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ग़ज़ल ( गली से जाते हुए पैरों के निशान मिले....)

1212 1122 1212 22/112

गली से जाते हुए पैरों के निशान मिले

कहीं पे उजड़े हुए-से कई मकान मिले

ये अपने-अपने मुक़द्दर की बात है भाई

मुझे ज़मीं न मिली तुमको आसमान मिले

किसी ज़माने में उनके बहुत क़रीब थे हम

अभी तो फ़ासले ही सिर्फ़ दरमियान मिले

इसे भी बेचने आए थे लोग मंडी में

कहीं पे दीन मिला और कुछ ईमान मिले

मैं चढ़ के आ तो गया हूँ ऊँचाई पर लेकिन

मुझे भी ज़ीस्त में छोटी-सी इक ढलान…

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Added by सालिक गणवीर on July 23, 2020 at 8:01am — 4 Comments

नग़्मा (आप यूँ ही अगर हमसे रूठे रहे)

आप यूँ ही अगर हमसे रूठे रहे 

एक आशिक़ जहाँ से गुज़र जाएगा 

ऐसी बातें करोगे अगर आप तो

ग़म का मारा ये दिल कुछ भी कर जाएगा

आप यूँ ही अगर... 

कैसी नाराज़गी है ओ जान-ए-वफ़ा

मुझसे क्या हो गई भूल कुछ तो बता 

हाय कुछ तो बता 

आप ख़ुद ही समझ लेंगे इक रोज़ ये

जब ख़ुमार आपका ये उतर जाएगा

आप यूँ ही अगर...

तेरे वादों पे हम कर यक़ीं लुट गए

तेरी भोली सी सूरत पे क्यूँ मिट गए

हाय क्यूँ मिट गए

मर…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 22, 2020 at 6:30pm — 5 Comments

अज़ीज़न बाई

भारतवर्ष क्रांतिकारी महापुरुषों और वीरांगनाओं से भरा पड़ा है जिनके बारे में जितना पढ़ा जाये कम ही नजर आता है| कभी-कभी तो ऐसा लगता है पता नहीं किस मिट्टी के बने होते होंगे वे लोग जो देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने ले लिए हर वक़्त तैयार रहते थे| इस संघर्ष में उच्च, पिछड़े समाज और दलित समुदायों से आने वाली औरतों के साथ-साथ बहुत सी भटियारिनें या सराय वालियां, तवायफे भी थीं| जिनके सरायों में विद्रोही योजनाएं बनाते थे जाने कितनी तो कलावंत और…

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Added by PHOOL SINGH on July 22, 2020 at 5:00pm — 2 Comments

कुँवारी आँखों में- ग़ज़ल

1212 1122 1212 22 

 

न नींद है न कहीं चैन प्यारी आँखों में, 

तमाम ख़्वाब पले हैं कुँवारी आँखों में. 

 

शिकार कैसे हुए हम समझ नहीं पाए,

दिखा न तीर न कोई कटारी आँखों में 

 

करीब जा के न कोई भी लौट कर आया,

फँसे पड़े हैं कई इन जुआरी आँखों में

 

ये दिल हमारा किसी और का हुआ जब से,  

तभी से…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on July 21, 2020 at 8:00pm — 6 Comments

मनालें तीज का त्यौहार गीत

चलो री सखियां,सावन आ गया,

अबकी फिर एक बार,

मनालें तीज का त्यौहार...

हरियाली प्रकृति के जैसे,

हरे कपड़े पहनें आज ,

काजल ,बिंदिया ,चूड़ी आदि से

करके सोलह श्रृंगार।

मनालें तीज...

गोरे- गोरे हाथों में,

अरे ,मेंहदी लगा लें आज।

मिल जुलकर सब झूला झुलें,

गावें गीत मल्हार।।

मनालें तीज...

बागों में जैसे नाचे मोर,

हम भी नाच लें आज।

सखी सहेलियों के संग मिलकर,

धूम मचा लें…

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Added by Neeta Tayal on July 21, 2020 at 4:30pm — No Comments

ग़ज़ल ( सोचता हूँ आज तक ग़ज़लों से क्या हासिल हुआ..)

