For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

July 2014 Blog Posts (174)

ग़ज़ल:वो भूलने का असर यादगार से कम था(भुवन निस्तेज )

कहाँ तूफान था वो तो बयार से कम था

वो भूलने का असर यादगार से कम था



खयाल आते ही मुरझाये फूल खिलते थे

गुमाँ-ए-वस्ल कहाँ इस बहार से कम था



छुपाके अश्क तबस्सुम उधार ले ली थी

कहाँ ये चेहरा मेरा इश्तेहार से कम था



वो याद मुझको किये रात दिन रहा ऐसे

मेरा रक़ीब कहाँ तेरे यार से कम था



खरीददार सा आँखों में रौब था सब के

वो घर कहाँ किसी चौक-ओ-बाज़ार से कम था



  मैं ग़मज़दा था, मै निस्तेज था औ' घायल भी

मैं मुन्तसिर था मगर अब की…

Continue

Added by भुवन निस्तेज on July 31, 2014 at 10:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२  २२  २२  २

 

दीवारों को दर कर लें

ऐसा अपना घर कर लें

 

वरना होगा शोर बहुत

ज़ख्मों को अक्षर कर लें

 

झुकने को तैयार रहे

ऐसा अपना सर कर लें

 

मान बढ़ेगा नारी का

लज्जा को ज़ेवर कर लें

 

है कीमत जीवन की ,गर

यादों को हम जर कर लें

 

जीना आसां होगा , गर

गुमनाम हमसफ़र कर लें

 

मौलिक व अप्रकाशित

Added by gumnaam pithoragarhi on July 31, 2014 at 9:30pm — 7 Comments

डायरी और उसके पन्ने ...

धूल में दबी हुयी ये डायरी

जिसकी एक एक परत की हैं ये यादें

हर एक सफा तुम्हारी याद है

.... न जाने कहाँ कहाँ रखा उसे

..... आलमारी मे ठूसा

..... बक्से में दबाया

.... ऊपर टाँड़ पर रखा

अटैची मे रखा ....

उसके पन्नों के रंग उतर गए

मगर लिखावट वही रही

आज भी देखकर उन सफ़ों को

और आपके उन हिसाबों को देखकर

उन हिसाबों मे हमारा भी अंश हैं

जिन्हे आज देखकर महसूस करता हूँ

उन सफ़ों पे लिखा आपका हिसाब

दूध वाले…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on July 31, 2014 at 8:30pm — 10 Comments

सहारा (लघु कथा)

कुवत्स ने पिता को देखा जिनके दोनों नाक में आक्सीजन  की नली लगी थी I अगर स्वस्थ होते तो आज ही के दिन उन्हें रिटायर होना था I उसे डाक्टर के शब्द याद आये –‘कुछ बचा नहीं, ज्यादा से ज्यादा दो दिन, बस I’ बेटे ने सोचा अगर आज कैजुअलिटी न हुयी तो मुफ्त की नौकरी तो जायेगी ही, बीमा अदि का पूरा पैसा भी नहीं मिलेगा ---- I

उसने चोर-दृष्टि से इधर –उधर देखा I आस-पास कोई न था I अचानक आगे बढ़कर उसने एक नाक से नली हटा दी I फिर वह दबे पांव कमरे से बाहर निकल गया और कारीडोर में रिश्तेदारों के बीच…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 31, 2014 at 7:30pm — 30 Comments

मुक्तक



इस पार आ रहे हैं कुछ जाने माने लोग

उस पार जा रहे हैं कुछ जाने माने लोग

कैसी है राम राम ये कैसी सलाम है

पहचान नहीं पा रहे कुछ जाने माने लोग



फिर कई सूत्र नयी धुन के रुई निकले हैं

तंग कुर्ते पतंग लहँगे…

Continue

Added by पं. प्रेम नारायण दीक्षित "प्रेम" on July 31, 2014 at 9:36am — 5 Comments

दोहा (प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा)

