For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीवार से तस्वीर हटाने के लिए आ

221 1221 1221 122
दीवार से तस्वीर हटाने के लिए आ
झगड़ा है तेरा मुझसे जताने के लिए आ/1

तू वैद्य मुहब्बत का है मैं इश्क़ में घायल
चल ज़ख्म पे मरहम ही लगाने के लिए आ/2

पत्थर हुए जाती हूं मैं पत्थर से भी ज्यादा
तू मोम मुझे फिर से बनाने के लिए आ/3

है आईना टूटा हुआ चहरा न दिखेगा
सूरत तेरी आँखों में दिखाने के लिए आ/4

ये बाज़ी यहाँ इश्क़ की मैं हार के बैठी
तू दर्द भरा गीत ही गाने के लिए आ /5

रुसवाई भी होती है मुहब्बत के सफ़र में
मैं रूठ के बैठी हूँ मनाने के लिए आ/6

ये रात अमावस की अँधेरा भी घना है
है चाँद जमीं पे भी बताने के लिए आ/7

कालेज के वो दिन बड़े याद हैं आते
टपरी की वही चाय पिलाने के लिए आ/8

तेरे थे बड़े चर्चे हिरो था तू तो अपना
बाइक पे बिठा लड़की जलाने के लिए आ/9

मास्टर जी की बेटी वो जो दिखने में गज़ब है
वो ही है तेरी भाभी सताने के लिए आ/10

डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 746

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on July 30, 2020 at 5:09pm

आदरणीय गुणीजनों आप सभी के सुझावों के अनुसार मैं ग़ज़ल से शेर हटा तो दूं पर मुझे समझ नहीं आ रहा की एडीट कहाँ से करूं अतः या तो इस सिलसिले में आप मेरा मार्गदर्शन करें या फिर मैं ये कर सकती हूँ की जब कभी कहीं ये ग़ज़ल सुनाऊंगी तो अन्त के तीन शेर नहीं सुनाऊंगी ।

Comment by Dimple Sharma on July 30, 2020 at 5:06pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'जी नमस्ते,जी बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय आपके मार्गदर्शन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए हृदय तल से आभार आपका आदरणीय,जी सुझाव के लिए बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय, आपके सुझावों का आगे भी स्वागत और इन्तजार रहेगा आदरणीय

Comment by Dimple Sharma on July 30, 2020 at 5:04pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह'कुशक्षत्रप'जी नमस्ते, ग़ज़ल तक आने के लिए और आपके मार्गदर्शन के लिए हृदय तल से आभार आपका आदरणीय, जी जरुर सम्भव क्यूं नहीं आप सभी के सुझावों के अनुसार मैं अभी ये तीनों शेर हटा दें रही हूँ, कृप्या आशीर्वाद और स्नेह बनाए रखें।

Comment by Dimple Sharma on July 30, 2020 at 5:01pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते,आपके मार्गदर्शन का हमेशा से ही स्वागत रहा है आदरणीय आप सभी इस विषय के अच्छे जानकार और मझे हुए फनकार हो आपके सुझाव निःसंदेह ही मेरी भलाई के लिए होते हैं इसमें अन्यथा लेने जैसा कुछ नहीं , आपके कहे अनुसार मैं इन दो शेरों को ग़ज़ल से जरुर ही हटा दूंगी आदरणीय,और ऐसे भी ये अन्त के तीन शेर मैंने बस यूं ही मस्ती भरे मन से कहे थे और चुकीं कहे थे तो ग़ज़ल के साथ यहाँ पोस्ट कर दिए , आपके मार्गदर्शन और आशीर्वाद की हमेशा जरूरत रहेगी यूं ही स्नेह बनाए रखें आदरणीय।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2020 at 4:45pm

आ. डिम्पल शर्मा जी, सादर अभिवादन । अन्तिम दो अशआरों को छोड़ दें तो बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by नाथ सोनांचली on July 30, 2020 at 11:22am