(2122 2122 2122 212)

सोचता हूँ आज तक ग़ज़लों से क्या हासिल हुआ

पहले से बीमार था दिल दर्द भी शामिल हुआ

जब तलक घुटनों के बल चलता रहा था ख़ुश बहुत

आ पड़ा ग़म सर पे जब से दौड़ के क़ाबिल हुआ

ज़िंदगी में तुम नहीं थे इक अधूरापन-सा था

जब से आए हो ये लगता है कि मैं कामिल हुआ

चलते-चलते लोग कहते हैं सफ़र आसान है

ज़िंदगानी में सरकना भी बहुत मुश्किल हुआ

वो शरीक-ए-ग़म है अब मैं क्या कहूँ तारीफ़ में

चोट लगती है मुझे वो…

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Added by सालिक गणवीर on July 21, 2020 at 9:30am — 12 Comments

दीवार से तस्वीर हटाने के लिए आ

221 1221 1221 122

दीवार से तस्वीर हटाने के लिए आ

झगड़ा है तेरा मुझसे जताने के लिए आ/1

तू वैद्य मुहब्बत का है मैं इश्क़ में घायल

चल ज़ख्म पे मरहम ही लगाने के लिए आ/2

पत्थर हुए जाती हूं मैं पत्थर से भी ज्यादा

तू मोम मुझे फिर से बनाने के लिए आ/3

है आईना टूटा हुआ चहरा न दिखेगा

सूरत तेरी आँखों में दिखाने के लिए आ/4

ये बाज़ी यहाँ इश्क़ की मैं हार के बैठी

तू दर्द भरा गीत ही गाने के लिए आ /5

रुसवाई भी होती है मुहब्बत के सफ़र में…

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Added by Dimple Sharma on July 21, 2020 at 6:00am — 11 Comments

नसीब — डॉo विजय शंकर

एक उम्र भर हम
लोगों को समझते रहे।
हालातों को समझते रहे ,
दोनों से समझौता करते रहे ,
दुनिया में समझदार माने गए।
बस अफ़सोस यह ही रहा ,
हमें कोई ऐसा मिला ही नहीं ,
या नसीब में था ही नहीं ,
जिसे हम भी समझदार मानते
और हम भी समझदार कहते।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 20, 2020 at 10:31pm — 2 Comments

न्याय की जब से हुई हैं कच्ची सारी डोरियाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



भाव अब तो पाप - पुण्यों के बराबर हो गये

देवता क्योंकर जगत में आज पत्थर हो गये।१।

**

थी जहाँ पर अपनेपन की लहलहाती खेतियाँ

स्वार्थ से कोमल ह्रदय  के  खेत ऊसर हो गये।२।

**

न्याय की जब से हुई  हैं कच्ची सारी डोरियाँ

तब से जुर्मोंं के  महावत  और  ऊपर हो गये।३।

**

दूध, लस्सी, घी अनादर का बने पहचान अब

पैग व्हिस्की मय पिलाना आज आदर हो गये।४।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2020 at 5:30pm — 10 Comments

ऊदा देवी

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अनेक वीर नारियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था| इस प्रथम स्वाधीनता संग्राम में देश के सभी वर्गों ने अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार उसमे योगदान देने में अपना पूरा सहयोग दिया| इस संग्राम में भाग लेने वाली नारियों ने अपने धर्म जाति की परवाह किए बिना अपने त्याग और बलिदान की एक अनोखी मिशाल पेश की और आने वाली पीढ़ियो के लिए मार्गदर्शक बनी| प्रथम भारतीय विद्रोह की सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें केवल शाही राजघरानो या कुलीन पृष्ठभूमि वाली नारियों ने ही भाग नहीं लिया था…

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Added by PHOOL SINGH on July 19, 2020 at 3:30am — No Comments

अहसास की ग़ज़ल :मनोज अहसास

2×15

इतने दिन तक साथ निभाया उतना ही अहसान बहुत.

दिल का क्या है, ख़ाली घर था, थे इसमें अरमान बहुत.

