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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२  २२  २२  २

 

दीवारों को दर कर लें

ऐसा अपना घर कर लें

 

वरना होगा शोर बहुत

ज़ख्मों को अक्षर कर लें

 

झुकने को तैयार रहे

ऐसा अपना सर कर लें

 

मान बढ़ेगा नारी का

लज्जा को ज़ेवर कर लें

 

है कीमत जीवन की ,गर

यादों को हम जर कर लें

 

जीना आसां होगा , गर

गुमनाम हमसफ़र कर लें

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 3:49pm

इस ग़ज़ल के लिए दिल से शुक्रिया .. ढेर सारी दाद कुबूल करें.


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Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2014 at 10:15am

आदरणीय गुमनाम भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको ढेरों बधाइयाँ |

Comment by gumnaam pithoragarhi on August 2, 2014 at 7:32am

गुमना22  म हमस 121   फ़र कर22   लें 2

kya ye gala hai please bataiega.........................

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 1, 2014 at 8:55pm

आ0 गुमनाम भाई जी,   प्रणाम! ....//झुकने को तैयार रहे

ऐसा अपना सर कर लें//....अच्छे शेर हुए हैं।  बहुत-बहुत बधाई। सादर, 

Comment by भुवन निस्तेज on August 1, 2014 at 1:35pm

आदरणीय गुमनाम भाई , सधी हुई उम्दा ग़ज़ल कही है आपने।  इसके लिए आप  बधाई  पात्र हैं।   हाँ  मक्ते के सानी पर जरा ग़ौर जरूर फ़रमाएँ।  

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 1, 2014 at 12:58pm
चलो कुछ अच्छा कर लें
दो बात खुद से कर लें
बहुत सुन्दर आदरणीय गुमनाम जी , बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2014 at 12:11pm

गुमनाम जी

एक और अच्छी गजल आप्कीकलम से ---सादर  i

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