-बस जरा बर्त्तन पटक देती हूँ,वे समझ जाते हैं।
-कि तू गुस्से में है?
-और क्या?
-तू भी न।
-तू भी क्या री?रातभर जगाते हैं।बर्त्तन मेरे,सुबह मेरी।
-पर मेरा काम तो इस तरह पटकने-झटकने से नहीं चलता है न।
-क्यूँ?
-वो सुन नहीं सकते री।
-तो फिर?
-क्या करूँ,मुझे तो बेलन ही भाँजना पड़ता है।
-धत्त तेरी!
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on December 27, 2017 at 10:04am — 12 Comments
बह्र - फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
झूठ का इश्तहार खूब चला।
इस तरह कारोबार खूब चला।
कोने कोने में मुल्क के साहब,
आप का ऐतबार खूब चला।
गाँव तो गाँव हैं नगर में भी,
रात भर अंधकार खूब चला।
जो हक़ीक़त से दूर था काफी,
वो भी तो बार बार खूब चला।
नोट में दाग थे बहुत लेकिन,
नोट वो दाग़दार खूब चला।
सबने देखा है किस अदा के साथ,
बेवफा तेरा प्यार खूब चला।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ram Awadh VIshwakarma on December 26, 2017 at 10:14pm — 20 Comments
अरकान : 2122 2122 2122 212
एक तरफ़ा इश्क़ मेरा बेअसर होने को है
ख़त्म यानी ज़िन्दगी का ये सफ़र होने को है
कहने को तो सर पे सूरज आ गया है दोस्तो
ज़िन्दगी में पर हमारी कब सहर होने को है
हर किसी ने हाथ में पत्थर उठाये देखिये
और फिर उनका निशाना मेरा सर होने को है
आपको चाहा था मैंने बेतहाशा टूट कर
अब यही तकलीफ़ मुझको उम्र भर होने को है
करना है कुछ आपको तो बस दुआएँ कीजिए
अब दवाओं का कहाँ मुझ पे असर होने को…
Added by Mahendra Kumar on December 26, 2017 at 10:00pm — 18 Comments
हिन्दी साहित्य में ‘बरवै’ एक विख्यात छंद है . इस छंद के प्रणेता सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक महाकवि अब्दुर्रहीम खानखाना 'रहीम' माने जाते हैं . कहा जाता है कि रहीम का कोई दास अवकाश लेकर विवाह करने गया. वह जब वापस आया तो उसकी विरहाकुल नवोढा ने उसके मन में अपनी स्मृति बनाये रखने के लिए दो पंक्तियाँ लिखकर उसे दीं-
नेह-छेह का बिरवा चल्यो लगाय I
सींचन की सुधि लीजो मुरझि न जायII
रहीम के साहित्य-प्रेम से तो सभी परिचित थे . अतः उस दास ने ये पंक्तियाँ रहीम…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2017 at 9:00pm — 6 Comments
नदी के ऊपर का पुल पुल पर से रात और दिन गाड़ियों की आवाजाही को देख उसके नीचे बहती हुई नदी ने पूछा ," तुमको परेशानी नहीं होती ! दिन भर बजन लदा रहता है तुमपर । " " अरी पागल ! ये भी कोई बात है भला , अब लोग मुझपर से गाडी नहीं ले जायेंगे तो तुझे पार कैसे करेंगे।" पुल की इस बात पर नदी हँस पड़ी। पुल ने पूछा ," इसमें हँसने की क्या बात है। तुम वर्षों से यहाँ से बहती आई हो, तुम्हारा पाट भी विशाल है और प्रवाह भी। पर सच कहूँ तो कभी कभी मुझे डर लगता है तुमसे।" " डर और मुझसे!वो क्यों भला?" " जब बाढ़ की स्थिति…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 26, 2017 at 8:23pm — 3 Comments
"हैलो.., गुड मॉर्निंग मैडम!"
"गुड मॉर्निंग, कौन बोल रहे हैं?"
"मैडम ! हम एस बी आई से बोल रहे हैं।
मैडम ! आपका एटीएम ब्लॉक होने वाला है, यदि आप चाहती हैं कि आपका एटीएम यथावत चालू रहे, तो आप अपने एटीएम का नम्बर वेरिफाई करवाएं।"
"ये आप क्या कह रहे हैं?"
