इक शाम दे दो ...
तन्हाई के आलम में
न जाने कौन
मेरे अफ़सुर्दा से लम्हों को
अपनी यादों की आंच से
रोशन कर जाता है
लम्हों के कारवाँ
तेरी यादों की तपिश से
लावा बन
आँखों से पिघलने लगते हैं
किसी के लम्स
मेरी रूह को
झिंझोड़ देते हैं
अँधेरे
जुगनुओं के लिए
रस्ते छोड़ देते हैं
तुम अरसे से
मेरे ज़ह्न में पोशीदा
इक ख़्वाब हो
मेरे सुलगते जज़्बात का
जवाब हो
अब सिवा तेरी आहटों के
कोई आहट नहीं सुहाती
चली भी आओ
कि इन्तिज़ार की अब
इन्तिहा हो गयी
मुन्तज़िर हूँ जिस लम्हे का
उस लम्हे को अंजाम दे दो
मेरी शाम को
इक नाम दे दो
मेरी
दीवानगी को
अपनी
इक शाम दे दो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरनीय महेन्द्र कुमार जी सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभारी है। नेट प्रॉब्लम के कारण आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... प्रस्तुति को अपनी स्नेहाशीष से मान देने का दिल से आभार। नेट प्रॉब्लम के कारण आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय नादिर ख़ान साहिब , आदाब . प्रस्तुति की आत्मीय सराहना एवं सुझाव के लिए का दिल से आभार। नेट प्रॉब्लम के कारण आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
अच्छी भावपूर्ण कविता है आ. सुशील सरना जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत सुंदर और जज़्बाती कविता,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
लम्हों के कारवाँ
तेरी यादों की तपिश से
लावा बन
आँखों से पिघलने लगते हैं ... सुंदर भावपूर्ण रचना हुयी है आदरणीय सुनील सरना जी
जज़्बात अपने आप में बहुवचन है
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online