For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,932)

दोहा पंचक. . . . क्रोध

दोहा पंचक. . . क्रोध

जितना संभव हो सके, वश में रखना क्रोध ।

घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित प्रतिरोध ।।

देना अपने क्रोध को, पल भर का विश्राम ।

टल जाएंगे शूल से, क्रोध जनित परिणाम ।।

शमन क्रोध का कीजिए, मिटता बैर समूल ।

प्रेम भाव की जिंदगी, माने यही उसूल ।।

रिश्ते होते खाक जब, जले क्रोध की आग ।

प्रेम विला में गूँजते, फिर नफरत के राग ।।

क्रोध बैर का मूल है, क्रोध घृणा की आग ।

क्रोध अनल के कब मिटे,…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 24, 2023 at 12:49pm — 4 Comments

दोहा सप्तक ..

दोहा - सप्तक...

गाफिल क्यों अंजाम से, तू आखिर नादान ।

तेरे इस अस्तित्व की, मिट्टी है पहचान ।।

धू -धू कर यह जिस्म जला, जले साथ अरमान ।

इच्छाओं की रुक गई, मैं - मैं  भरी उड़ान ।।

ढह जाएंगे सब यहाँ, पत्थर के प्रासाद ।

मलबे होगे दंभ के, रोयेंगे उन्माद ।।

साँसों का चप्पू चले, धड़कन करती नाद ।

चित्रित अधरों पर हुए, अधरों के  अनुवाद ।।

और -और की लालसा, मिटी न मिटे शरीर ।

भौतिक युग का आदमी , रहता सदा फकीर ।।

साथी वो किस काम के ,दें…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 21, 2023 at 12:24pm — No Comments

तिरंगा

हरा-केसरिया, श्वेत रंग का, तिरंगा झड़ा कहलाता है

हरियाली-साहस, सत्य दर्शाता

प्रतीक-एकता, अखंडता का बन जाता है॥

 

राम-कृष्ण-बुध जन्मे जहाँ पर, मन उस पवित्र भूमि को शीश नवाता है

आन-बान-शान भारत देश की

हर भारतीय की जान कहलाता है॥

 

सभी भाषाओं की जन्मधात्री, संस्कृत, जो सबसे पुरानी भाषा है

विभिन्न उत्कृष्ट संस्कार-संस्कृति की पवित्र…

Continue

Added by PHOOL SINGH on December 21, 2023 at 11:51am — No Comments

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22 / 112

अंधा आँखों का है हर शख़्स बता देगा तुम्हें

ख़ार खाया है ये जन्मों का दग़ा देगा तुम्हें

गुरु वो घंटाल ज़माने कभी सय्याद रहा

काट कर पर वो रखेगा जो सज़ा देगा तुम्हें

झाँसे में उसके न आया करो जानाँ कभी तुम

रहती दुनिया का दरिन्दा वो क़जा देगा तुम्हें

है नशा उसको सदारत का कई बज़्म सुना

ना तुम्हारा न वो मेरा ही जता देगा तुम्हें

है वो ख़ुदगर्ज़ निहायत कहीं हद से ज़ियादा

ख़ुद…

Continue

Added by Chetan Prakash on December 20, 2023 at 6:00pm — 2 Comments

आवाज़ों से जंग

आवाज़ों से जंग

उषा अवस्थी

आज प्रदूषण बढ़ रहा 

बदल-बदल कर रूप

बेचें झाड़ू , वाइपर

चला रिकाॅर्डिंग खूब

चाकू, कैंची औ छुरी

पैनी करते नित्य

मस्तक में छुरियाँ चलें

सुनें रिकॉर्डिंग तिक्त

चादर, कम्बल या बिकें

बने-बनाए वस्त्र

सतत रिकॉर्डिंग चल रही

कर वाणी निर्वस्त्र

असहनीय ध्वनियाँ,मचा

कानों में हुड़दंग

कैसे जीतेगा मनुज

आवाज़ो से…

Continue

Added by Usha Awasthi on December 18, 2023 at 11:55am — No Comments

दोहा त्रयोदशी

दोहा पंचक. . . .

साथ श्वांस के रुक गया, जीवन का संघर्ष ।

आँचल अंक विषाद के, मौन हुआ हर हर्ष ।।

जैसे-जैसे दिन ढले, लम्बी होती छाँव ।

काल समेटे जिन्दगी, थमते चलते पाँव ।।

इच्छाओं की आँधियाँ, आशाओं के ढेर ।

क्या समझेगी जिन्दगी, साँसों का यह फेर ।।

पगडंडी पक्की हुई, क्षीण हुए सम्बंध ।

अर्थ क्षुधा में खो गई, एक चूल्हे की गंध ।।

पत्थर सारे मील के, सड़क किनारे मौन ।

अपने अन्तिम अंक को, पढ़ पाया है कौन…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 17, 2023 at 11:30am — 2 Comments

हर साल ,जाते हुए साल

जाते हुए साल

एक बात पूछनी है  

सीधा सीधा सा बस एक सवाल

कि तुम हर साल बदलने वाला

केवलमात्र क्या एक अंक हो

अथवा समझते हो कि तुम निष्कलंक हो

सारी जिम्मेवारी समय के काँधों पर डाल

किसे बहलाते हो

कुछ बदल नहीं सकते

अथवा बदलना नहीं चाहते

तो फिर -फिर क्यों आते हो

एक चेतावनी समझ लेना

अब के तभी आना

जो यदि

बंद करा सको युद्ध को

मुक्त करा सको प्रबुद्ध को

अथवा वहीं रहना

किसी से न कहना

कि तुम हार गए हो

..........

