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ज्यों जवां ये चांदनी होने लगी
त्यों सुबह की रोशनी होने लगी
जब समंदर सी नदी होने लगी
साहिलों सी ज़िन्दगी होने लगी
आदमी में हो न हो रूहानियत
आदमीयत लाज़मी होने लगी
तितलियों को मिल गयी जब से भनक
बाग़ में कुछ सनसनी होने लगी
यार ने आदी बनाया इस क़दर
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी
आँधियों से रूह कांपी रेत की
पर्वतों में दिल्लगी होने लगी
फिर मुसाफ़िर रासता मंजिल वही
और कहानी फिर वही होने लगी
ख़्वाब नें इतना सताया है हमें
ज़िन्दगी खुद ख़्वाब सी होने लगी
जो स्वयं निस्तेज है वो क्या कहें
क्यों उजालों में कमी होने लगी
सैकड़ो पर्दों में है ज़म्हुरियत
अब इसी को बेबसी होने लगी
भुवन निस्तेज
(मौलिक व अप्रकाशित)
है खोया क्या किसे वो आज हर पल ढूँढ़ते हैं,
गगन में हैं हमारे पाँव भूतल ढूँढ़ते हैं ।
सभाओं में कोई चर्चा कोई मुद्दा नहीं है,
सभी नेपथ्य में बैठे हुए हल ढूँढते हैं ।
उन्हें होगा तज्रिबा भी कहाँ आगे सफर का,
वो सहरा में नदी, तालाब, दलदल ढूँढ़ते हैं ।
कहीं से खुल तो जाये कोठरी ये आओ देखें,
दरों पर खिडकियों पर कोई सांकल ढूँढ़ते हैं ।
यूँ भी बेकारियों का मसअला हो जायेगा हल,
जो अब तक खो दिया है…
ContinuePosted on August 30, 2015 at 8:30am — 14 Comments
कोई पत्थर और कोई आईने ले के
आ रहा हर एक अपने दायरे ले के
यूँ चले हो रात को दीपक बुझे ले के
खुद अँधेरा भी परेशाँ है इसे ले के
बस ठिठुरते रह गए दरवाजे बाहर ख्वाब
ये सुबह आई है कितने रतजगे ले के
जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के
आपका आना तो कल ही सुर्ख़ियों में था
आज फिर अख़बार आया हादसे ले के
साकिया यूँ बेरुखी से मार मत हमको
रिन्द जायेगा कहाँ ये प्यास ले ले के
कुछ न कुछ…
Posted on January 15, 2015 at 7:30pm — 16 Comments
कांटे जो मेरी राह में बोये बहार ने
छूकर बना दिया है उन्हें फूल यार ने
यारी है तबस्सुम से करी अश्क-बार ने
कुछ तो असर किया है खिजाँ की फुहार ने…
ContinuePosted on September 14, 2014 at 10:00pm — 18 Comments
कहाँ तूफान था वो तो बयार से कम था
वो भूलने का असर यादगार से कम था
खयाल आते ही मुरझाये फूल खिलते थे
गुमाँ-ए-वस्ल कहाँ इस बहार से कम था
छुपाके अश्क तबस्सुम उधार ले ली थी
कहाँ ये चेहरा मेरा इश्तेहार से कम था
वो याद मुझको किये रात दिन रहा ऐसे
मेरा रक़ीब कहाँ तेरे यार से कम था
खरीददार सा आँखों में रौब था सब के
वो घर कहाँ किसी चौक-ओ-बाज़ार से कम था
मैं ग़मज़दा था, मै निस्तेज था औ' घायल भी
मैं मुन्तसिर था मगर अब की…
Posted on July 31, 2014 at 10:00pm — 6 Comments
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