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वक्त कीमती है --------

कर्म ने ही सुखद भाग्य बनाया 

गीता में कृष्ण ने यही बताया |

 

मदद ली जाती  है, इसकी समझ धरो 

भूलोंसे सीख का मन में उन्माद भरो |

 

प्रभु के दिए मौके को न जाने दिया करो 

उंगलियाँ यूँ ही  न सब पर उठाया करो | 

 

बीते वक्त की याद ने मन दुखी कराया 

उठों तभी सवेरा है, मन को समझाया…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 28, 2012 at 5:34pm — 2 Comments

हाहाकर

हाहाकर
मानसून की पड़ रही मार
मचा हुआ है हाहाकर
चारों तरफ  है पानी ही पानी
उफनती नदियाँ  बाढ़  ही बाढ़
परिणाम स्वरूप महँगाई बढ़ गयी
गरीब की हंडिया ख़ाली रह गयी
घर टूट गए खेत उजड़ गए  
बेबस अखियाँ मन है उदास 
दीपक…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 28, 2012 at 4:54pm — No Comments

अब भी कहोगें तुम मुझे सती ????

झुंझुनू यात्रा के दौरान

घुमाया गया मुझे

तथाकथित "रानी सती" के मंदिर में.

मंदिर में प्रवेश करते ही दरवाजे पर लिखा था ....

"हम सती प्रथा का विरोध करते है"

पर अंदर जाकर जिस तरह श्रदालुओं का दिखा रेला ,

और बाहर भी लगा था भक्तों का मेला ,

मेरे मन में सवाल उठा कि-------

जब दुनिया से गया होगा इस महिला का पति,

तो क्या अपनी इच्छा से हुई होगी यह सती ?

वहां तो कोई जवाब नहीं मिला पर रात को सपने में आई वो महिला .

उसे देखकर पहले तो मैं डरा फिर मेरा…

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Added by Naval Kishor Soni on August 28, 2012 at 4:30pm — 2 Comments

शिक्षा में क्रांति-----------

बातें करते है "वो" शिक्षा में क्रांति की

कहते है अब जरुरी हो गई है

शिक्षा में क्रांति ?

मैंने पूछा किस तरह की क्रांति चाहते है आप ?

जवाब था आमूलचूल परिवर्तन

पूरी शिक्षा व्यवस्था को बदलना होगा

मैने कहा आप भी शिक्षक है आप कुछ करियें ना ?

वो बोले मेरे अकेले के करने से क्या होगा ?

क्रांति के लिए जरुरत होती है जनता के सैलाब की .

विचार और जज्बे के फैलाव की ----------------------?

मैनें कहा बहुत कुछ हो सकता है.

आप अपनी कक्षा से कर सकते है…

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Added by Naval Kishor Soni on August 28, 2012 at 3:00pm — No Comments

मांगे भी तो मौत ना मिलती

जिंदगी से जब सरोकार हुआ
संघर्ष की आँधियों ने
लोगो की तीखी बातों ने
ऐसा दिल पर वार किया
लहूलुहान हुआ हृदय अपना
ऐसा घायल दिल
अपना तो यार हुआ

कुरेद कुरेद के बातें छेड़े
लोग उस वक़्त की
जिस वक़्त जीना
अपना दुश्वार हुआ
मांगे भी तो मौत ना मिलती
दुःख दावानल का
जब वार हुआ
तब समझ में आया हमको
क्यों संसार अग्रसर
प्रलय की ओर हुआ

Added by PHOOL SINGH on August 28, 2012 at 12:00pm — 2 Comments

चंद कुंडलिया छंद!

नेता





नेता सा वह आदमी, होता था जो आम /

जा संसद में बैठता, होता है बदनाम //

होता है बदनाम, काम के लेता पैसे /

दिया अमूल्य वोट, दें फिर कैसे पैसे //

गया महल में बैठ, रहा झुग्गी में सोता /

बन गया ये खास, आम रहा नहीं नेता //





बोले हरदम झूठ जों, नेता वही कहाय/

ओछे करके काम जों, मोटा माल बनाय//

मोटा माल बनाय,निराले सपन दिखाता/

भूखा सोय गरीब, ये मोबाईल लाता//

बोले यही अशोक, बचो धोखे से भोले/

नेता वही कहाय, हरदम झूठ जों…

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Added by Ashok Kumar Raktale on August 28, 2012 at 8:30am — 3 Comments

तुम आओगे ना ??

