For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

२१२२/१२१२/२२

हमने अपने ही पाँव काटे हैं,
इस सड़क पर के छाँव काटे हैं।

जो परींदा मजे से रहता था,
उनके तो सारे ठाँव काटे हैं।

दौड़ना चाहती है हर बेवा,
पर ये दुनिया ने पाँव काटे हैं।

वार जिसने भी करना चाहा तो,
उसके तो सारे दाँव काटे हैं।

जानकर जा रहे शहर(१२) तुम भी,
इस शहर(१२)ने ही गाँव काटे हैं।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 808

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 12, 2017 at 8:41pm
आदरणीय हेमन्त जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 11, 2017 at 6:58am

मतले में छाँव काटी है आयेगा ..
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 7:26am

आदरणीय हेमंत भाई , गज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है ... हार्दिक बधाई । गुणिजनों की सलाहों का ध्यान रखियेगा ...
धीरे धीरे रे मना धीरे ही सब होय ...   लगे रहियेगा ।

Comment by Sushil Sarna on April 8, 2017 at 2:34pm

आदरणीय हेमंत कुमार जी बहुत ही सुंदर भावों की ग़ज़ल के लिए बधाई। आदरणीय रवि शुक्ला जी और समर कबीर साहिब की ग़ज़ल पर समीक्षा ज्ञानवर्धक है। आ.शुक्ला जी और समर साहिब का मैं दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ कि वो हर रचनाकार का हौसला ज्ञान के साथ बढ़ाते हैं। हार्दिक आभार। 

Comment by Hemant kumar on April 8, 2017 at 1:48pm
आदरणीय कबीर सर प्रणाम!
इस तरह समझाने के लिए बहुत बहुत आभार आपका ।
वास्तव मे मुझमे व्याकरण की कमियाँ है मुझे इस पर बहुत ध्यान देने की जरुरत है।
मै कोशिश करूंगा की ये कमियाँ जल्द ही दूर हो जाए।
ठाँव=रहने की जगह,घर
सादर....
Comment by Hemant kumar on April 8, 2017 at 1:40pm
आ.राजेश दीदी प्रणाम!
जी दीदी मै (परिंदे) यह सुधार कर लूंगा मत्ला के लिए राय जरूर दें दीदी ,अभी मै ग़ज़ल मे बहुत कच्चा हूँ।
सादर....
Comment by Hemant kumar on April 8, 2017 at 1:32pm
परम आदरणीय शुक्ला सर प्रणाम !
इस तरह समझाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ,मै मत्ला और अन्य कमियों को पुनः एक बार सुधारने का प्रयास करूंगा।
मुझे कोई भी बात का बुरा नही लगेगा ,बल्कि यह मेरे लिए सौभाग्य से कम नही!मेरी कमियों को जानना मेरे लिए बहुत जरूरी है वरन मै जस का तस रह जाऊंगा...
सादर..
Comment by Hemant kumar on April 8, 2017 at 1:21pm
आदरणीय आरिफ सर इस तरह हौसला बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
सादर...
Comment by Samar kabeer on April 7, 2017 at 10:13pm
जनाब हेमन्त कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का बहतर प्रयास हुआ है,ख़ास तौर पर बह्र को आपने बख़ूबी निबाहा है, जिसकी तारीफ़ करना ज़रूरी है,लेकिन ग़ज़ल में बह्र के अलावा भी बहुत कुछ देखना और सीखना होता है,उसमें आप कहीं कहीं नाकाम दिखाई दिये, जिसके बारे में गुणीजन अपनी बात कह चुके हैं,लेकिन हिम्मत हरने की ज़रूरत नहीं,धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा :-
'गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में
वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलें'
आपकी ग़ज़ल में मुझे एक नया शब्द नज़र आया "ठाँव",कृपया इसका अर्थ बताने का कष्ट करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 7, 2017 at 7:06pm

जैसा कि आद० रवि भैया ने कहा है मतला स्पष्ट नहीं है 

परिंदा वाले शेर में ---जो परिंदे मजे से रहते थे --कर सकते हैं 

छोटी बह्र पर अच्छा प्रयास किया है बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदाब, मुसाफ़िर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई खूँ सने हाथ सोच त्यों बर्बर सभ्य मानव में फिर नया क्या है।३।…"
12 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल के साथ मुशायरा का आग़ाज़ करने के लिए दाद के साथ…"
16 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी, ध्यान दिलाने का बहुत शुक्रिया। ग़ज़ल दोबारा पोस्ट कर दी है। "
26 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमन, रिया जी , खूबसूरत ग़ज़ल कही, आपने बधाई ! मतला भी खूसूरत हुआ । "मूसलाधार आज बारिश है…"
27 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आसमाँ को तू देखता क्या हैअपने हाथों में देख क्या क्या है /1 देख कर पत्थरों को हाथों मेंझूठ बोले वो…"
27 minutes ago
Prem Chand Gupta replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"इश्क में दर्द के सिवा क्या है।रास्ता और दूसरा क्या है। मौन है बीच में हम दोनों के।इससे बढ़ कर कोई…"
36 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब  ओ.बी.ओ के नियम अनुसार तरही मिसरे को मिलाकर  कम से कम 5 और…"
44 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"नमस्कार, आ. आदरणीय भाई अमित जी, मुशायरे का आगाज़, आपने बहुत खूबसूरत ग़ज़ल से किया, तहे दिल से इसके…"
53 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बेवफ़ाई ये मसअला क्या है रोज़ होता यही नया क्या है हादसे होते ज़िन्दगी गुज़री आदमी…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"धरा पर का फ़ासला? वाक्य स्पष्ट नहीं हुआ "
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। हर तरफ शोर है मुक़दमे…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"एक शेर छूट गया इसे भी देखिएगा- मिट गयी जब ये दूरियाँ दिल कीतब धरा पर का फासला क्या है।९।"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service