"घबराइए नहीं मैडम ! यदि आप इस असुविधा से बचना चाहिती हैं तो अपना एटीएम नम्बर बतलायें।"
"भाई साहब! नम्बर तो मैं बता दूं, लेकिन थोड़ी देर बाद कॉल कीजियेगा ।पहले जरा इनकी खबर ले लूं इनकी हिम्मत कैसे हुई मेरा…
Added by Rahila on December 26, 2017 at 3:30pm — 11 Comments
अरकान-: 2122 1212 22
ख़ुद से ये शर्मसार सा क्यों है
आदमी बेक़रार सा क्यों है
मेरे दिल ने सवाल ये पूछा,
नेता हर इक गंवार सा क्यों है
आने वाले नहीं हैं अच्छे दिन,
फिर हमें इन्तिज़ार सा क्यों है
मैंने कुछ भी नहीं छुपाया फिर
तुझमें ये इंतिशार सा क्यों है
मैंने जब माँग ली मुआफ़ी,फिर
उनके दिल में ग़ुबार सा क्यों है
उसकी फ़ितरत से ख़ूब वाक़िफ़ हैं,
'फिर हमें एतिबार सा…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 1:47pm — 21 Comments
2122--2122--212
भाग्य तेरे कर्म का परिणाम है
तुझ पे ही निर्भर तेरा अंजाम है
मेरे हमराही को भी ठोकर लगी
मेरे दिल को अब ज़रा आराम है
सिर्फ़ सच की राह पर चलता हूँ मैं
आबला-पाई मेरा इनआ'म है
उसकी मर्ज़ी है अता कुछ भी करे
बस दुआ करना हमारा काम है
शख़्सियत अपनी निखारो मुफ़्त में
मुस्कुराहट का न कोई दाम है
हम फ़क़ीरों की नज़र से देखिये
जिस्म इक मन्दिर है पावन धाम है
हम यथा सम्भव मदद सब की करें
आदमीयत का यही पैग़ाम…
Added by दिनेश कुमार on December 26, 2017 at 6:46am — 18 Comments
1222 1222 122
हरम में अब समझदारी से बचिए ।
हसीनों की नशातारी से बचिए ।।
अगर ख्वाहिश जरा सी है सुकूँ की ।
रकीबों की वफादारी से बचिए ।।
यहाँ दुश्मन से कब खतरा हुआ है ।
यहाँ अपनों की गद्दारी से बचिए ।।
नियत सबकी बड़ी खोटी दिखी है ।
नगर में आप मुख्तारी से बचिए ।।
रहेगी आपकी भी शान जिंदा ।
जरूरत है कि बेकारी से बचिए ।।
है करके कुछ दिखाने की तमन्ना ।
तो पहले…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 26, 2017 at 2:00am — 8 Comments
‘सर—---सर---‘, उसने हकलाते हुए कहा –‘सर, मेरे पास जवान, सुन्दर और हसीन लड़कियों की कोई कमी नहीं है. आप उनमे से किसी को चुन लें, पर भगवान् के लिए इस लडकी को छोड़ दें’- उसने बॉस से गिडगिडाते हुए कहा .
‘अच्छा !-----मगर इस लडकी में ऐसा क्या है जो तुम इस पर इतना मेहरबान हो ?’
‘दरअसल------दरअसल -----‘ उससे कहते न बना .
‘अरे बिदास कहो. हमसे क्या डरना ?’
‘सर, वह मेरी बेटी है‘ उसका हलक सूख गया . बॉस की आँखों में विस्मय भरी चमक आयी –‘ अरे ! तब तो यह नामुमकिन है कि हम इस जवान…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2017 at 8:58pm — 7 Comments
पीठ के नीचे ..
बेघरों के
घर भी हुआ करते हैं
वहां सोते हैं
जहां शज़र हुआ करते हैं
पीठ के नीचे
अक्सर
पत्थर हुआ करते हैं
ज़िंदगी के रेंगते सफ़र हुआ करते हैं
बेघरों के भी
घर हुआ करते हैं
भोर
मजदूरी का पैग़ाम लाती हैं
मिल जाती है मजदूरी
तो पेट आराम पाता है
वरना रोज की तरह
एक व्रत और हो जाता है
बहला फुसला के
पेट को मनाते हैं
तारों को गिनते हैं
ख़्वाबों में सो जाते हैं
मज़दूर हैं…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2017 at 7:00pm — 6 Comments
इक शाम दे दो ...
तन्हाई के आलम में
न जाने कौन
मेरे अफ़सुर्दा से लम्हों को
अपनी यादों की आंच से
रोशन कर जाता है
लम्हों के कारवाँ
तेरी यादों की तपिश से
लावा बन
आँखों से पिघलने लगते हैं
किसी के लम्स
मेरी रूह को
झिंझोड़ देते हैं
अँधेरे
जुगनुओं के लिए
रस्ते छोड़ देते हैं
तुम अरसे से
मेरे ज़ह्न में पोशीदा
इक ख़्वाब हो
मेरे सुलगते जज़्बात का
जवाब हो
अब सिवा तेरी आहटों के…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2017 at 6:30pm — 6 Comments
16,16 पर यति,चार पद, दो-दो पद समतुकांत
बढ़ती जाती है आबादी,रोजगार की मजबूरी है
पैसे की खातिर देख बढ़ी,किस-किस से किसकी दूरी है
उस बड़े शहर में जा बैठे, घर जहाँ बहुत ही छोटे हैं
विचार महीन उन लोगों के, जो दिखते तन के मोटे हैं
पहले गाँवों में बसते थे,घर आँगन मन था खुला-खुला
थोड़े में भी खुश रहते थे,हर इक विपदा को सभी भुला
कोई कठिनाई अड़ी नहीं,मिल उसका नाम मिटाते थे
जो रूखा-सूखा होता था,सब साथ बाँट कर खाते थे
तब धमा चौकड़ी होती…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on December 25, 2017 at 2:21pm — 12 Comments
1.
