For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2017 Blog Posts (116)

गजल(पा लिया , खोया किसीने.....)

2122  2122  2122 212 

पा लिया, खोया किसीने,चल रहा यह सिलसिला

ख्वाहिशें अनजान थीं जो कुछ मिला अच्छा मिला।1



गर्दिशों के दौर में अरमान मचले कम नहीं

पर सरे पतझड़ यहाँ उम्मीद का अँखुआ खिला।2



घाव देकर हँस रहे हैं आजकल बेख़ौफ़ वे

कौन अपनों से करेगा बोलिये फिर से गिला?3



डर गये जीते शज़र सब आँधियों के जोर से

सूखता-सा जो खड़ा है कब सका कोई…

Continue

Added by Manan Kumar singh on April 9, 2017 at 10:30am — 18 Comments

एक महान जासूसी लेखक

करार के अनुसार उसने उस महान जासूसी लेखक की चाकू से गोद कर हत्या की और तेजी से घर के बाहर निकल गया।



आज से कुछ दिन पहले हत्यारे के घर में। "तुम अपनी ही हत्या क्यों करवाना चाहते हो? तुम पागल तो नहीं हो?" हत्यारे ने चौंकते हुए कहा।



"नहीं। मैं एक महान जासूसी लेखक हूँ।" उस आदमी ने अपना परिचय दिया।



"पर अपनी हत्या क्यों?" उसने उत्सुकता ज़ाहिर की।



"क्योंकि मैं चाहता हूँ कि लोग मेरी कहानियों की क़द्र करें। मैंने उन्हें रहस्य से भरी हुई अद्भुत और शानदार कहानियाँ… Continue

Added by Mahendra Kumar on April 9, 2017 at 10:05am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -जब ग़लत हो नामवर, तो चुप रहें - ( गिरिराज )

2122    2122    212

धारणायें हों मुखर, तो चुप  रहें

सच न पाये जब डगर, तो चुप  रहें

  

शब्द ज़िद्दी और अड़ियल जब लगें

और ढूँढें, अर्थ अगर तो चुप  रहें

 

जब धरा भी दूर हो आकाश भी

आप लटके हों अधर, तो चुप  रहें

 

कृष्ण हो जाये किशन, स्वीकार हो

शह्र पर जब हो समर तो चुप रहें

 

सीखने वालों पे यारों पिल पड़ें

जब ग़लत हो नामवर, तो चुप  रहें

 

तेल औ’र पानी मिलाने के लिये

कोशिशें देखें…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 8:00am — 24 Comments

तरही ग़ज़ल नंबर-3

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

(मक़्ते में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ को नज़र अंदाज़ कर दें)



रफ़्ता रफ़्ता सारी अफ़वाहें कहानी हो गईं

तल्ख़ियाँ इतनी बढ़ीं रेशा दवानी हो गईं



हिज्र की रातों में इतनी बार उनके ख़त पढ़े

याद मुझको सारी तहरीरें ज़बानी हो गईं



हाल वो देखा ग़ज़ल का आज यारो,शर्म से

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की भी रूहें पानी पानी हो गईं



क़ह्र को बाँधें क़हर वो और टोको तो कहें

शे'र कहने की ये तरकीबें पुरानी हो गईं



जानते हो ख़ूब यारो ओबीओ के मंच… Continue

Added by Samar kabeer on April 9, 2017 at 12:13am — 37 Comments

बीत जाएगा समय तो क्या करेगा आदमी

2122    2122    2122   212

 

सच यहाँ पर कुछ नहीं जब खुद है झूठा आदमी|

जानकर भी आज सब अनजान देखा आदमी|

 

जग पराया देश है अपना यहाँ कुछ भी नहीं

कुछ दिनों के वास्ते इस जग में आया आदमी|

 

लोग अपने वास्ते जीते हैं दुनिया में मगर

जो पराया दर्द समझे है वो आला आदमी

  

