For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

212 1212 1212 1212

सिर पे पांव रख हमारे,चढ़ रहे हो सीढ़ियाँ
फैंक दलदलों में यार,मांगते हो माफियाँ

जिंदगी में देख लीं,बहुत सी हमने आंधियाँ
खत्म हो चुके हैं अश्क,बंद सी हैं सिस्कियाँ

दास्ताने जिंदगी, सुना सके न हम कभी
दर खुदा के आ खड़े,ले चंद हम भी अर्जि़याँ

छा रही है तीरगी,न रोशनी दिखे कहीं
मौत है बुला रही,दे जिंदगी भी धमकियाँ

चापलूसी बोलती,न महनतों का मोल है
लग रही जगह जगह, इमान की ही बोलियाँ

साथ छोड़ चल दिये,मकान खाली हो गया
हो मुबारकें तुम्हें, नई तुम्हारी बस्तियाँ

बारिशों की है झडी,या अश्क को गरूर है
खेल कर वो आब से,डुबा रहें हैं कश्तियाँ

जिंदगी किताब सी खुली पडी थी सामने
किस्मतों के खेल हैं,बता रही थी गलतियाँ

बचपना,पुकारता है बेकरार मन मेरा
दोस्तों की भेड़ चाल, औऱ मौज मस्तियाँ

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 549

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 1, 2019 at 6:47pm

अब ठीक है ।

'बिक रही कलम लगी सुखनबरों की बोलियां'

इस मिसरे में 'सुखनबरों' को "सुखनवरों कर लें,'कलम' को "क़लम" कर लें ।

'बारिशों की है झडी,या अश्क को गुरूर है'

इस मिसरे में 'गुरुर' को "ग़ुरूर" लिखें ।

Comment by Rachna Bhatia on July 1, 2019 at 2:01pm
आदरणिय समर कबीर जी सुधार करने का प्रयास किया है।
कृपा मार्गदर्शनकरें

212 1212 1212 1212
सिर पे पांव रख हमारे,चढ़ रहे हो सीढ़ियाँ
क्यों गिरा के दलदलों में,मांगते मुआफियाँ

चापलूसी बोलती,न महनतों का मोल है
बिक रही कलम लगी सुखनबरों की बोलियां


बारिशों की है झडी,या अश्क को गुरूर है
खेल कर वो आब से,डुबा रहें हैं कश्तियाँ
Comment by Rachna Bhatia on July 1, 2019 at 10:59am
आदरणिय समर कबीर साहेब
प्रतिउत्तर देर से देने के लिए क्षमा चाहती हूँ
आगे से ऐसा नहीं होगा।

आदरणिय संज्ञान के लिए आपकी आभारी हूँ।
जी सुधार कर के आपको दुबारा दिखाती हूँ
Comment by Neelam Upadhyaya on June 12, 2019 at 2:50pm

आदरणीया रचना भाटिया जी, ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें । कृपया आदरणीय समर कबीर जी की टिपण्णी का संज्ञान लें।

Comment by Samar kabeer on June 11, 2019 at 6:24pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'फैंक दलदलों में यार,मांगते हो माफियाँ'

इस मिसरे में 'माफियाँ' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "मुआफ़ी" और इसका बहुवचन होगा "मुआफ़ियाँ",मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

'लग रही जगह जगह, इमान की ही बोलियाँ'

इस मिसरे में 'इमान' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "ईमान"221,इसे बदलने का प्रयास करें ।

'बारिशों की है झडी,या अश्क को गरूर है'

इस मिसरे में 'गरूर' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "ग़ुरूर" देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service