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कितना तामझाम....(नवगीत)
कितना तामझाम पसराया
जीवन आँगन में।
स्वर्णिम किरणें सुबह जगाती
दिन भर आपाधापी है।
साँझ धुँधलके से घिर जाती
रात तमस ले आती है।
तम को रोज झाड़ बुहरया
जीवन आँगन में।....कितना तामझाम पसराया
गजब मुखोटे मुख पर सजते
तन मशीन के कलपुर्जे।
जीने का दम भरने वाले
मानव ने ये खुद सरजे।
दूर खड़ा मन है खिसियाया
जीवन आँगन में।.....कितना तामझाम पसराया
रेलम पेला धक्का मुक्की
चलती…
Posted on December 26, 2014 at 12:00pm — 14 Comments
Posted on December 24, 2014 at 12:43pm — 18 Comments
Posted on December 19, 2014 at 5:38pm — 12 Comments
Posted on November 22, 2014 at 12:30am — 16 Comments
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आदरणीया सीमाहरी शर्मा जी माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चुने जाने पर आपको हार्दिक हार्दिक बधाई.
महनीया सीमाहरी जी
आपकी कविता का विषय इतना अच्छा था की i इसे पुरस्कार मिलना ही चाहिये था i एडमिन ने बिलकुल सही निर्णय लिया i आपको हजारों हजार बधाई सादर i
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीया सीमाहरी शर्मा जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी रचना " गीत:गलती क्या थी मेरी माई" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
स्वागत है प्रिय बहन सीमा हरी शर्मा जी सादर
आदरणीया सीमाजी ............ राधे - राधे
आपने इस योग्य समझा , हृदय से धन्यवाद , आभार ।
सादर स्वागत आदरणीया
आदरणीया सीमा हरि शर्मा जी, आपके मित्रता निवेदन हेतु आपका आभारी हूँ
. सादर!
सादर स्वागत है आदरणीया सीमा हरि शर्मा जी.
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