अहसासों के दरमियां 

मेरे ख़्वाबों को जगाने 

जब तुम आओगे ना 

कुछ शरामऊँगी मैं 

धडकनों को थामकर 

कुछ बहक सा जाऊँगी मैं 

मुझे बहकाने तुम आओगे ना ????



इठलाती सी धूप में 

रूख पर नक़ाब गिराने 

जब तुम आओगे ना 

तेज़ किरणें शरमा जायेंगी 
तुम्हारे अक्स के आ जाने से 

मेरी परछाई को ख़ुद में 

समाने तुम आओगे ना…
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Added by deepti sharma on August 27, 2012 at 6:30pm — 15 Comments

यूँ ही उंगलियाँ न उठाओ

पोते-पोतियों से पढ़ना सीख रही है पुलिसवालों की बीबियाँ 
पुलिस वाले हैरान है,हो जाएँगी होशियार उनकी बीबियाँ | -1



पत्निया फिक्रमंद है,कही आँखे न लड़ाले ये कामवाली बाइयां,
चुपके चुपके पतियों से, पढ़ना सीख रही है कामवाली बाइयां |- 2…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 27, 2012 at 3:04pm — 2 Comments

आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया शृंगार अब....

आ प्रिये कि हो नयी

कुछ कल्पना - कुछ सर्जना,

आ प्रिये कि प्रेम का हो

एक नया शृंगार अब.....



तू रहे ना तू कि मैं ना

मैं रहूँ अब यूं अलग

हो विलय अब तन से तन का

मन से मन का - प्राणों का,

आ कि एक - एक स्वप्न मन का

हो सभी साकार अब....



अधर से अधरों का मिलना

साँसों से हो सांस…
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Added by VISHAAL CHARCHCHIT on August 27, 2012 at 3:00pm — 26 Comments

नारी : कुण्डलिया

(१) नारी घर का मान है, नारी पूज्य महान |

नारी का अपमान तू, मत करना इंसान ||

मत करना इंसान, नहीं ये शाप कटेगा,

खुश होगा शैतान, सदा ही नाम रटेगा |

धर माता का रूप, लुटाती ममता भारी,

बढ़े पाप तो खड्ग, उठा लेती है नारी ||

(२) नारी जो बेटी बने, देवे कितना स्नेह |

बने बहिन तो बाँट ले, कष्टों की भी देह ||

कष्टों की भी देह, बाँध हाथों पे राखी,

नहीं कहा कुछ गलत, देश-दुनिया है साखी |

करे कोख पर वार, गई मत उसकी मारी,

फूट…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 27, 2012 at 2:10pm — 6 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
देह-बोध

काश
टूट जाए ये दीवार
और हो उन्मुक्त,
 उड़ चलूँ मैं,
भाव-पंख पसार
विस्तृत आकाश में दूर क्षितिज को नापने...
या 
बन मछली, करती
लहरों से अठखेलियाँ, 
बूँद बूँद से मोहब्बत,
छू लूँ सागर की तह
और ढूँढ लूँ सारे मोती....
या
मिल जाऊं मिट्टी में
और एकीकृत हो धरा से
शांत करूँ उसकी हलचल
ताकि न उजड़े फिर…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 27, 2012 at 9:30am — 10 Comments

पंक्तियाँ...

पंक्तियाँ

 

v एक दिन देखना देश हमारा इतना हाईटेक हो जाएगा,

दूल्हा भी घूंघट दुल्हन का रिमोट से ही उठाएगा!

 

v आयेंगे तो जा न पायेंगे ये हमारी ज़िम्मेदारी है,

और जायेंगे भी कैसे जनाब ये अस्पताल ही सरकारी है!

 

v पुरुषो से हैं कहीं आगे आजकल की महिलाएं,

 धडल्ले से हैं पीती दारू वो भी बिना बरफ मिलाये!

 

v पत्नियां घूमें सेल में ढूंढें महंगी साड़ी,

पति बेचारा जेब टटोले कभी…

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Added by Ranveer Pratap Singh on August 25, 2012 at 9:53pm — 2 Comments

फिर कोई धोखा खा बैठे.....

