वज़ह.....
बिछुड़ती हुई
हर शय
लगने लगती है
बड़ी अज़ीज
अंतिम लम्हों में
क्योँकि
होता है
हर शय से
लगाव
बेइंतिहा
दर्द होता है
बहुत
जब रह जाती है
पीछे
ज़िंदगी
जीने की
वज़ह
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 5, 2019 at 4:56pm — 4 Comments
2122 2122 212
दर्द को दिल में दबाना सीख लो
ज़िन्दगी में मुस्कराना सीख लो
आंख से आंसू बहाना छोड़िये
हर मुसीबत को भगाना सीख लो
ज़िन्दगी है खेल, खेलो शान से
खेल में खुद को जिताना सीख लो
फूल को दुनिया मसल कर फैंकती
खुद को कांटों सा दिखाना सीख लो
छोड़ दें अब गिड़गिड़ाना आप भी
कुछ तो कद अपना बढ़ाना सीख लो
थी जवानी जोश भी था स्वप्न भी
दिन पुराने अब भुलाना सीख लो
कौन…
ContinueAdded by Dayaram Methani on July 4, 2019 at 9:30pm — 8 Comments
दर्दों गम से हर कोई बेजार है,
हादसों की हर तरफ़ दीवार है।
बिक रहे हैं वो भी जो अनमोल हैं,
कैसे नादानों का ये बाज़ार हैं।
सब्र अब सबका चुका लगता मुझे,
हर बशर लड़ने को बस तैय्यार है।
पल में तोला पल में माशा मत बनो,
ये भी जीने का कोई आधार है।
मुफलिसी के मारे लगते हैं सभी,
फ़िर भी ये लगते नहीं लाचार हैं।
जिसके हाथों में हैं ज्यादा पुतलियाँ,
उनकी ही उतनी बड़ी सरकार…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 4, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
अरकान:-12112 12112
न छाँव कहीं,न कोई शजर
बहुत है कठिन,वफ़ा की डगर
अजीब रहा, नसीब मेरा
रुका न कभी,ग़मों का सफ़र
तलाश किया, जहाँ में बहुत
कहीं न मिला, वफ़ा का गुहर
तमाम हुआ, फ़सान: मेरा
अँधेरा छटा, हुई जो सहर
ग़मों के सभी, असीर यहाँ
किसी को नहीं, किसी की ख़बर
बहुत ये हमें, मलाल रहा
न सीख सके, ग़ज़ल का हुनर
हबीब अगर, क़रीब न हो
अज़ाब लगे, हयात…
ContinueAdded by Samar kabeer on July 4, 2019 at 2:30pm — 36 Comments
ज़ीस्त को मुझसे है गिला देखो
जी रहा हूँ मैं हौसला देखो
साथ रहते हैं एक छत के तले
दरम्याँ फिर भी फासला देखो
तुम जिधर जा रहे हो बेखुद से
वहीं आयेगा जलजला देखो
सँभाल ही लूँगा मरासिम…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments
हर पन्ने पे होंगीं बलात्कार की खबरें,
इसलिए अखबार पढ़ने का मन नही करता।
परिवार की जड़ें उखड़ कर वृद्धाश्रम में आ गईं,
अब बच्चों को संस्कारी कहने का मन नही करता।
नंगी सड़क पे बचाओ बचाओ पूरे दिन चिल्लाता रहा,
फिर भी उसपे विश्वास करने का मन नही करता।
शरीर के इंच इंच पे, मैं राष्ट्रभक्त हूँ गुदवा रखा था,
फिर भी उसकी राष्ट्रभक्ति पढ़ने का मन नही करता।
कोई मोब्लिंचिंग तो कोई चमकी में मरा होगा इसलिए,
अब सुबह जल्दी…
Added by DR. HIRDESH CHAUDHARY on July 3, 2019 at 8:14am — 4 Comments
लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
जाने अब कैसे कटेंगी सर्दियाँ तेरे बिना.
.
फैलता जाता है तन्हाई का सहरा ज़ह’न में
सूखती जाती हैं दिल की क्यारियाँ तेरे बिना.
.
साथ तेरे जो मुसीबत जब पड़ी, आसाँ लगी
हो गयीं दुश्वार सब आसानियाँ तेरे बिना.
.
