Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 10, 2016 at 11:30pm — 17 Comments
मेरा बीसवीं सदी का पुरातन स्नेह
यह इक्कीसवीं सदी के तुम्हारे
कभी न बदलने के वायदे
स्नेह की किरणों के पुल पर
एक संग उठते-गिरते-चलते
यह संवेदनशील हृदय कभी
तुम्हारा संबल बना था
चाँदनी-सलिल-सा तरल स्नेह
जीवन-यथार्थ का पिघला हुआ कुंदन ...
कहती थी
इसकी अमोल रत्न-सी आभा
थी तुम्हारी रातों में तेजोमय प्रेरणा
या असंतोष की धूप की छटपटाहटों में
ज्यों लहराई सनातन सत्यों की…
ContinueAdded by vijay nikore on July 10, 2016 at 3:59pm — 8 Comments
Added by Mahendra Kumar on July 10, 2016 at 3:30pm — 10 Comments
कमांडर ऑफ़ चीफ़ - "शाबाश राकेश ! तुम्हारा शौर्य पराक्रम अन्य सैनिकों से अलग है । तुम्हारे शौर्य और पराक्रम में जोश है,दीवानगी है,आक्रोश है । वेल डन ।"
राकेश राणा - "यस सर । देश प्रेम मेरा परम धर्म है । देखना एक दिन मैं इस धर्म को निभाकर दिखाऊँगा । माँ को यही वचन देकर आया हूँ ।"
सीमा पर से गोली बारी शुरू हुई और देखते ही देखते युद्ध छिड़ गया । राकेश राणा अंत समय तक लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गया ।
तिरंगे में लिपटा ताबूत जैसे ही गाँव पहुँचा ,जन सैलाब उमड़ पड़ा । राकेश राणा की माँ…
Added by Samar kabeer on July 10, 2016 at 12:00pm — 26 Comments
22 122 122 122
दर पर तुम्हारे बसर छोड़ता हूँ।
लो मैं तुम्हारा नगर छोड़ता हूँ।।
क्या फ़र्क है, ग़र है धड़कन तुम्हीं से।
मैं ज़िन्दगी की बहर छोड़ता हूँ।।
चिंता नहीं कर न आऊँगा मिलने।
कच्चा ये माटी का घर छोड़ता हूँ।।
तुमको नज़र लग न जाये किसी की
काज़ल ये दिल भस्म कर छोड़ता हूँ।।
खुद पे तुम्हारा यकीं कम न होये।
तुमको ग़ज़ल में अमर छोड़ता हूँ।।
मौलिक-अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 10, 2016 at 11:30am — 14 Comments
२१२२ २१२२ २१२
मजहबों के बीच जो दीवार है
डालती उस नींव को सरकार है
हाथ में जिसके किताबें चाहिए
आज उसके हाथ में हथियार है
जिन्दगी इक बार मिलती है यहाँ
मर रहा इंसान सौ सौ बार है
ख्वाहिशें बच्चों की पूरी क्या करें
जेब में सहमा हुआ इतवार है
पढ़ नहीं सकता यहाँ इक हर्फ़ जो
बेचता सड़कों पे वो अखबार है
राम रहिमन बिक रहे बाजार में
फल रहा बस धर्म का व्यापार…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 10, 2016 at 10:30am — 36 Comments
Added by मनोज अहसास on July 10, 2016 at 9:37am — 14 Comments
2122 2122 2122 212
मौत है निष्ठूर निर्मम तो कड़ी है जिंदगी
जो ख़ुशी ही बाँटती हो तो भली है जिंदगी
लोग जीने के लिए हर रोज मरते जा रहे
ये सही है तो कहो क्या फिर यही है जिंदगी
दो निवालों के लिए दिनभर तपाया है बदन
या कि मानव व्यर्थ चाहत में तपी है जिंदगी
झूठ माया मोह रिश्ते सब सही लगते यहाँ
जाने कैसे चक्रव्यूहों में फँसी है जिंदगी
काठ का पलना कहीं तो खुद कहीं पर काठ है
है हँसी…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2016 at 7:00pm — 18 Comments
"अरी विभा देख जरा वहां"बस के आगे जा रहे वाहन की ओर इशारा करके सुधा बोली।
"क्या दिखाना चाह रही हो ,वो ट्रॉली?"
"हाँ,क्या ऐसा नहीं लग रहा उसे देख कर, जैसे सैकड़ो नन्हें मुन्ने नर्सरी के बच्चे पहली बार विद्यालय वाहन में सवार हो,झूमते ,गाते ,तालियाँ बजाते चले जा रहे हों।"
"फिर दौड़ाये तूने कल्पना के घोड़े"
"तो तू भी दौड़ाकर देख ,एक बार मेरी तरह।"
सुधा द्वारा चित्रित किये दृश्य को जब उसने ,उसकी नज़र से देखा तो भाव विभोर होकर बोली।
"कसम से सुधी! ये नर्सरी वाहन…
ContinueAdded by Rahila on July 9, 2016 at 1:01pm — 25 Comments
Added by Janki wahie on July 9, 2016 at 12:07pm — 15 Comments
कोई कल्पना-स्वप्न ही होगा शायद
हुआ जो हुआ, वह इरादतन नहीं था
नियति की काल-कोठरी को बूझा है कौन
‘ कहाँ- कहाँ था मेरा दोष ’ का गंभीर भान
दोष कहीं कोई तुम्हारा नहीं था
जीवन के आरोह-अवरोह से डरी-डरी
अज्ञात भय से भीगी तुम कह देती थी ...