शायद आज बच जाओ
साम दाम दण्ड भेद से
मगर एक कैमरा
नज़र रखे है
हर करतूत पर
बिना साम दाम दण्ड भेद के .....
2.
मत उलझाइये खेल
मत कीजिये घाल-मेल
सीधी है ... सीधी ही रहने दीजिये
जिंदगी की रेल
3.
उठ रहे हैं बच्चे
सूरज के जागने से पहले
ठिठुर रहे हैं बच्चे
पीठ में बोझ लिए
झेल रह हैं बच्चे
भविष्य का दण्ड…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 25, 2017 at 1:30pm — 10 Comments
कार्यकर्त्ता:मंत्रीजी से मिलना है।
पीए:नहीं मिल सकते।
कार्यकर्त्ता:क्यूँ?
पीए:माननीय अभी (......से ) बेगुनाही का प्रमाण पत्र खरीदने गये हैं।
का.:क्या?
पीए:अरे विरिधियों ने घोटाले में फँसा दिया है न।
का.:अच्छा्! तो डिग्री का मामला है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on December 25, 2017 at 12:47pm — 8 Comments
1222, 1222, 1222, 1222
चलो ये मान लेते हैं कि दफ़्तर तक पहुँचती है।
मगर क्या वाकई ये डाक, अफ़सर तक पहुँचती है।
नज़र मेरी सितारों के बराबर तक पहुँचती है।
दिया हूँ, रोशनी मेरी हर इक घर तक पहुँचती है।
वहां कैसा नज़ारा है, चलो देखें, ज़रा सोचें,
नज़र सैयाद की चींटी के अब पर तक पहुँचती है।
शरीफ़ों की हवेली में ये आहें गूँजती तो हैं,
ज़रा धीरे भरो सिसकी, ये बाहर तक पहुँचती है।
किसी से भी पता पूछा नहीं उसने कभी…
ContinueAdded by Balram Dhakar on December 25, 2017 at 11:07am — 18 Comments
आउट ऑफ़ कवरेज़
साथ-साथ बैठे हैं और दूर कहीं इंगेज हैं
4जी के दौर में घर आउट ऑफ़ कवरेज़ है |
लाइक है पॉक है ट्रेल है जोक् है ना कोई रोक है
बैठे-बैठे सारी दुनिया मुट्ठी में कर लेने का क्रेज़ है |
अंधी दौड़ है या भेड़ो का दौर है किसे किसका गौर है
अस्मिता की लड़ाई ना मालूम कौन रियल कौन फ़ेक है |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 24, 2017 at 10:15pm — 5 Comments
1.
सच का कहीं दूर तक
नहीं कोई पता है।
हाँ ये सच है
कि बहुत कुछ
झूठ पर टिका है।
2.
रेत मुठ्ठी से जब
फिसल जाती है ,
जिंदगी कुछ कुछ
समझ में आती है।
3.
रोज रोज के तजुर्बे
यूँ बीच बीच में
बांटा न करो ,
ये जिंदगी गर
एक सबक है तो
उसे पूरा तो हो लेने दो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on December 24, 2017 at 7:52pm — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
हक़ीक़त की जुबाँ होकर सदाक़त की सदा होकर
मिला क्या जिंदगी तुझको बता यूँ आइना होकर
उड़ा कर ले गई आँधी सभी अरमाँ सभी सपने
लुटे हम तो ज़माने में मुहब्बत के ख़ुदा होकर
मुहब्बत के चमन में गुल मुक़द्दस खिल नहीं पाये
तगाफ़ुल और रुसवाई मिली बस बावफ़ा होकर
तआरुफ अब मिला जाकर हमें अपनी मुहब्बत का
बनेगी दास्तां सच्ची फ़क़त अब तो फ़ना होकर
हुई सब आम वो बातें जिन्होंने लांघ दी चौखट
तमाशा बन गये आँसू इन…
Added by rajesh kumari on December 24, 2017 at 5:58pm — 20 Comments
2122 2122 212
मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था
दोष मुझ पर किन्तु मैं निर्घोष था |
दोष मढने के लिए था चाहिए
देखना इसमें जो’ भी गुणदोष था |
दोष संस्थापन कभी होता था नहीं
पुष्टि वह कानून का उद्घोष था |
किन्तु उनका दोष भी ज्यादा नहीं
शत्रु का तो दृष्टि का वह दोष था |
जान कर भी दोस्त सब रहते तने
मित्र गण भी बोलते दुर्घोष था |
अब तलक थे मानसिक सब कष्ट…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 24, 2017 at 2:30pm — 4 Comments
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