ये ख़जाना और दौलत सब यही रह जाएगा 

सिर्फ तेरा कर्म ही बस साथ देगा आदमी|

 

बेवफ़ा सी ज़िन्दगी जिस दिन तुझे ठुकराएगी

आदमी को लाश कहकर…

Continue

Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 8, 2017 at 12:00am — 7 Comments

गजल

221   221   212

वह दौर था जो गुजर गया

था इक नशा जो उतर गया

 

देखा था उसने फरेब से

दिल आशिकाना सिहर गया

 

मुफलिस समझ के जनाब वो 

पहचानने से मुकर गया

 

जिस पर भरोसा किया बहुत

वह यार जाने किधर गया

 

जब साथ था तो कमाल था

अब जिन्दगी का हुनर गया

 

इक ठेस ही थी लगी मुझे  

मैं कांच सा था बिखर गया

 

जिस नाग ने था डसा मुझे

मैंने सुना है कि मर…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 7, 2017 at 9:19pm — 10 Comments

हाइकू

लगती प्यारी
मोहे मेरी बिटिया
गोरैया जैसी ।

रोज़ जगाती
नींद से हर दिन
प्यारी बिटिया ।

ठुमक कर
चलती थी नन्हीं सी
मेरी बिटिया ।

बड़ी सयानी
मीठी जिसकी बोली
मेरी बिटिया ।


घर आँगन
महकाती प्यार से
मेरी बिटिया ।

नया घरौंदा
बसाया अपना भी
मेरी बिटिया ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 7, 2017 at 4:30pm — 3 Comments

कोई ऐसा मिला प्यार की राह में

कोई ऐसा मिला प्यार की राह में,

इक नज़र में ही उसपर फ़िदा हो लिए..

क्या कशिश थी उन आंखों में, हम क्या कहें?

देखते ही वो मेरे ख़ुदा हो लिए..

-

उनकी सूरत की जो रोशनी मिल गयी

शायरी के लिए, शायरी मिल गयी.

एक पल में न जाने ये क्या हो गया?

हमको ऐसा लगा हर ख़ुशी मिल गयी.



इस नज़ाकत से उनकी निगाहें झुकीं,

दिल के अहसास सारे फ़ना हो लिए..

(कोई ऐसा मिला प्यार की राह में,

इक नज़र में ही उसपर फ़िदा हो लिए..)

**

शाम ढल-सी गयी, रात होने… Continue

Added by Zaif on April 7, 2017 at 11:03am — 7 Comments

याद मेरी दिला रही होगी (गजल)/सतविन्द्र कुमार राणा

2122 1212 22
उनको हिचकी सता रही होगी
याद मेरी दिला रही होगी

चैन दिल का खो गया होगा
आँसुओं को बहा रही होगी

फ्रेम कस के पकड़ लिया होगा
प्यार तस्वीर पा रही होगी

हौंसला काम कर गया होगा
पास मंजिल अब आ रही होगी

वक्त के साथ सब बदलते हैं
रुत यही तो सिखा रही होगी

भूख ने दूर कर दिए बच्चे
कैसे माँ मन लगा रही होगी ?

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 7, 2017 at 7:00am — 19 Comments

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22

अब दुवाओं के लिए हाथ उठाया जाए ।

तेरे सर से न् कभी इश्क़ का साया जाए ।।



हुस्न मगरूर हुआ है ये सही है यारों ।

आइनॉ को न् उसे और दिखाया जाए ।।



होश खोना भी जरूरी है मुहब्बत के लिए ।

सुर्ख होठों पे कोई जाम सजाया जाए ।।



पूछ मत दर्द से रिश्तों की कहानी मेरी ।

ज़ह्र देना है तो बेख़ौफ़ पिलाया जाए ।।



एक हसरत के लिए जिद भी कहाँ है वाजिब ।

गैर चेहरों को चलो दिल में बसाया जाए ।।



बिक गई आज निशानी भी जो तुमने… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on April 6, 2017 at 11:14pm — 5 Comments

