२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२
अवशेष चिनारों के तुमसे आफ़ात पुरानी कह देंगे
हालात वहाँ कैसे बिगड़े खुद अपनी जुबानी कह देंगे
दीवारें धज्जी धज्जी सी हर छत दिखती उधड़ी उधड़ी
आसार लहू के अक्स तुम्हें बेख़ौफ़ कहानी कह देंगे
दिखते पर्वत सहमे-सहमे औ गुम-सुम से झरने नदियाँ
कब-कब दामन में आग लगी कब बरसा पानी कह देंगे
जो साथ जला करते थे कभी आबाद रहे जिनसे आँगन
वो आज अल्हेदा चूल्हे खुद दिल की वीरानी कह देंगे
चुपचाप सुलगते शोलों में इतिहास झुलसते देखा है
तुम राख़ कुरेदोगे जितनी वो पीर रूहानी कह देंगे
सब डाल यहाँ सूखी-सूखी हर फूल पे छाई मुर्दाई
मौसम ने कितने जख्म दिए सब उसकी निशानी कह देंगे
उम्मीद पे जीना कायम है उम्मीद नहीं तो क्या जीना
जो वक़्त पकड़ कर साथ चले उसे उम्रे रवानी कह देंगे
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आपने सही समझा मिथिलेश जी ,ये ग़ज़ल सच में मैंने उन्ही वादियों में बैठ कर लिखी थी कई बार जाना हुआ कश्मीर में हर बार वहां की वादियों के जख्म कुछ न कुछ लिखने के लिए प्रेरित करते रहे कारगिल की सड़कों पर घूमी वहां के ध्वस्त हुए छोटे छोटे घर सेना के बनकर आज भी मिल जायेंगे बस उसी रौ में बहाकर ये ग़ज़ल लिखी ,आपको प्रभावित कर सकी मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभार आपका |
कश्मीर की वादियों में जैसे ये ग़ज़ल गूँज रही है ... हमसे तुमसे ये कितना कुछ पूछ रही है
बहुत ही संजीदा और बेहतरीन ग़ज़ल ..... नमन आपको
आ० सौरभ जी,ग़ज़ल आपकी दाद पाकर धन्य हुई ,तहे दिल से आभारी हूँ सादर.
ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल करें, आदरणीया राजेश कुमारीजी
आ० संतलाल करुण जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई ,आपकी प्रतिक्रिया से मेरी कलम को संबल मिला ,मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ सादर.
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
सभी शेर नायाब हैं --
"उम्मीद पे जीना कायम है उम्मीद नहीं तो क्या जीना
जो वक़्त पकड़ कर साथ चले उसे उम्रे रवानी कह देंगे"
... इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
नरेन्द्र सिंह चौहान जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से आभार मेरा लिखना सार्थक हुआ |
आ० मदन मोहन सक्सेना जी,आपको ग़ज़ल के अशआर प्रभावित किये मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका .
दिखते पर्वत सहमे-सहमे औ गुम-सुम से झरने नदियाँ
कब-कब दामन में आग लगी कब बरसा पानी कह देंगे
जो साथ जला करते थे कभी आबाद रहे जिनसे आँगन
वो आज अल्हेदा चूल्हे खुद दिल की वीरानी कह देंगे
बधाई आपको,बहुत खुबसूरत गजल
आ० विजय निकोर जी,ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरी मेहनत सफल हुई हार्दिक आभार आपका सादर
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