानु किरण का ताप।।
मेघों से धरती कहे, कब बरसोगे तात।
प्यासी वसुधा मांगती, थोड़ी सी बरसात।।
जंगल सारे कट गए, कैसे हो बरसात।
तपती धरती पर लिखी, पर्यावरणी बात।।
धरती पर हर ताप का, भानु ताप सरताज।
गौर वर्ण पर हो गया, स्वेद कणों का राज।।
भानु अनल से तप रहे, धरती अंबर आज।
प्यासा जीवन हो गया, बारिश का मुहताज…
Added by Sushil Sarna on June 6, 2019 at 7:00pm — 5 Comments
गज़ल(ईद मनाएं)
(मफाईलुन - मफाईलुन - फ ऊलन)
न घर आएं न वो हम को बुलाएं
अकेले ईद हम कैसे मनाएं
यही है ईद का पैग़ाम लोगों
दिलों को आज हम दिल से मिलाएँ
मुबारक बाद मैं दूँ उनको कैसे
कभी वो सामने मेरे न आएं
मनाई साथ ही थी हम ने होली
सिवइयां साथ ही हम आज खाएँ
गिले शिकवे भुला दें आज के दिन
गले मिल कर मुहब्बत को बढ़ाएं
वतन से ख़त्म हो फिरका परस्ती
ख़ुदा से आज ये…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 5, 2019 at 9:00pm — 3 Comments
1-
हरियाली कम हो गई, हुई प्रदूषित वायु।
शनै-शनै कम हो रही,अब मनुष्य की आयु।।
अब मनुष्य की आयु, धरा पर संकट भारी।
पर्यावरण सुधार, विश्व में हैं अब जारी।।
दिवस मनाकर एक,मुक्ति क्या मिलने वाली।
इसका सिर्फ निदान, बढ़े फिर से हरियाली।।
2-
जीवन को संकट हुआ, करते सभी प्रलाप।
पर्यावरण बिगड़ गया, बढ़ा धरा का ताप।।
बढ़ा धरा का ताप, गर्क होता अब बेड़ा।
पहले बिना विचार, प्रकृति को हमने छेड़ा।।
अब भी एक उपाय, करें हम विकसित वन…
Added by Hariom Shrivastava on June 5, 2019 at 8:12pm — 1 Comment
ईद ...
दीद आपकी ईद पर, है अनुपम सौगात।
ईद मुबारक कर गई , आज ईद की रात ।।
मेघों की चिलमन हटी, हुई चाँद की दीद।
भेद-भाव सब भूलकर, कहें मुबारक ईद।।
दीद आपकी दे गई, ईदी हमको आज।
धड़कन के बजने लगे, देखो दिल में साज ।।
अर्श पर्श पर आज है, ईद मिलन का राज ।
ईद मुबारक सब कहें , इक दूजे को आज ।।
तरस रही हैं दीद को,कब आएगी ईद।
आएगी जब ईद, तो कैसे होगी दीद।।
बिना आपके बे-मज़ा,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 5, 2019 at 3:30pm — 3 Comments
ग़ज़ल:
तेरी मेरी कहीं कुछ कहानी भी है
प्यार में तैरती ज़िन्दगानी भी है
मत डरो देख तुम इस जमन की लहर
रासलीला तुम्हीं संग रचानी भी है
आँसुओं से नहाती रही उम्र-भर
तू ही चंपा मेरी रातरानी भी है
फूल जब मुस्कुराएँ तो समझा करो
इन बहारों में अपनी जवानी भी है
बाँध मत प्यार की बह रही है नदी
है रवाँ जिसमें उल्फ़त का पानी भी है
साथ देता हमेशा रहा…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on June 4, 2019 at 7:30pm — 3 Comments
सफर बाकी है अभी
अभी बाकी है
जिंदगी से अभिसार
कह रहा हूं
तुम्हीं से
बार-बार
सुन रही हो न
ऐ मृत्यु के आगार।…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on June 4, 2019 at 7:22pm — No Comments
ज़िंदगी ... तीन क्षणिकाएँ
मरती रही ज़िंदगी
ज़िंदा रही जब तक
अमर हो गई
फ्रेम में
कैद होने के बाद
..........................
जीती रही ज़िंदगी
ज़िंदा रही जब तक
मर गई
फ्रेम में
कैद होने से पहले
..........................
वाकिफ़ थी
अपने हश्र से
ज़िंदगी
फिर भी
मिट न सकी
जीने की लालसा
अवसान से पहले
.....................