ग़ज़ल

२१२२/१२१२/२२

हमने अपने ही पाँव काटे हैं,
इस सड़क पर के छाँव काटे हैं।

जो परींदा मजे से रहता था,
उनके तो सारे ठाँव काटे हैं।

दौड़ना चाहती है हर बेवा,
पर ये दुनिया ने पाँव काटे हैं।

वार जिसने भी करना चाहा तो,
उसके तो सारे दाँव काटे हैं।

जानकर जा रहे शहर(१२) तुम भी,
इस शहर(१२)ने ही गाँव काटे हैं।

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Hemant kumar on April 6, 2017 at 9:00pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -और हम भी प्यार की जागीर को समझे नहीं - ( गिरिराज )

2122    2122   2122   212

कट गये सर वो मगर शमशीर को समझे नहीं

घर जला, पर आग की तासीर को समझे नहीं

 

ख़्वाब ए आज़ादी कभी ताबीर तक पहुँचे भी क्यूँ 

सबको समझे वो मगर जंजीर को समझे नहीं

 

वो मुसव्विर पर सभी तुहमत लगाने लग गये  

जो उभरते मुल्क़ की तस्वीर को समझे नहीं

 

मजहबों में बाँट, वो नफरत दिलों में बो गये   

और हम भी उनकी इस तदबीर को समझे नहीं

 

उनका दावा है, वो चार: दर्द का करते रहे

हमको शिकवा है…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 6, 2017 at 9:00am — 23 Comments

तरही ग़ज़ल नंबर-2

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन



आज तारीफ़ें मिरी उनकी ज़बानी हो गईं

हासिदों की देख शकलें ज़ाफ़रानी हो गईं



उनके रुख़सारों की गर्मी अलअमाँ सद अलअमाँ

सब चटानें बर्फ़ की यकलख़्त पानी हो गईं



आज हैं मासूम सीता की तरह ये रावणों

क्या करोगे लड़कियाँ गर ये भवानी हो गईं



देखते थे कल हिक़ारत से हमें वो देख लें

किस क़दर नस्लें हमारी आज ज्ञानी हो गईं



मैं तो हूँ ख़ामोश लेकिन लोग कहते हैं "समर"

तेरी ग़ज़लें एह्ल-ए-दिल की तर्जुमानी हो… Continue

Added by Samar kabeer on April 6, 2017 at 12:29am — 31 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
‘नया मुर्दा’ (लघु कथा 'राज')

 नदी का वो  घाट पर जहाँ दूर-दूर तक मुर्दों के जलने से मांस की सड़ांध फैली रहती थी साँस लेना भी दूभर होता था वहीँ थोड़ी ही दूरी पर एक झोंपड़ी ऐसी भी थी जो चिता की अग्नि से रोशन होती थी|

भैरो सिंह का पूरा परिवार उसमे रहता था दो छोटे छोटे बच्चे झोंपड़ी के बाहर रेत के घरोंदे बनाते हुए अक्सर दिखाई दे जाते थे |

दो दिन से घाट पर कोई चिता नहीं जली थी बाहर बच्चे खेलते-खेलते उचक कर राह देखते- देखते थक गए थे कि अचानक उनको राम नाम सत्य है की आवाजें सुनाई दी सुनते ही बच्चे ख़ुशी से उछल पड़े…

Continue

Added by rajesh kumari on April 5, 2017 at 9:00pm — 20 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कसमें चलो मासूम लें ....गीत /डॉ० प्राची

लिख दें इबारत इश्क की, 

आओ ज़रा सा झूम लें..

इक दूसरे को जी सकें, कब वक़्त ही इतना मिला 

बस दूरियाँ थामे रहीं नज़दीकियों का सिलसिला,

कुछ पल मिले हैं साथ के आओ इन्हें जी लें अभी 

हमको मिलें ये पल न जाने ज़िंदगी में फिर कभी,

ले उँगलियों में उँगलियाँ 

आओ ज़रा सा घूम लें ...