मात्रा तेरह विषम में  ग्यारह सम का मान

दोहा छंद सदा रचें  इसका यही विधान

पाँव  पाँव  की बात है  पूत सपूत कपूत

श्रेणी मेरी कौन सी  जानू हो अभिभूत



चला दौर प्रतियोगिता आदी अंत न छोर

सुन सुन सब जन खुश हुए मैं  भी भाव विहोर

प्रथम बार आया मजा दोहों की बारात

जाग जाग  पढता रहा फिर हो गया प्रभात

सखा  मगन बंधे बंद सजा तोरण द्वार

करें तिलक है कवि जगत  स्वागत है सरकार

ज्ञानी जन मिल बैठिये मंदिर…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 31, 2014 at 9:30am — 5 Comments

घोड़े नहीं रहे --डा० विजय शंकर

घोड़े नहीं रहे , घोड़ों का युग नहीं रहा

मेंढ़क हैं , तरह तरह के मेंढ़क,

हरियाली है उनकीं , हरे हरे से मेंढ़क,

उछलते , कूदते , फांदते , मेंढ़क

न अश्व रहे , न अश्वपुत्र , न ही अश्वपति

न लम्बी दौड़ , न ऊंची कूद ,

न रही कहीं वो गति ,

मीटर दो मीटर की दौड़ें हैं ,

फुट दो फुट ऊंची कूदें हैं ,

आस पास तक गूंज ले

बस ऐसी ही आवाजें हैं ।

उम्मीदों के क्या कहने ,

अरमान वही घोड़ों जैसे ,

नाल हो , जीन हो ,

घोड़े वाली कलगी हो ,

ऊंचाई से… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 31, 2014 at 9:00am — 24 Comments

तुम्हारा पहला प्यार

तुम्हारा पहला प्यार

सरिता के दोनों तटों को सहलाता कल-कल करता –

अबाध गति सा बह रहा था हमारा प्यार।

वसंती हवा की मदिर सुगंध लिए उन्मुक्त-

सी थी हमारी मुस्कान,

धुले उजले बादलों में छुपती-छुपाती –

इंद्र्धनुष जैसी थी हमारी उड़ान ।

हवा के झौंके ने सरकाया था दुपट्टा मुख से-

तुम अपलक निहारते रहते,

बस तुम ही हो मेरा पहला प्यार-

धीरे से मधुर शब्दों में कहते ।

आखिर वो सलौना सा दिन आ ही गया,

जिस का…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 6:00pm — 20 Comments

अतुकांत कविता

सोचा था आईने की तरह

साफ़ रखूँगी अपना चेहरा

पर कुछ तो है जो छिपा जाती हूँ

यूँ भाव चेहरे के बदल लेती हूँ

कि कहीं प्रतीयमान न हो जाये|



बोलती थी कभी बेधड़क हो

कुछ तो है जो किसी कोने में

मौनव्रत रख बैठ जाती हूँ

कि कही कुछ प्रतीप न हो जाये|



आँखों में भी दिखता था कभी

दूसरे की गलत बातो का प्रतिकार

पर किसी का तो डर है जो

अब आँखों को झुका लेती हूँ…

Continue

Added by savitamishra on July 30, 2014 at 3:30pm — 20 Comments

एक ग़ज़ल..दिन सुहाने आ गए.

*एक ग़ज़ल 



बारिशों का दौर आया दिन सुहाने आ गए है.

जल भरे बादल धरा को गुदगुदाने आ गए हैं.

++

झड़ चुकीं थीं पत्तियां सब दिख रहीं वीरान सी वो,

फूल फिर से डालियों पर...... मुस्कुराने आ गए है.

++

मंदिरों ने प्रार्थना की मस्जिदों ने दी अजानें,

रहमतों को मेघ लेकर जल गिराने आ गए हैं.