अनहोनी का होना कोई नया नहीं है
और मैं, गई रात की हिमीभूत टीस छिपाये
हलके-से दबाकर हाथ तुम्हारा
मुस्करा देता था
उस गंभीर पल को छल देता था
अनगिन…
ContinueAdded by vijay nikore on July 8, 2016 at 5:43pm — 12 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 8, 2016 at 9:30am — 8 Comments
सर पर छत थी वो गयी , भीत भीत चहुँ ओर
रक्ष रक्ष मैं रेंकता , चोर मचाये शोर
सबकी चिंता है अलग, सब में थोड़ा फर्क
सब कहते वो पाप है, वो जायेगा नर्क
स्वार्थ सदा रहता छिपा, सब रिश्तों के बीच
लेकिन वह जो बोल दे, कहलाता है नीच
सबकी अपनी व्यस्तता, सब के अपने राग
सर्व समाहित सोच से , तू भी थोड़ा भाग
सब तक सीढ़ी है बना , पायेगा अनुराग
पत्थर को ठोकर मिली , रे मानुष तू…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 8, 2016 at 9:00am — 6 Comments
१२१२२ - १२१२२
हंसी न अश्कों की धार में है ।
वफ़ा फ़क़त एतबार में है ।
लबों पे मुस्कान आँख है नम
ख़िज़ाँ भी शामिल बहार में है ।
लिपटना आता कहाँ है गुल को
ये ख़ास खसलत तो खार में है ।
निकाल दूँ अपने दिल से उनको
कहाँ मेरे अख्तियार में है ।
जो देख ले खोए होश अपना
कशिश वो रूए निगार में है ।
जुनूने दीदारे यार देखो
खड़ा वो कल से कतार में है ।
कहाँ है तस्दीक…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on July 7, 2016 at 4:00pm — 14 Comments
वह महंगी शॉल ओढ़े, गर्व से चेहरा उठाये, आरामदायक व्हीलचेयर पर बैठा हुआ था, जिसे एक नर्स धकेल रही थी| हस्पताल में एक डॉक्टर के कमरे के बाहर उसने नर्स को रुकने का इशारा किया| नर्स ने कुर्सी रोकी ही थी कि डॉक्टर के कमरे के दरवाज़े पर टंगा सफेद पर्दा हटा कर एक आदमी बाहर निकला| उसने ध्यान से देखा वह उसका पुराना मित्र था, जो वर्षों बाद दिखाई दिया| मित्र ने भी उसे एकदम पहचान लिया, लेकिन उसे व्हीलचेयर पर देखकर मित्र चौंका और उससे पूछा,
"अरे, तुम! कैसे हो? यह क्या हो गया?"
उसने गर्व से…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 7, 2016 at 3:00pm — 4 Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 7, 2016 at 8:23am — 4 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 6, 2016 at 11:25pm — 10 Comments
दिलों मेंं लिपटे साये थे ....
दोनों उरों मेंं
हुई थी हलचल
जब दृग से दृग
टकराये थे
दृग स्पर्श से मौन हिया के
स्वप्न सभी मुस्काये थे
अधरों पर था लाज़ पहरा
लब न कुछ कह पाए थे
अवगुण्ठन मेंं वो अलकों के
कुछ सकुचे शरमाये थे
झुकी पलक के देख इशारे
हम मन मेंं मुस्काये थे
मधु पलों को सिंचित करने
स्नेह घन घिर अाये थे
हुअा सामना जब हमसे तो
वो सिमटे घबराये थे
हौले हौले कैद हुए हम
इक दूजे की बाहों मेंं…
Added by Sushil Sarna on July 6, 2016 at 10:24pm — 2 Comments
कैसे कहूँ कि तू मुझे चिट्ठी ही भेज दे,
तू है जहाँ वहां की तू मिट्टी ही भेज दे.
याद आ रही है मुझको तेरी आज इस तरह,
तू प्यार से लिख चिट्ठियां कोरी ही भेज दे.
करता तलाश नौकरी कैसे बता मिले,
चिठ्ठी नहीं तो तू मेरी अर्जी ही भेज दे.
बेज़ार हो चुकी बहुत तनहाइयों से मैं,
बेशक तू कोई याद पुरानी ही भेज दे.
इस जिंदगी की राह में कांटे बिछाये क्यूँ,
तू ज़िंदगी के नाम की रुबाई ही भेज…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on July 6, 2016 at 5:41pm — 8 Comments
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