लिख दें...

जब प्यार के एहसास के पहलू कई हैं अनछुए 

क्यों पूछते हैं आप फिर गुमसुम भला हम क्यों हुए ?

सपने हमारे…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on April 5, 2017 at 6:06pm — 4 Comments

मैं चुप रही.....

मैं चुप रही ....

रात के पिछले पहर

पलकों की शाखाओं पर

कुछ कोपलें

ख़्वाबों की उग आई थीं

याद है तुम्हें

तुम ने

चुपके से

मेरे ख्वाबों की

कुछ कोपलें

चुराई थीं

मैं चुप रही

तुमने

अपने स्पर्श से

उनमें बैचैनी का

सैलाब भर दिया

मैं चुप रही

तुमने

मेरी पलकों की

शाखाओं पर

अपने अधरों से

सुप्त तृष्णा को

जागृत किया

मैं चुप रही

रात की उम्र

ढलती रही…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 5, 2017 at 5:50pm — 14 Comments

व्यर्थ है......

व्यर्थ है......

व्यर्थ है

कुछ भी कहना

बस

मौन रहकर

देखते रहो

दुनिया को

तमाशाई नज़रों से

पूरे दिन

व्यर्थ है

कुछ भी सुनना

अर्थहीन शब्दों के

कोलाहल में

भटकते भावों की

तरलता में लुप्त

संवेदना के

स्पंदन को

व्यर्थ है

कुछ भी ढूंढना

इस नश्वर संसार में

आदि और अंत का

भेद पाने के लिए

स्वयं में

स्वयं से

मिलने का

प्रयास करना …

Continue

Added by Sushil Sarna on April 5, 2017 at 3:30pm — 8 Comments

आओ सब मिल कर संकल्प करें

आओ सब मिल कर संकल्प करें।

चैत्र शुक्ल नवमी है आज, नूतन कुछ तो करें।

आओ सब मिल कर संकल्प करें॥



मर्यादा में रहना सीखें, सागर से बन कर हम सब।

मर्यादा में रहना सिखलाएं, तोड़े कोई इसको जब।

मर्यादा के स्वामी की, धारण तो यह सीख करें।

आओ सब मिल कर संकल्प करें॥



मात पिता गुरु और बड़ों की, सेवा का ही मन हो।

भIई मित्र और सब के, लिए समर्पित ये तन हो।

समदर्शी सा बन कर हम, सबसे व्यवहार करें।

आओ सब मिल कर संकल्प करें॥



उत्तम आदर्शों को हम,… Continue

Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 5, 2017 at 11:49am — 3 Comments

ग़ज़ल-नूर की - इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 

.

इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,

हश्र में ख़ुद के किये पे तब्सिरा करना पड़ा.

.

सुल्ह फिर अपने ही दिल से यूँ हमें करनी पड़ी,

फ़ैसले को टालने का फ़ैसला करना पड़ा. 

.

क़ामयाबी की ख़ुशी में चीखता है इक मलाल,

सोच कर निकले थे क्या कुछ और क्या करना पड़ा.

.

एक मुद्दत से कई चेहरे थे आँखों में असीर,

आँसुओं की शक्ल में सब को रिहा करना पड़ा.

.

झूठ के नक्क़ारखाने में बला का शोर है,…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 5, 2017 at 9:16am — 18 Comments

हाइकु

मौज मनाने
छुट्टियों में हैं आते
नदी किनारे

बड़ी सुहानी
हवा चलती यहाँ
नदी किनारे ।

मन मोहक
नज़ारा यहाँ होता
नदी किनारे ।

मस्त लहर
आकर टकराती
नदी किनारे ।

भीड़ अधिक
हो जाती है अक्सर
नदी किनारे ।

संग पिया के
सन्ध्या देखने आती
नदी किनारे ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 4, 2017 at 7:59pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
9 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service