मौलिक व…

Continue

Added by amita tiwari on December 15, 2023 at 12:00am — 1 Comment

ग़ज़ल दिनेश कुमार -- अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा

1212-- 1122-- 1212-- 22

अंधेरा चार सू फैला दमे-सहर कैसा

परिंदे नीड़ में सहमे हैं, जाने डर कैसा

ख़ुद अपने घर में ही हव्वा की जात सहमी है 

उभर के आया है आदम में जानवर कैसा

अधूरे ख़्वाब की सिसकी या फ़िक्र फ़रदा की

हमारे ज़हन में ये शोर रात-भर कैसा

सरों से शर्मो हया का सरक गया आंचल 

ये बेटियों पे हुआ मग़रिबी असर कैसा

वो ख़ुद-परस्त था, पीरी में आ के समझा है 

जफ़ा के पेड़ पे रिश्तों का अब…

Continue

Added by दिनेश कुमार on December 3, 2023 at 10:00am — 6 Comments

उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/१२१२/२२

*

सूनी आँखों  की  रोशनी बन जा

ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।

*

अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती

चैन  पाऊँ  कि  तू  नदी  बन  जा।२।

*

हो गया जग  ये  शीत का मौसम

धूप सी  तू  तो  गुनगुनी  बन जा।३।

*

मौत आकर खड़ी है द्वार अपने

एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।

*

मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल

आ के अधरों  पे  शायरी बन जा।५।

*

इस नगर  में  तो  सिर्फ  मसलेंगे

फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा।६।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2023 at 7:00am — 3 Comments

एक ताज़ा ग़ज़ल

2122 1122 1122 22

ख़्वाब से जाग उठे शाह सदा दी जाए

पकड़े जायें अभी क़ातिल वो सज़ा दी जाए

बख़्श दी जाए कहीं जान ख़वातीनों की

अब तो ज़ालिम को कड़ी कोई सज़ा दी जाए

घूमते हैं वो दरिन्दे भी नकाबों में अब तो

जितना जल्दी हो उन्हें मौत बजा दी जाए

लोग अच्छे ही परेशान हैं वहशी दरिन्दों

इन्तिहाँ हो गयी अब लौ वो बुझा दी जाए

ज़ात इन्साँ की पशेमाँ है ज़रायम से 'चेतन'