हैरानी से पूछ रहा था इक बच्चा नादान बहुत,

गर्मी के मौसम में ही क्यों आते हैं तूफान बहुत.

हद से ज्यादा देखभाल का कोई लाभ नहीं पाया,

मेरे हाथों मेरे घर का टूट गया सामान बहुत.

ऐसे ऐसे मोड़ हमारे रस्ते में आये यारो,

जिनमें फंसकर लगने लगा था जालिम है भगवान बहुत.

फिर इक दिन वो मुझसे मिलकर दिल की बात…

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Added by मनोज अहसास on July 18, 2020 at 11:50pm — 5 Comments

भाई बहिन का सतरंगी प्यार

इंद्रधनुष के रंगों जैसा ,

भाई बहन का प्यार।

भाई बहिन के रिश्ते के,

सात रंग आधार।।

बैंगनी जामुन के जैसे,

मीठा, कसैला इनका प्यार।

कभी झगड़ते ,कभी लुटाते,

बरबस एक दूजे पर प्यार।।

गहरे नीले स्याही के दाग़,

एक दूजे पर डाला करते।

बेवजह चिड़ाते एक दूजे को,

मन ही मन फिर पछताते।।

नीले नीले आसमान को,

बचपन में साथ निहारा करते।

कभी कभी तो रातों में बस,

आसमान में तारे गिनते।।।

हरे भरे घर - परिवार…

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Added by Neeta Tayal on July 18, 2020 at 4:34pm — 4 Comments

ससुराल और मायका

ससुराल और मायके के बीच ,

दो गलियां भी मीलों दूरी है।

एक शहर में ससुराल मायका,

फिर भी लंबी दूरी है।।

ससुराल से मायके जाने में,

इंतजार बहुत जरूरी है।

मायके जाने के लिए,

घरवालों की परमिशन भी जरूरी है।।

जब भी मां का फोन आए,

बार बार बस ये कहती है।

बहुत दिन हो गए अबकी,

तुझसे मिलने की इच्छा मेरी है।।

कैसे आ जाऊं मैं मम्मी,

बच्चों की पढ़ाई चल रही है।

घर के सारे कामों की,

जिम्मेदारी भी तो मेरी…

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Added by Neeta Tayal on July 18, 2020 at 4:32pm — 2 Comments

ग़ज़ल- हाँ में हाँ लोग जो होते हैं मिलने वाले

2122  1122  1122  22

हाँ में हाँ लोग जो होते हैं मिलाने वाले

हैं पस-ए पुश्त मियाँ ज़ुल्म वो ढाने वाले

अपने चहरे के उन्हें दाग़ नज़र आ जाते

देखते ख़ुद को जो आईना दिखाने वाले

पाप धुलते नहीं इस तरह बता दो उनको

हैं जो कुछ लोग ये गंगा में नहाने वाले

हो क़फ़स लाख वो फ़ौलाद का लेकिन यारो

रोक सकता नहीं उनको जो हैं जाने वाले

आपसे वादा निभाएँगे भला वो कैसे

वादा ख़ुद का न कभी ख़ुद से निभाने वाले

आप…

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Added by नाथ सोनांचली on July 18, 2020 at 4:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल ( हद में कभी थे हद से गुज़रना पड़ा हमें.....)

(221 2121 1221 212)

हद में कभी थे हद से गुज़रना पड़ा हमें

कई बार जीने के लिए मरना पड़ा हमें

शेरों की माँद में भी कभी बेहिचक गए

दौर-ए-रवाँ में चूहों से  डरना पड़ा हमें

आकर समेटता है हमें वो ही बारहा

हर बार टूटते ही बिखरना पड़ा हमें

आए नहीं वो कल भी तो हर बार की तरह

वादे से अपने आज मुकरना पड़ा हमें

मंज़िल भी होती पाँव के नीचे मगर सुनो

उसके लिए रस्ते में ठहरना पड़ा हमें

होते कहीं पे हम भी…

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Added by सालिक गणवीर on July 18, 2020 at 7:00am — 6 Comments

दिल को झिंझोड़ा नहीं कभी- गजल

मापनी 

२२१/२१२१/१२२१/२१२१/२

पकड़ा किसी का हाथ तो छोड़ा नहीं कभी. 

