दोनों में से क्या तुम्हें चाहिए सुख या के संतोष
क्षणभंगुर सा हर्ष चाहिए, या जीवन भर का रोष
खुशी का जीवन लम्हो सा है, अब आए अब जाए
छोटी सी उदासी मन की पहाड़ हर्ष का ढाए
खुशी स्वभाव से चंचल पानी, कल कल बहता जाए
कभी यहाँ है कभी वहाँ है स्थिर ना होने पाए
खूशी है फूटे गागर जैसा कभी पूरा ना पड़ने पाए
जिस गति से पहुंचे हम तक, दो गुनी चाल से जाए
जितना पास जगाए हममे अपने आने की राह
जाते समय अफसोस सहारे अलविदा हमें कह जाए
पर संतोष है पूजी के जैसी हर दिन बढ़ता जाए
चाहे समय हो ऊंचा नीचा हर समय काम ये आए
संतोष द्वार पर खड़ा सिपाही, कर्म से डीआईजी ना पाए
चाहे लोभ दिखा लो जितना, टस-से-मस ना हो पाए
संतोष सत्कर्मों का फल है, कठोर श्रम से आए
चंचल-चपल भटके मन को, एकाग्रचित कर जाए
संतोष गंभीर सागर के जैसा जिसमे सारा जग समाए
पर कुसंगति को अपने ऊपर स्थान ना देने पाए
आते इसके लगते वर्षों इसको, पर स्ठायी रह जाए
जिसके मन में स्थान बनाए वो जग जीतता जाए
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
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