तूफाँ कोई तो उठा कर…

Continue

Added by Chetan Prakash on November 27, 2023 at 12:57pm — 2 Comments

ग़ज़ल

लगता है मेरे प्यारों को पैसा है मेरे पास

सच्चाई पर यही है कि क़र्ज़ा है मेरे पास

ए सी की रहने वाली तू मत प्यार कर मुझे

आवाज़ करता छोटा सा पंखा है मेरे पास

मुझसे बिछड़ के जूड़ा बनाती नहीं है अब

वो लड़की जिसका आज भी गजरा है मेरे पास

पापा ये मुझ से कहते हुए रो पड़े थे कल

कितने दिनों के बाद तू बैठा है मेरे पास

साया दिया था मैंने कड़ी धूप में जिसे

अब सिर्फ़ उसकी याद का साया है मेरे पास

अब…

Continue

Added by Md. Anis arman on November 23, 2023 at 12:39pm — 3 Comments

ग़ज़ल -- क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहे -- दिनेश कुमार

ग़ज़ल -- 221 2121 1221 212

क़दमों में तेरे ख़ुशियों की इक कहकशाँ रहे

बन जाए गुलसिताँ वो जगह, तू जहाँ रहे

ज़ालिम का ज़ुल्म ख़्वाह सदा बे-अमाँ रहे

पर कोई भी ग़रीब न बे-आशियाँ रहे

आ जाए जिन को देख के आँखों में रौशनी

वो ख़ैर-ख़्वाह दोस्त पुराने कहाँ रहे

हर दम पराए दर्द को समझें हम अपना दर्द

दरिया ख़ुलूसो-मेहर का दिल में रवाँ रहे

काफ़ी नहीं है दिल में फ़लक चूमने का ख़्वाब 

परवाज़ हौसलों…

Continue

Added by दिनेश कुमार on November 17, 2023 at 8:30am — 4 Comments

सुख या संतोष

दोनों में से क्या तुम्हें चाहिए सुख या के संतोष 

क्षणभंगुर सा हर्ष चाहिए, या जीवन भर का रोष 

खुशी का जीवन लम्हो सा है, अब आए अब जाए 

छोटी सी उदासी मन की पहाड़ हर्ष का ढाए 

खुशी स्वभाव से चंचल पानी, कल कल बहता जाए 

कभी…

Continue

Added by AMAN SINHA on November 9, 2023 at 1:36pm — No Comments

एक ताज़ा गज़ल

2121 2122 2121 212

खो गया सुकून दिल का कार हो गया जहाँ

गुम गया सनम भँवर में ख़ार हो गया जहाँ

कामयाबी तौलती दुनिया भरोसे जऱ ज़मी

फार्म जिनके हैं नहीं गुड़मार हो गया जहाँ

ज़िन्दगी जिसे कहा हमने कहीं छुपा गया

है निशान अपने ज़ालिम पार हो गया जहाँ

कार-ए-दुनिया और कुछ हैं और कुछ दिखें ख़ुदा

मारकाट हाल कारोबार हो गया जहाँ

तोड़ हद रहे सभी अब तो अदब जहान में

लाज लुट रही घरों मुरदार हो गया…

Continue

Added by Chetan Prakash on November 8, 2023 at 8:30pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक . . . .

लुप्त हुई संवेदना, कड़वी हुई मिठास ।

अर्थ रार में खो गए , रिश्ते सारे खास ।।

*

पहले जैसे अब कहाँ, मिलते हैं इन्सान ।

शेष रहा इंसान में, बड़बोला अभिमान ।।

*

प्रीत सरोवर में खिले, क्यों नफरत के फूल ।

तन मन को छिद्रित करें, स्वार्थ भाव के शूल ।।

*

किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।

भूल -भाल कर दुश्मनी , सबकी माँगें खैर ।।

*

शर्तों पर यह जिंदगी , काटे अपनी राह ।

सुध-बुध खो कर सो रही, शूल नोक पर चाह…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 5, 2023 at 7:46pm — 4 Comments

दिख रहे हैं हजार आंखों में

तेरे बोलों के ख़ार आँखों में
दिख रहे हैं हजार आंखों में

मैनें देखा ख़ुमार आँखों में
इश्क़ का बेशुमार आँखों में

इश्क है होशियार आँखों में
इश्क़ फिर भी गवार आंखों में


तेरी गलियों को छान कर जाना
क्या-क्या होता है यार आँखों में।

होठ बेशक हँसी से हैं फैले
दर्द पर बरकरार आँखों में।


'बाल' नादान है समझ तेरी
ढूंढती बस जो प्यार आँखों में।

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 3, 2023 at 9:43am — 7 Comments

सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221/2121/1221/212

****

सब से हसीन ख्वाब  का मंजर सँभालकर

नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।

*

उर्वर करेगा कोई  तो  फिर  से ये सोच बस

सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।

*

कीटों  के  प्रेत   नोच  के  हर  शब्द  ले  गये

रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।

*

पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम

नफरत के  दौर  प्यार  के  तेवर  सँभालकर।४।

*

फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा

जिस ने रखा है हाथ में…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2023 at 12:39pm — 3 Comments

किसे अपना कहेंं हम यहाँ

किसे अपना कहें हम यहाँ 

खंजर उसी ने मारी जिसको गले लगाया 

किससे कहें हाल-ए-दिल यहाँ 

हर राज उसी ने खोला जिसे हमराज़ बनाया 

किसे जख्म दिखाये दिल का 

हार घाव उसी ने कुरेदा जिसको भी मरहम लगाया …

Continue

Added by AMAN SINHA on October 27, 2023 at 10:21pm — 2 Comments

निछावर जिसपे मैंने ज़िंदगी की- ग़ज़ल

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ऊलुन

1222 1222 122

हज़ज मुसद्दस महजूफ़

———————————

निछावर जिसपे मैंने ज़िंदगी की,

उसे पर्वा नहीं मेरी ख़ुशी की

*

समझता ही नहीं जो दर्द मेरा,

निगाहों ने उसी की बंदगी की

*

वही इक शख़्स जो कुछ भी नहीं है,

हर इक मुश्किल में उसने रहबरी की

*

उसी का रंग है मेरे सुख़न में,

उसी से आबरू है शायरी की

*

उजाले गिर पड़े क़दमों पे आकर,

अंधेरों से जो मैंने दोस्ती की

*

अदीबों में है मेरा नाम…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 25, 2023 at 6:00am — 5 Comments

जीवन ...... दोहे

जीवन ....दोहे 

झुर्री-झुर्री पर लिखा, जीवन का  संघर्ष ।

जरा अवस्था देखती, मुड़ कर बीते वर्ष ।।

क्या पाया क्या खो दिया, कब समझा इंसान ।

जले चिता के साथ ही, जीवन के  अरमान ।।

कब टलता है जीव का, जीवन से अवसान ।

जीव देखता रह गया, जब फिसला अभिमान ।।

देर हुई अब उम्र की, आयी अन्तिम शाम ।

साथ न आया काम कुछ ,बीती उम्र तमाम ।।

जीवन लगता चित्र सा, दूर खड़े सब साथ ।

संचित सब छूटा यहाँ, खाली दोनों  हाथ…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 17, 2023 at 9:30pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
58 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
20 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service