फिर कोई धोखा खा बैठे

फिर द्वार तुम्हारे आ बैठे

सीधी साधी बातों में

हम अपना मन उलझा बैठे

गुड्डे गुडिया के दौर में हम तो

प्रीत का रोग लगा बैठे

जो बात कभी न समझी तुमने

हम खुद को वो समझा बैठे

जो आया ठोकर लगा गया

पत्थर दिल ऐसा पा बैठे

कच्ची सी वो उमर थी लेकिन

हम पक्की कसमें खा बैठे

दो लफ्जों की बात थी सारी

वो क्या-क्या लिखवा बैठे

जो गीत अधूरे छोड़ गए तुम

हम आज वही फिर गा बैठे

फिर कोई धोखा खा…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on August 25, 2012 at 9:43pm — 2 Comments

मुझे यकीं है, समझ न सकोगे तुम

मुझे यकीं है

समझ न सकोगे तुम

 

दुनिया की रस्में

उल्फत की कसमें

क्यूंकि तुम हो ही नहीं

खुद के वश में



तुम हर रोज चलते हो

नित नए सांचे में ढलते हो…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 25, 2012 at 3:02pm — 3 Comments

तुमसे हारा ( एक पाती उसके नाम)

याद है तुम्‍हें वे ढाक के पेड़

जहां ऐसे ही सावन में

हम-तुम भींगे थे.....

और....कितना रोया था मैं

कि पहली छुअन की सिहरन

को पचा नहीं पाया ...



उस विशाल मैंदान की मांग.....

जब मेरे साइकिल पर

तुम बैठी थी और

उसकी हैंडल मुड़ गई थी

क्‍योंकि मेरा ध्‍यान तो.....



अक्‍सर वहां जाता हूं

तुम्‍हें ढूंढने

और लौटकर फिर सारी रात…

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Added by राजेश 'मृदु' on August 25, 2012 at 2:40pm — 2 Comments

नवमन

नव मन की नव कल्पना,
नव अन्नत में उड़ने की है।
समस्त जगत के अंदर,
नव चेतना भरने की है॥

चाहता है यह नव मन,
मेरा संसार नवल हो जाये।
प्रेम क्षमा दया करुणा,
हर जन उर अंतर भर जाये॥

सब बन जायें अपने भाई,
ऊंच नीच भेद मिट जाये।
देश जाति धर्म भाषा के,
बंधन सारे टुट जायें॥

सब पर सब विश्वास करें,
अविश्वास की न हो रेखा।
इस मेरे नव मन ने भाई,
बस यही है सपना देखा॥

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 1:02pm — 7 Comments

ग़ज़ल - बादलों और बिजलियों की नेमतें

ग़ज़ल - बादलों और बिजलियों  की नेमतें
 
बोलते चेहरों को सुनता ही रहा ,
वो अदद एक ख्वाब बुनता ही रहा |
 …
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Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:41am — 10 Comments

पापा गुड़िया क्यों नहीं सोती?

एक गुड़िया जो बहुत ही सस्ती है।लोग उसे खरीदते हैं चंद रुपयों में।बच्चों की खातिर या सजाने के लिए।वे गुड़ियां जो तराशबीनों के हाथ पड़ती हैं,उन्हें वे विविध रूपों में तराशते हैं और फिर उसे चौकीदार की नौकरी दे देते हैं,बिना प्रमाण पत्र के।वह गुड़िया किसी मेज या स्टूल या आलमारी पर रात-दिन खड़ी रहती है,पहरा देती है बिना वेतन के।

वहीं वे गुड़ियां जो नादान बच्चों के हाथ जाती हैं,उन्हें वे पटकते हैं,धूल पोतते हैं,शादी रचाते हैं,जूड़ा बांधते हैं और फिर अपन पास रखकर सोते हैं।उसे थपकी दे देकर सुलाते… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 25, 2012 at 11:40am — No Comments

ग़ज़ल - तेरी याद माँ चाशनी है

 
ग़ज़ल - तेरी याद माँ चाशनी है
 
हवा में नमी कुछ बढ़ी है ,
मगर अब भी नीयत वही है |
 
रहा है भंवर का ये…
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Added by Abhinav Arun on August 25, 2012 at 11:30am — 17 Comments

हाइकु बक्सा : विविध

(१) झुकी नजरें

खामोशी इजहार

पहला प्यार

(२) सब अपना

हरेक का सपना

कलियुग है

(३) भारी टोकरा

रोकड़ा ही रोकड़ा

उपरी आय

(४) संतों का बैरी

लुटेरों का चहेता

हमारा नेता

(५) अँगूठा छाप

पढ़े-लिखों का बाप

जनतंत्र है

(६) संकीर्ण सोच

इंसानी खुराफात

ये जात-पात

(७) तिल का ताड़

मजहब की आड़

आतंकवाद

(८) बेमेल दल

लाचार सरकार

गठबंधन

(९) सब ने ठगा…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 25, 2012 at 10:48am — 4 Comments

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