++

भीगते सारे महल…

Continue

Added by harivallabh sharma on July 30, 2014 at 11:00am — 22 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
( ग़ज़ल )पर यहीं पर करार सा है कुछ -- गिरिराज भंडारी

2122    1212  22 /112  

पर यहीं  पर करार सा  है कुछ

****************************

उजड़ा  उजड़ा दियार सा है कुछ

पर यहीं  पर करार सा  है कुछ 

 

गर्मियाँ  खून  में  कहाँ  बाक़ी

गर्म हूँ , तो बुखार सा  है कुछ

 

खूब बोले थे खुल के, क्यूँ आखिर

बच गया फिर, उधार सा है कुछ

 

दिल को  बेताबियाँ नहीं  डसतीं

प्यार है, या कि प्यार सा है कुछ

 

फूल कलियों में  खूब  चर्चा  है

अब ख़िंज़ा मे उतार सा  है…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 30, 2014 at 10:30am — 26 Comments

बचपन के जज़्बात

जाने कहाँ विलुप्त हो गए बचपन के एहसास

हमसे बहुत दूर हो गए ममता भरे हाथ।

        

जिस प्यार के तले सीखा था जीने का अंदाज

अकेला छोड़ उड़ गए सुनहरे परवाज़

        

अपने जज़्बातों का मुकाम पाने को

बेताब है अपना नया घरौदा बनाने को

       

क्या पता किससे मिले, बिछड़े किसी से

कौन कहेगा तू रहना खुशी से,

        

जमाने की हाफा-दाफी ने भुला दिया-

अपनों के प्यार की दौलत को

ऊंचा उठने के मनोरथ ने मिटा…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on July 29, 2014 at 11:30pm — 18 Comments

ग़ज़ल- लोगों को ईद पर खुशी होगी।

चाँद की आँख में नमी होगी

लोगों को ईद पर खुशी होगी

 

चाँद हर रोज देखता है तुम्हें,

आपकी आज बेबसी  होगी

 

जिंदगी रोज खून से लथपथ,

आज कैसे ये जिंदगी होगी

 

गर्दनें काट कर दिखाते हो,

क्या खुशी फिर भी ईद की होगी

 

अन्ध-विश्वास से लडाई है,

अब लडाई ये रोकनी होगी 

 

छोड दो अपना-अपना कहना उसे,

इस तरह खत्म दुश्मनी होगी

 

आज इनसानियत है खतरे में,

क्या वजह है ये सोचनी…

Continue

Added by सूबे सिंह सुजान on July 29, 2014 at 10:00pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कब-कब दामन में आग लगी कब बरसा पानी कह देंगे (ग़ज़ल 'राज')

२२   २२  २२  २२  २२  २२  २२  २२  

अवशेष चिनारों के तुमसे आफ़ात पुरानी  कह देंगे

हालात वहाँ कैसे बिगड़े खुद अपनी जुबानी कह देंगे

 

 दीवारें धज्जी धज्जी सी हर छत दिखती उधड़ी उधड़ी                     

 आसार लहू के अक्स तुम्हें बेख़ौफ़ कहानी कह देंगे

 

दिखते पर्वत सहमे-सहमे औ गुम-सुम से झरने नदियाँ   

कब-कब दामन में आग लगी कब बरसा पानी कह देंगे  

 

जो साथ जला करते थे कभी आबाद रहे जिनसे आँगन

वो आज अल्हेदा चूल्हे खुद दिल की…

Continue

Added by rajesh kumari on July 29, 2014 at 9:48pm — 21 Comments

श्राद्ध (लघुकथा)

"अरे पनीर की सब्ज़ी कहा है ? जल्दी लाओ , यहाँ ख़त्म हो गयी |"

बड़े भैया ने आवाज़ लगायी और आगे बढ़ गए | कई पंगतों में लोग बैठ कर भोजन कर रहे थे , काफी गहमागहमी थी दरवाजे पर | सारे रिश्तेदार और अगल बगल के गांव से भी लोग खाने आये हुए थे | थोड़ी दूर ज़मीन पर कुछ और लोग भी बैठे थे जो हर पंगत के उठने के बाद पत्तल वगैरह बटोरते , उसे ले जाकर किनारे रख देते और जो कुछ भी खाने लायक बचा होता था , वो सब उनके बर्तनों में रख लेते थे |

खटिया पर लेटे हुए बाबूजी सब देख रहे थे | उसके दिमाग में पिछले कुछ…

Continue

Added by विनय कुमार on July 29, 2014 at 5:00pm — 21 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दादी, हामिद और ईद (लघुकथा) // --सौरभ

हामिद अब बड़ा हो गया है. अच्छा कमाता है. ग़ल्फ़ में है न आजकल !