तू कहीं तो है जो अक्सर याद करता है मुझे
क्यूँ सताती हैं वगर्ना हिचकियाँ तेरे बिना?
.
वक़्त लेकर जा चुका आँखों से ख़ुशियों के गुहर
अब भरी हैं ख़ाक से ये सीपियाँ तेरे बिना.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 2, 2019 at 7:30am — 7 Comments
(११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ )
.
ये हुआ है कैसा जहाँ खुदा यहाँ पुरख़तर हुई ज़िंदगी
न किसी को ग़ैर पे है यक़ीं न मुक़ीम अब है यहाँ ख़ुशी
**
कहीं रंज़िशें कहीं साज़िशें कहीं बंदिशें कहीं गर्दिशें
कहाँ जा रहा है बता ख़ुदा ये नए ज़माने का आदमी
**
कहीं तल्ख़ियों का शिकार है कहीं मुफ़्लिसी की वो मार है
मुझे शक है अब ये बशर कभी हो रहेगा ज़ीस्त में शाद भी
**
कहीं वहशतों का निज़ाम है कहीं दहशतें खुले-आम हैं
मिले आदमी से यूँ आदमी मिले अजनबी से जूँ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 30, 2019 at 2:30am — 1 Comment
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
ग़म को क़रीब से मियाँ देखा है इसलिए
अपना ही दर्द ग़ैर का लगता है इसलिए'
**
जब और कोई राह न सूझे ग़रीब को
रस्ता हुज़ूर ज़ुर्म का चुनता है इसलिए
**
बाज़ार के उसूल हुए लागू इश्क़ पर
बिकता है ख़ूब इन दिनों सस्ता है इसलिए
**
आसाँ न दरकिनार उसे करना ज़ीस्त से
दिल का हुज़ूर आपके टुकड़ा है इसलिए
**
उनके ज़मीर के हुए चर्चे जहान में
मिट्टी के भाव में…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 28, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
सुकून-ओ-अम्न पर कसनी ज़िमाम अच्छी नहीं हरगिज़
अगर पैहम है तकलीफ़-ए-अवाम अच्छी नहीं हरगिज़
**
निज़ामत देखती रहती वतन में क़त्ल-ओ-गारत क्यों
नज़रअंदाज़ की खू-ए-निज़ाम अच्छी नहीं हरगिज़
**
न रोके तिफ़्ल की परवाज़ कोई भी ज़माने में
कभी सपने के घोड़े पर लगाम अच्छी नहीं हरगिज़
**
किसी को हक़ नहीं है ये कि ले क़ानून हाथों में
मगर सूरत वतन में है ये आम अच्छी नहीं हरगिज़
**
क़ज़ा को घर बुलाना है तुम्हें तो ख़ूब पी लेना
वगरना मय है पक्की या है ख़ाम अच्छी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 27, 2019 at 9:15pm — 5 Comments
मौन पर त्वरित क्षणिकाएं :
मौन तो
क्षरण है
शोर का
............
मन का
कोलाहल है
मौन
.............
मौन
स्वीकार है
समर्पण का
...............
मौन
प्रतिशोध का
शोर है
..............