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 2, 2019 at 9:24pm — 4 Comments
गाड़ी रूकते ही मैं ढाबे की तरफ़़ बढ़ा। कुर्सी पर बैठते हुए छोटू को पास बुलाया।
उस से बात करने लगा, जैसे अक्सर ही मैं ऐसा करता हूँ, ऐसा करना मेरा काम है, किसी को अच्छा या नहीं लगता। ये जानना मेरा काम नहीं ।"
“आप इन से क्या बात करते हो?" दूसरी तरफ बैठे मालिक ने उठ कर बालो से उस पकड़ा अंदर की ओर ले कर जाते हुए कहा
आप को यहाँ काम के लिए रखा है, बातों के लिए नहीं।
"भाई साहिब,कुछ लेना है,आप ने।" उसने मेरी तरफ
देखते हुए कहा
“नहीं,बात करनी है,इस और आप से।"…
Added by मोहन बेगोवाल on June 2, 2019 at 4:30pm — 6 Comments
ये रातें जल रही हैं,
वो बातें खल रही हैं
लगा दी ठेस तुमने दिल के अंदर
नसें अंगार बनकर जल रही हैं
मौसम सर्द है,
जीवन में लेकिन
लगी है आग,
तन मन जल रहा है।
जिसे उम्मीद से बढ़कर था माना
वही घाती बना है छल रहा है।
तुम्हारी ठोकरों के बीच आकर
बहुत टूटा हुआ हूँ, लुट गया हूँ
तेरा सम्मान खोकर, स्नेह खोकर
स्वयं ही बुझ चुका हूँ, घुट गया हूँ।
यहाँ हालात क्या से क्या हुआ है
नहीं कुछ सूझता…
Added by आशीष यादव on June 1, 2019 at 5:02pm — No Comments
घर चलता है नर नारी से , नर का चले सारा अधिकार | |
घर का काम करे सब नारी , फिर भी रहे नर से लाचार | |
संग रहे भाई बचपन में , बात बात में देता ताना | |
एक दिन ससुराल जाओगी , वहाँ होगा तेरा ठिकाना | |
सदा कहा भाई की होती , बहन का नहीं चले बहाना | |
रोकर चुप हो जाती बहना , दबा लेती आंसू की धार… |
Added by Shyam Narain Verma on June 1, 2019 at 2:30pm — No Comments
22 22 22 22
इच्छाओं का भार नहीं धर
रिश्तों के नाज़ुक धागों पर
पोषित पुष्पित होंगे रिश्ते
हठ मनमानी त्याग दिया कर
ऊर्जा से परिपूर्ण रहेगा
खुद में शक्ति सहन की तू भर
करनी का फल सन्तति भोगे
सो कुकर्म से ए मानव डर
देख निगाहें घुमा-फिरा के
कौन नहीं फल भोगे यहाँ पर
अब वैज्ञानिक भी कहते हैं
पाप-प्रलय-भय तू मन में भर
गा कर, लिख कर, यूँ ही पंकज
हर मन से अवसाद सदा…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 1, 2019 at 12:46pm — 1 Comment
ढलते पहर में लम्बाती परछाईयाँ
स्नेह की धूप-तपी राहों से लौट आती
मिलन के आँसुओं से मुखरित
बेचैन असामान्य स्मृतियाँ
ढलता सूरज भी तब
रुक जाता है पल भर
बींध-बींध जाती है ऐसे में सीने में
तुम्हारी दुख-भरी भर्राई आवाज़
कहती थी ...
"इस अंतिम उदास
असाध्य संध्या को
तुम स्वीकारो, मेरे प्यार"
पर मुझसे यह हो न सका
अधटूटे ग़मगीन सपने से जगा
मैं पुरानी सूनी पटरी पर…
ContinueAdded by vijay nikore on June 1, 2019 at 12:00am — 4 Comments
(१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ )
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वफ़ा ढूंढते हो जफ़ा के नगर में यहाँ पर वफ़ा अब बची ही कहाँ है
बुझी है वफ़ा की मशालें दिलों से वफ़ा का नहीं कोई नाम-ओ-निशाँ है
**
यहाँ राज करते हवस के पुजारी किसी की नहीं है मुहब्बत से यारी
इधर बेवफ़ाओं का लगता है मेला कोई बावफ़ा अब न मिलता यहाँ है
**
इधर पैसा फेंको दिखेगा तमाशा अगर जेब ख़ाली मिलेगी हताशा
इधर है न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 31, 2019 at 4:30pm — 2 Comments
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