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माँ के आँचल में छुप जाते

हम सुनकर डाँट कभी जिनकी।

नव उमंग भर जाती मन में

चुपके से उनकी वह थपकी ।

 

उस पल जाना ‘प्रेम पिता का’

कितनी उसमें गहराई है!

दिल पर अपने पत्थर रख जब 

मुन्ने को चपत लगाई है।

 

इस जीवन धारा से बरसों

सींचा पौधा निज अनुभव का।

अनजान रहे हम नर होकर

कब बोध रहा निज उद्भव का?

 

कर्ज चुकाने मात-पिता का

अपना फर्ज निभाना होगा।

पर मर्म समझने ममता का

बेटी बन फिर आना होगा।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Chetan Prakash 2 hours ago
बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है, मात्र तुक संयोजन अथवा मात्र नर्सरी हो सकता है, कविता नहीं!

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pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
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pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। दोहों फर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
17 hours ago

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