इस बार की ईद में हामिद वहीं से ’फूड-प्रोसेसर’ ले आया है, कुछ और बुढिया गयी अपनी दादी अमीना के लिए !

 

ममता में अघायी पगली की दोनों आँखें रह-रह कर गंगा-जमुना हुई जा रही हैं. बार-बार आशीषों से नवाज़ रही है बुढिया. अमीना को आजभी वो ईद खूब याद है जब हामिद उसके लिए ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है.

".. कितना खयाल रखता है हामिद ! .. अब उसे रसोई के ’बखत’ जियादा जूझना नहीं…

Continue

Added by Saurabh Pandey on July 29, 2014 at 3:00pm — 61 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२  २२  २२   २२

 

सन्नाटा भी पसरा सा है

उसका कमरा बिखरा सा है

 

अब तुम पास नहीं हो ,शायद

उसका मुखड़ा उतरा सा है

 

बुत  से कैसा कहना सुनना

हाफ़िज़ भी तो बहरा सा है

 

जीवन हुआ दिसंबर जैसा

आँखों में क्यों कुहरा सा है

 

देख के तुझे लगता है ये

चाँद कांच का कतरा सा है

 

गुमनाम बना लो घर कोई

अब खंजर का खतरा सा है

 

मौलिक व अप्रकाशित

 गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on July 29, 2014 at 2:30pm — 5 Comments

पहचान...(लघुकथा)

बचपन से देवेश को एक तिरष्कार, जो कभी मोहल्ले के दूसरे बच्चों या उनके पालकों द्वारा झिड़की भरे अंदाज से मिलता रहा था. इस वजह से देवेश का बचपन हमेशा एक डर और निरंतर टूटे  हुए आत्मबल में गुजरा. इन्ही मापदंडों के अनुसार अपनी पहचान को तरसते, आज वो बड़ा हो चुका है. निकला है एक सामजिक कार्यक्रम में शामिल होने को, अपनी एक पहचान और बहुत सारा आत्मबल लेकर.... भीड़ में जो उसे पहचानते है वो लोग उसे अनदेखा कर रहे थे . और जो उसे नही पहचानते , वो लोग जानने की कोशिश में लगे हुए है.....

“अरे..!…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on July 29, 2014 at 11:16am — 24 Comments

कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

ईद मनाये हम सभी गले मिले सब आज

सर्व धर्म सद्भाव के अकबर थे सरताज |

अकबर थे सरताज, सभी का मान बढाया

नवरत्नों के साथ, गर्व से राज चलाया

सभी तीज त्यौहार सुखद अनुभूति कराये

बढे ह्रदय सद्भाव सभी अब ईद मनाये |…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 29, 2014 at 10:30am — 10 Comments

दोहे।

दिनकर मनमाना हुआ, गई धरा जब ऊब।

सूर्य रश्मियाँ रोक के, ......मेघा बरसे खूब।



त्राही दुनियां में मची, संकट में सब जीव।

बरखा रानी आ गई, .....कहे पपीहा पीव।



झूम रहे पत्ते सभी, पवन गा रही गीत।

वन्दन बरखा का करें, निभा रहें हैं रीत।



रंग धरा के खिल गए, शीतल पड़ी फुहार।

वन कानन नन्दन हुए , झूम उठा संसार।



पुष्प सभी हैं खिल उठे, जल की पड़ी फुहार।

भ्रमरों ने गुंजन किया, तितली ने मनुहार।



जल निमग्न धरती हुई, जन जीवन फिर…

Continue

Added by seemahari sharma on July 29, 2014 at 10:30am — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service