आद0डिंपल शर्मा जी सादर अभिवादन। अच्छा ग़ज़ल का प्रयास है। बधाई स्वीकार कीजिये। सम्भव हो तो अंतिम तीन शैर हटा दीजिये।

Comment by सालिक गणवीर on July 30, 2020 at 11:03am

मुहतरमा डिंपल शर्मा जी
आदाब
आपने पूरी  ग़ज़ल बहुत उम्दा कही है सिवाय आखिरी दो अश' आर के. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें.बेहतर  होता यदि आप   इन्हें एडिट करतींं या हटा ही देतींं.यह एक सुझाव है कृपया 

अन्यथा न लें.

Comment by Dimple Sharma on July 22, 2020 at 6:42am

आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'साहब आदाब, आपका इतना कीमती वक्त मेरी साधारण सी ग़ज़ल को मिला इसके लिए हृदय तल से आपकी आभारी रहूँगी, जी आपने जो भी सुझाव दिए हैं मैं उस हिसाब से अपनी इस ग़ज़ल में जरूर बदलाव करूंगी, बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय, आपका मार्गदर्शन और आपकी इस्लाह हौसला बढ़ाती है कृप्या आशीर्वाद यूं ही बनाए रखें।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 22, 2020 at 12:09am

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, मैं रवि शुक्ला जी के विचार से सहमत हूँ। 

नं 1से 7 तक अच्छे अश'आ़र हुए हैं उसके बाद के अश'आ़र भर्ती के हैं। आपकी ग़ज़ल को शे'र नं 7 तक के आधार पर दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ। कुछ सुझाव भी पेश कर रहा हूंँ :

//चल ज़ख्म पे मरहम ही लगाने के लिए आ/2  इस मिसरे के आग़ाज़ में 'चल' के बजाय 'आ' ज़्यादा मर्यादा-पूर्ण होगा।

//पत्थर हुए जाती हूं मैं पत्थर से भी ज्यादा       इस मिसरे के अख़ीर में आया सहीह लफ़्ज़ 'ज़ियाद:' १२२ मात्रिक है इसलिए मिसरे में यूँ बदलाव कर सकते हैं : "पत्थर हुए जाती हूं मैं पत्थर से ज़ियादा"

//ये बाज़ी यहाँ इश्क़ की मैं हार के बैठी

तू दर्द भरा गीत ही गाने के लिए आ /5//   इस शैर के ऊला के वाक्य विन्यास और सानी के शिल्प में गड़बड़ है। यूँ कर सकते हैं :

"ये बाजी यहाँ इश्क़ की मैं हार ही बैठी

तू दर्द भरा गीत सुनाने के लिए आ "     'बाजी' में नुक़्ता नहीं लगेगा। 

//रुसवाई भी होती है मुहब्बत के सफ़र में

मैं रूठ के बैठी हूँ मनाने के लिए आ/6     .... मिसरों में रब्त की कमी है, ऊला यूँ कर के देख सकते हैं :

"रुसवा जो किया मुझको मुहब्बत के सफ़र में "

//है चाँद जमीं पे भी बताने के लिए आ/7  .... ज़मीं में ज पर नुक़्ता लगा लें।  सादर। 

Comment by Dimple Sharma on July 21, 2020 at 5:06pm

आदरणीय Ravi Shukla जी नमस्ते,ग़ज़ल पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपका आदरणीय,और आपने जो महत्वपूर्ण सुझाव दिया है उसपर निश्चय ही अमल किया जाएगा,आगे से कोशिश करुंगी कुछ बेहतर कह पाने की , यदि इस ग़ज़ल में भी आपको कहीं कोई गुंजाइश लगती है तो कृप्या मार्गदर्शन करें आदरणीय बहुत शुक्रगुजार रहूंगी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-172

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार। विस्तार से दोष…"
Friday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Mar 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Mar 2
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Mar 1
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Feb 28
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service