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 26, 2019 at 8:12pm — 6 Comments
एक खास बह्र पर ग़ज़ल
122 122 121 22
तेरे हुस्न पर अब शबाब तय है ।
खिलेगा चमन में गुलाब तय है ।।
अगर हो गयी है तुझे मुहब्बत ।
तो फिर मान ले इज्तिराब तय है ।।
अभी तो हुई है फ़क़त बगावत ।
नगर में तेरे इंकलाब तय है ।।
बचा लीजिये आप कुछ तो पानी ।
मयस्सर न होगा ये आब तय है ।।
किया मुद्दतों तक वो जी हुजूरी ।
सुना है कि जिसका खिताब तय है ।।
अगर आ…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 26, 2019 at 12:01am — 3 Comments
2122 2122 2122 212
अब न चहरे की शिकन कर दे उजागर आइना ।
देखता रहता है कोई छुप छुपा कर आइना ।।
गिर गया ईमान उसका खो गये सारे उसूल ।
क्या दिखायेगा उसे अब और कमतर आइना ।।
सच बताने पर सजाए मौत की ख़ातिर यहां ।
पत्थरो से तोड़ते हैं लोग अक्सर आइना ।।
आसमां छूने लगेंगी ये अना और शोखियां ।
जब दिखाएगा तुझे चेहरे का मंजर आइना ।।
अक्स तेरा भी सलामत क्या रहेगा सोच ले ।
गर यहां तोड़ा कभी…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 25, 2019 at 11:56pm — 3 Comments
हवस की हवायों के चक्रवात नहीं बदले
न हम बदले, न हमारी विवेकहीन सोच
खूँखार जानवर-से मानव की छाती में
ज़हरीली हवस की घनघोर लपटें
घसीट ले जाती हैं सोई मानवता को बार-बार
मृत्यु से मृत्यु, और फिर एक और
मृत्यु की गोद में
सुविचारित सोच की सरिताएँ हट गईं
डूब गया विवेक अविवेक के काले सागर में
राक्षसी-दानव-मानव ने ओढ़ा नकाब
और स्वार्थ-ग्रस्त ज़हरीले हाथों से किए
मासूम असहाय बच्चियों पर…
ContinueAdded by vijay nikore on June 24, 2019 at 5:26pm — 6 Comments
ठीक है अभी तक अनवरत
तुम मन ही मन मानो निरंतर
देवी के दिव्य-स्वरूप सदृश
अनुदिन मेरी आराधना करते रहे
और अभी भी भोर से निशा तक
देखते हो परिकल्पित रंगों में मुझको
फूलों की खिलखिलाती हँसी में…
ContinueAdded by vijay nikore on June 24, 2019 at 3:28pm — 4 Comments
हाय क्या हयात में दिखाए रंग प्यार भी
इस चमन में साथ साथ फूल भी हैं ख़ार भी
**
देखते बदलते रंग मौसमों के इश्क़ में
हिज्र की ख़िज़ाँ कभी विसाल की बहार भी
**
इंतज़ार की घड़ी नसीब ही नहीं जिसे
क्या पता उसे है चीज़ लुत्फ़-ए-इंतिज़ार भी
**
कीजिये सुकून चैन की न बात इश्क़ में
इश्क़ में क़रार भी है इश्क़ बे-क़रार भी
**
चश्म इश्क़ में ज़ुबान का हुआ करे बदल
जो शरर बने कभी कभी है आबशार भी
**
प्यार एक फ़लसफ़ा है और नैमत-ए-ख़ुदा
रंज़ है इसे बनाते लोग…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 24, 2019 at 1:30pm — 4 Comments
जब तू पैदा हुई थी
तो मैं झूम के नाचा था
मेरी गोद में आकर
जब तूने पलकें झपकाई
मैंने अप्रतिम प्रसन्नता क़ो
अनुभव किया था
फ़िर तू शनै शनै
बेल की तरह बड़ी…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on June 24, 2019 at 11:30am — 1 Comment
शब्द ....
शब्द
बतियाते हैं तो
सृजन बन जाते हैं
शब्द
बतियाते हैं तो
वाचाल हो उठती है
अंतस भावों की
पाषाण प्रतिमा
शब्द
बतियाते हैं तो
बन जाते हैं
कालजयी
शिलालेख
शब्द
बतियाते हैं तो
छीन लेते हैं
मौन में दबे दर्द की
मौनता को
इसीलिए
शब्दों का बतियाना
बड़ा अच्छा लगता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 23, 2019 at 5:02pm — 2 Comments
एक गीत
==========
मन के आँगन में फूटा जो
प्रीतांकुर नवजात |
खाद भरोसे की देकर अब
सींच इसे दिन-रात |
**
ध्यान रहे यह इस जीवन का
बीत गया बचपन |
आतुर है दस्तक देने को
अब मादक यौवन |
उर-आँगन में जगमग हर पल
सपनों के दीपक
और रही झकझोर हृदय को
यह बढ़ती धड़कन |
वयः संधि का काल हृदय में
भावों का उत्पात |
खाद भरोसे की देकर अब
सींच इसे दिन-रात…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 23, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
ख़्वाब ... (क्षणिका )
तैरता रहा तुम्हारा अक्स
मेरे ख़्वाबों के प्याले में
माहताब बनकर
मैं निहारता रहा
अब्र में
बिखरता ख़्वाब
छलिया माहताब में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 22, 2019 at 4:58pm — 6 Comments
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