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Zaif
  • Male
  • Uttarakhand
  • India
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Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय समर कबीर सर जी, ग़ज़ल पर इस्लाह और हौसला-अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिय:  सादर "
Aug 29
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीया ऋचा जी, ग़ज़ल पर हौसला-अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिय: सादर "
Aug 29
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, ग़ज़ल पर इस्लाह और हौसला-अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिय: सादर "
Aug 29
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमित जी, ग़ज़ल पर इस्लाह और हौसला-अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिय: सादर "
Aug 29
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय समर कबीर सर, बहुत शुक्रिय: आपका। सादर।"
Aug 29
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय दिनेश जी, ख़ूब ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। मह्ज़ - 21 आख़िरी शे'र की बह्र जाँच लीजिए। सादर।"
Aug 28
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय सालिक जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।"
Aug 28
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीया Richa जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई। शायद मेरा एक शे'र आपके शे'र से टकरा रहा है। मैं उस्ताद जी से पूछ कर ख़ारिज कर दूँगा उसे।  वैसे, आदरणीय अमित जी के सुझाव अच्छे आए हैं। सादर।"
Aug 28
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।  कृपया अरकान भी लिख दिया करें। सादर।"
Aug 28
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय संजय जी, अच्छी ग़ज़ल कही। बधाई स्वीकारें। आदरणीय अमित जी से सुझावों से निखार आएगा। सादर।"
Aug 28
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमीर जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। सुझाव भी ज्ञानवर्धक हैं।  सादर।"
Aug 28
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"आदरणीय अमित जी, ख़ूब ग़ज़ल कही है। बधाई। शायद 'गुरू' 12 होना चाहिए। 1212 1122 1212 22 बताओ दाम गुरू चाहिए तुम्हें अब क्या परिंदगान-ए-हवा ख़ाक पर उतर आए - (जॉन एलिया)   क्या इसे 2 में भी बाँध सकते हैं? सादर।"
Aug 28
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-170
"221 1221 1221 122 उल्फ़त में किए 'अह्द को तोड़ा नहीं जाता फिर जान भी जाती हो तो पलटा नहीं जाता औरों के बड़े ज़ौक़ से बतलाता हूँ मैं 'ऐब पर ख़ुद के गरेबान में झाँका नहीं जाता कब तक दिल-ए-नादाँ को यूँ बहला के रखूँ मैं अब और फ़रेब आपका खाया…"
Aug 28
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, अच्छी ग़ज़ल कही अपने, बधाई।  1. कि जिसने मुझसे कहा था कदम बढ़ाने को.. पहले शब्द में "कि" के बजाए "वो" करके देखें। सादर।"
Jul 27
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"आदरणीय Tilak जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें।  आदरणीय समर कबीर सर जी की इस्लाह से ग़ज़ल और भी निखर गई है। सादर।"
Jul 27
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"आदरणीया रचना जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकारें, सादर।"
Jul 27

Profile Information

Gender
Male
City State
Almora Uttrakhand
Native Place
Almora
Profession
Working
About me
Passionate writer

(तरही ग़ज़ल - अब तुमसे दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम)
221 2121 1221 212

भागें कहाँ तलक ग़मे-आहो-फ़ुगाँ से हम
जाऐंगे तेरे इश्क़ में इक रोज़ जाँ से हम

बोला था सच, पलट नहीं पाए बयाँ से हम
अब तंग आ चुके हैं ख़ुद अपनी ज़बाँ से हम

लो देखते ही देखते सब सफ़्हे जल पड़े
क्या लिख गए सियाही-ए-सोज़े-निहाँ से हम!

इक फूल था कि मुरझा गया सर-ए-गुलसिताँ
इक उम्र थी कि गुज़रे थे दौरे-ख़िजाँ से हम

आओ सिखा दूं तुमको निगाहों की गुफ़्तगू
अब तुमसे दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम

आना नहीं था उसको नहीं आया 'ज़ैफ़' वो
सर पीटते ही रह गए उस आस्ताँ से हम

© मौलिक व अप्रकाशित

Zaif's Blog

ग़ज़ल - थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक (ज़ैफ़)

 212 1212 1212 1212 

थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक

भूल-सा गया है दिल भी, धड़कनों की ताल तक 

दो दिलों की दास्ताँ न कोई समझा है यहाँ 

अपना इश्क़ आ ही पहुँचा जुर्म के मलाल तक 

ऐ ख़ुदा, रखूँ मैं तुझसे रहमतों की आस क्या

मैं पहुँचता ही नहीं कभी तेरे ख़याल तक 

हाय! आ रहा है प्यार झूठे ग़ुस्से पर तेरे 

लाल शर्म से पड़े हैं यार, तेरे गाल तक 

आशना तुझे कहा है मैंने जाने किसलिए

पूछता…

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Posted on January 12, 2023 at 7:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल (ज़ैफ़)

2122 1212 22/112

इश्क़ में दिल-जले नहीं होते

काश के तुम मिरे नहीं होते

बस ज़रूरत बिगाड़ देती है

लोग वर्ना बुरे नहीं होते

यूँ चमत्कार रोज़ होते हैं

बस हमारे लिए नहीं होते

दोष मत दो नसीब को अपने

दुनिया में ग़म किसे नहीं होते

एक बिजली जला गई थी यूँ

ये शजर अब हरे नहीं होते

तोड़ना दिल मुझे भी आता है

काश तुम फूल-से नहीं होते

'ज़ैफ़' उनका तो हो गया लेकिन

वो…

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Posted on January 6, 2023 at 7:27pm — 7 Comments

पुरानी ग़ज़ल (ज़ैफ़)

11212 11212 11212 11212 

हैं यूँ ज़िंदगी ने सितम किए, मुझे क्या से क्या है बना दिया

मैं तो आसमाँ के सफ़र में था, मुझे ख़ाक में ही मिला दिया

ये ख़ुशी भी दर्द समेत थी, कि ग़मों के सहरा की रेत थी

जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया

मिरे दिल में दर्द ही दर्द था, कि तमाम उम्र ये सर्द था

लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया

जो दिल-ओ-जिगर से भी प्यारा था, जिसे अपना कहके पुकारा…

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Posted on December 26, 2022 at 9:17pm — 6 Comments

ग़ज़ल - सज़ा तय हुई है ख़ता के बग़ैर (ज़ैफ़)

122 122 122 12

सज़ा तय हुई है ख़ता के बग़ैर

गला जाएगा अब रज़ा के बग़ैर

मेरे सब्र की इंतिहा देखिए

शिफ़ा चाहता हूँ दवा के बग़ैर

तेरे दाम-ए-तज़्वीर की ख़ैर हो

रिहा हो गया हूँ क़ज़ा के बग़ैर

तेरी बेवफ़ाई प कबतक जियूँ

कभी इश्क़ कर ले दग़ा के बग़ैर

अजब रस्म-ए-दुनिया है क़ाबिज़ यहाँ

न कुछ भी मिले इल्तिजा के बग़ैर

अना से छुटा तो ख़याल आया है

मैं कुछ भी नहीं हूँ ख़ुदा के…

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Posted on December 24, 2022 at 2:48pm — 5 Comments

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At 10:35pm on March 18, 2014,
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
said…

स्वागत है , भाई यमित आपका ओ बी ओ मे ॥

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

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