For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अरे पनीर की सब्ज़ी कहा है ? जल्दी लाओ , यहाँ ख़त्म हो गयी |"

बड़े भैया ने आवाज़ लगायी और आगे बढ़ गए | कई पंगतों में लोग बैठ कर भोजन कर रहे थे , काफी गहमागहमी थी दरवाजे पर | सारे रिश्तेदार और अगल बगल के गांव से भी लोग खाने आये हुए थे | थोड़ी दूर ज़मीन पर कुछ और लोग भी बैठे थे जो हर पंगत के उठने के बाद पत्तल वगैरह बटोरते , उसे ले जाकर किनारे रख देते और जो कुछ भी खाने लायक बचा होता था , वो सब उनके बर्तनों में रख लेते थे |
खटिया पर लेटे हुए बाबूजी सब देख रहे थे | उसके दिमाग में पिछले कुछ सालों की घटनाएँ घूमने लगीं | माँ एकदम से बीमार पड़ी और उसने बिस्तर पकड़ लिया | बड़ा बेटा विदेश में था , छोटे के साथ ही रहते थे दोनों | खाने के नाम पर पतली खिचड़ी मिल जाती थी माँ को , लेकिन शायद बुढ़ापे में इच्छाएं और जोर मारने लगती हैं , माँ की भी इच्छा होती थी कि वो कुछ चटपटा खाए , पनीर तो बहुत प्रिय था उसे | एक आध बार कहा भी उसने कि पनीर खाने का मन है लेकिन वो कह नहीं पाये बहु से |
अचानक वो उठे , धीरे से एक पनीर का डोंगा उठाया और ले जाकर उन ज़मीन पे बैठे लोगों को दे दिया | उन लोगों की ख़ुशी का पारावार नहीं था और बाबूजी ने एक नज़र आसमान की ओर देखा और उनकी आँखों से दो बूँद आँसू टपक पड़े |

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 848

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on August 29, 2014 at 1:17pm

आभार मनीष जी ..

Comment by maneesh dixit on August 28, 2014 at 12:01pm

सचेत करती है यह भावपुर्ण कथा मुझे अपने कर्तव्यो के प्रति. नमन आपको.

Comment by विनय कुमार on August 4, 2014 at 1:50am

आभार सौरभजी , आपका स्नेह मिला , धन्यवाद..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 1:10am

परम्पराओं और उनके निर्वहन में मात्र प्रक्रिया नहीं आदमी की भावनाएँ बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं. उन भावनाओं को शाब्दिक करती एक अच्छी लघुकथा से गुजरना हुआ है. आदरणीय विनयजी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.

 

Comment by विनय कुमार on August 1, 2014 at 9:33pm

आभार सुभ्रांशुजी..

Comment by Shubhranshu Pandey on August 1, 2014 at 6:21pm

आदरणीय विनय जी सुन्दर कथा. बधाई .

सादर.

Comment by विनय कुमार on July 30, 2014 at 6:56pm

आभार सविता मिश्राजी..

Comment by savitamishra on July 30, 2014 at 3:03pm

बहुत मार्मिक कहानी

Comment by विनय कुमार on July 30, 2014 at 2:58pm

आभार डॉ गोपाल नारायण जी..

Comment by विनय कुमार on July 30, 2014 at 2:58pm

आभार कुन्ती मुखर्जी जी..बूढी काकी श्री प्रेमचंद जी की अनुपम कृति है , आपको दिल से धन्यवाद..  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
1 hour ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service