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Amod Kumar Srivastava
  • Male
  • Pilibhit, Uttar Pradesh
  • India
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"इस रात की खामोशी में, मुझे चीखने दो,फिर एक बार, मैं ठहर जाऊंगा ....चरागों का धुआं कुछ कह गया,जैसे लाचार मौसम की थम-सी गई सांसें,बहकी हुई हवाओं में खुद को खो रही हैं ...रात ने बादलों की रजाई ओढ़ ली है,जब सुबह का सूरज छत से उतर कर आंगन में बिखर जाएगा,गेंदे जल उठेंगे,लेकिन रातरानी की चमक मंद पड़ जाएगी ...तुलसी के पत्ते की ओस में, तुम धूप को ओढ़ लेना,जब मेरी याद तुम्हारी पलकों में छलक उठेगी,वह रिश्ता भी बह उठेगा,जो कभी ठहरा नहीं था तुम्हारे जीवन के तट पर ....जिसे मैं कह नहीं पाया,वह रिश्ता अब…See More
Oct 16, 2024

Profile Information

Gender
Male
City State
Bareilly, Uttar Pradesh
Native Place
Jaunpur, Uttar Pradesh
Profession
Service

Amod Kumar Srivastava's Blog

संबंध

"इस रात की खामोशी में, मुझे चीखने दो,

फिर एक बार, मैं ठहर जाऊंगा ....

चरागों का धुआं कुछ कह गया,

जैसे लाचार मौसम की थम-सी गई सांसें,

बहकी हुई हवाओं में खुद को खो रही हैं ...

रात ने बादलों की रजाई ओढ़ ली है,

जब सुबह का सूरज छत से उतर कर आंगन में बिखर जाएगा,

गेंदे जल उठेंगे,

लेकिन रातरानी की चमक मंद पड़ जाएगी ...

तुलसी के पत्ते की ओस में, तुम धूप को ओढ़ लेना,

जब मेरी याद तुम्हारी पलकों में छलक उठेगी,

वह रिश्ता भी बह उठेगा,

जो कभी ठहरा… Continue

Posted on October 10, 2024 at 2:37pm

पच्चईयाँ ( नाग पंचमी )

तीन दिन पहले से ही 

सच कहूँ तो एक हफ्ते पहले से ही 

पच्चईयाँ (नाग पंचमी) का 

इंतजार रहता था .... 

एक एक दिन किसी तरह 

से काटते हुये 

आखिर, पच्चईयाँ आ ही जाती थी 

पच्चईयाँ वाले दिन 

सुबह ही सुबह 

अम्मा पूरा घर 

धोती थी, हम सब को कपड़े 

पहनाती थी 

सुबह सुबह ही 

गली मे 

छोटे गुरु का बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो 

कहते हुये बच्चे नाग बाबा 

की फोटो बेचते थे 

हम वो…

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Posted on June 27, 2015 at 7:00am — 6 Comments

गर्मी बहुत है

सुनो, 

गर्मी बहुत है 

अपने अहसासों की हवा 

को जरा और बहने दो 

यादों के पसीनों को 

और सूखने दो 

सुनो, 

गर्मी बहुत है 

गुलमोहर के फूलों 

से सड़कें पटी पड़ी हैं 

ये लाल रंग 

फूल का 

सूरज का 

अच्छा लगता है 

अपने प्यार की बरसात को 

बरसने दो 

बहुत प्यासी है धरती 

बहुत प्यासा है मन 

भीग जाने दो 

डूब जाने दो 

सुनो,

गर्मी बहुत है .... 

Posted on June 25, 2015 at 7:20am — 5 Comments

खेल और उसका खेला

 शाम हो रही है 

सूरज का तेज अब 

मध्यम होता जा रहा है 

शाम और खेल 

का बड़ा अनूठा 

सायोंग है 

अब बस याद ही है 

खेल और उसका खेला की 

एक खेल था 

ऊंच-नीच 

समान्यतः यह खेल घर

के आँगन मे ही 

खेलते थे, चबूतरे पर 

नाली की पगडंडियों पर 

हम सब ऊपर रहते थे 

और चोर नीचे 

हमे अपनी जगह बदलनी होती थी

और चोर को हमे छूना होता था 

अगर छु लिया तो 

चोर हमे बनना होता था 

बड़ा…

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Posted on June 19, 2015 at 8:43pm — 4 Comments

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At 1:52pm on June 30, 2013, जितेन्द्र पस्टारिया said…
"तहे दिल से शुक्रिया...आदरणीय "
 
 
 

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