जोड़ा जो रिश्ता प्यार का तोड़ा नहीं कभी. 

  

महँगा पड़ा है झूठ से लड़ना हमें मगर,

घुटनों को उसके सामने मोड़ा…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on July 17, 2020 at 9:33pm — 4 Comments

अच्छे दिन - लघुकथा -

अच्छे दिन - लघुकथा -

"गुड्डू, लो देखो मैं तुम्हारे लिये कितनी सारी ज्ञान वर्धक जानकारी की पुस्तकें लाया हूँ।"

"दादा जी, आप कहाँ से लाये और कैसी पुस्तकें हैं? आप तो पार्क में टहलने गये थे।"

"हाँ बेटा, वहीं पार्क के गेट के बाहर फुटपाथ पर एक लड़का पुस्तकें, पत्रिकायें, समाचार पत्र आदि बेचता है। शिक्षाप्रद कहाँनियों की पुस्तकें हैं|"

"क्या इससे उसका गुजारा हो जाता है?"

"बेटा, वह एम ए, बी एड है, लेकिन नौकरी नहीं है। अतः इसके साथ ही वह लोगों के पानी, बिजली और…

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Added by TEJ VEER SINGH on July 17, 2020 at 11:26am — 2 Comments

पर्याय(लघुकथा)

सोनी अब क्या करेगी? नेवला तो उसके सांपों को खाता जा रहा है।' चुनचुन ने मुनमुन चिड़िया से पूछा।

' खायेगा ही,खाता जाएगा।' मुनमुन बोली।

' फिर? अब तो सोनी के द्वारा पंछियों के नुचवाये पंख भी उगने लगे हैं।' चुन चुन बोली।

' उगेंगे। नई पौध भी पनप रही है,लाल टेस अंखुओं वाली।' मुनमुन बोली।

' वो तो है,मुनमुन।पर इस सोनी का क्या करें?आए दिन इसके हंगामे बढ़ रहे हैं;कभी हंसों पर वार,तो कभी कौवों पर।बस गिरगिट पिछलग्गू बने हुए हैं।' चुन चुन चिढ़ कर बोली।

' लंबी पारी है, चुन चुन।कुछ भी हो…

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Added by Manan Kumar singh on July 17, 2020 at 8:49am — 2 Comments

मन की सुंदरता बलवान

तन की सुंदरता तो प्यारे,

कुछ दिन की है मेहमान।

सुन्दर गोरी चमड़ी से ज्यादा,

मन की सुंदरता है बलवान।।

मन विकार मुक्त तुम रखकर,

त्यागो अपना अहं अज्ञान।

मृदुभाषी सौहाद्र व्यवहार से,

बना लो अपनी छवि महान।।

तन हो सुन्दर और मन हो मैला,

मेले में भी रह जाएगा अकेला।

जीवन हो जाएगा बोझिल,

खुशियां हो जाएंगी सब ओझिल।।

जब पंचतत्व में मिल जाएगा,

नश्वर शरीर तेरा नादान।

सद्व्यवहार सद्गुणों से तेरी,

ख्याति…

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Added by Neeta Tayal on July 17, 2020 at 7:00am — 3 Comments

पनघट के दोहे- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पनघट पोखर बावड़ी, बरगद पीपल पेड़

उनकी बातें कर न अब, बूढ़े मन को छेड़।१।

**

जिस पनघट व्याकुल कभी, बैठे थे हर शाम

पुस्तक में ही शेष अब, लगता उस का नाम।२।

**

पनघट सारे खा गया, सुविधाओं का खेल

फिर भी सुख से हो सका, नहीं हमारा मेल।३।

**

पीपल देखे गाँव का, बीते कितने साल

कैसा होगा क्या पता, अब पनघट का हाल।४।

**

पथिक ढूँढ नव राह तू, अगर बुझानी प्यास

पनघट ही जब ना रहे, क्या गोरी की आस।५।

**

सब मिल पनघट थीं कभी, बतियाती चित खोल

घर- घर नल…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 16, 2020 at 9:59am — 13 Comments

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