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अचानक नहीं मिलती सफलता

जिंदगी में सफलता पाने के लिए जरूरी है, सबसे पहले उसको ढूंढा जाए. जो आपके और आपकी सफलता के बीच में बाधक बना हुआ है. संभव है कि वह आपके पास नहीं तो बहुत दूर भी नहीं होता है. हम जिनको अपना कहते है कि उनको हमारी सफलता पर गर्व होता है. इसलिए वह चार से ज्यादा नहीं हो सकते. क्योंकि किसी भी परिस्थिति में हम अपने दाएं-बाएं और आगे-पीछे वालों के ही नजदीक होते है. हम हमेशा उन चारों के सुरक्षा घेरे में स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है. इन चारों की वजह से ही हम अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब होते है.…

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Added by Harish Bhatt on August 25, 2012 at 2:30am — 1 Comment

ग़ज़ल--जिंदगी एक रेल होती है.......

जिंदगी एक रेल होती है
ये न समझो कि खेल होती है।

जिंदगी का सफर बहुत लम्बा,
रूक गये तो ये फेल होती है।

वो जहाँ चाहे मोड दे हमको,
हाथ उसके नकेल होती है।

आजकल जिंदगी की भागमभाग,
पानी कम ज्यादा तेल होती है।

आज कानून ही बदल गया है,
बोल दो सच तो जेल होती है।

अब तो राशन की लाइने या सडक,
हर जगह धक्का पेल होती है।।।।

सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on August 24, 2012 at 11:00pm — 10 Comments

सलाम राजगुरु !

जंगे-आज़ादी के जांबाज़ सूरमा अमर बलिदानी  राजगुरु के जन्म दिवस  पर आज तिरंगे को सलाम करते हुए तीन कह-मुकरियां  विनम्र  श्रद्धांजलि  के रूप में सादर समर्पित कर रहा हूँ



सब कुछ अपना हार गये वो

प्राण भी अपने वार गये वो

बिना किये कुछ भी उम्मीद

ऐ सखि साधु ? नहीं शहीद !…





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Added by Albela Khatri on August 24, 2012 at 9:59pm — 4 Comments

जूठन [लघु कथा ]

एक सुसज्जित  भव्य पंडाल में सेठ धनीराम के बेटे की शादी हो रही थी ,नाच गाने के साथ पंडाल के अंदर अनेक स्वादिष्ट व्यंजन ,अपनी अपनी प्लेट में परोस कर शहर के जाने माने लोग उस लज़ीज़ भोजन का आनंद  उठा रहे थे |खाना खाने के उपरान्त वहां  अलग अलग स्थानों पर रखे बड़े बड़े टबों में वह लोग अपना बचा खुचा जूठा भोजन प्लेट सहित रख रहे थे ,जिसे वहां के सफाई कर्मचारी उठा कर पंडाल के बाहर रख देते थे |पंडाल के बाहर न जाने कहाँ से मैले कुचैले फटे हुए चीथड़ों में लिपटी एक औरत अपनी गोदी में भूख से…

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Added by Rekha Joshi on August 24, 2012 at 8:33pm — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कुम्हलाते मस्तिष्क (कुछ हाइकू )

 

१.
धूमिल ओज .
मासूम बचपन .
बस्तों का बोझ .
२.
कड़ी तपस्या .
विद्रूप बाल्य शिक्षा .
बड़ी समस्या .
३.
जीवन बूँद .
उन्मुक्त बचपन .
घिरती धुंध .
४.
रटंत शिक्षा .
कुम्हलाते मस्तिष्क .
व्यर्थ की दीक्षा .
५.
ढूँढे किरण .
बाल्यांकुर खिलते .
नेह सिंचन…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2012 at 7:12pm — 19 Comments

सुमन

ऐ सुमन ऐसे न घूरो,मेरा दिल जला जाता है,

मैं वो भूला राही हूं,जो भूला चला जाता है।

मैं तो बहता पानी हूं,है जिसका नहीं भरोसा,

कल वां था आज यहां कल,कहीं और चला जाता है....................॥



कांटों से है राह भरा,जिस पर चलना मजबूरी,

तेरा मेरे साथ चलना,ऐसा भी क्या जरूरी।

हो फूल नाजुक तुम हवा,के साथ हिल मिलकर रहो,

गर्दिशों में आफतों में,तू फिर क्यों चला जाता है...................॥



तू जा किसी का हार बन,शोभा बढ़ा दिलदार की,

या तू किसी मंदिर में… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 24, 2012 at 5:57pm — 4 Comments

भाषा बिना -----

जो तुम बोलते हो क्या सिर्फ वही है भाषा ?

मैं जब सोचती हूँ तुम्हें

और खोती हूँ ,

तुम्हारे ख्यालों में ,

सपने सजाती हूँ नयनों में ,

और मुझे बहुत दूर जहाँ

के पार ले जाते है मेरे सपने

वहां जहाँ कोई नही होता मेरे पास

मैं नहीं खोलती अपना मुंह

फिर भी मैं बतयाती हूँ

फूलों से,तितलियों से, बहारों से

और तुमसे .

मेरे अहसास में होते हो तुम ,

बिन बोलें करती…

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Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — 8 Comments

शायद ये कुछ बताएं तुम्हें-------

यह जो तुम्हारे आस पास

नदियाँ है ना.

इनको कभी देखना मेरी

नज़र से .

यह तुम्हें बिना थके

बिना…

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Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:30pm — No Comments

कह मुकरियाँ

(आदरणीय  अम्बरीश जी रहा नहीं गया   कह मुकरियाँ  मैंने भी लिखी सादर देखे :..)

 
 
वारंट निकालों चाहे जितने 
हाथ पुलिस के वे  न आते 
गुण्डों का भी पोषण करते 
क्या सखी नेता ? नहीं…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 24, 2012 at 1:30pm — 9 Comments

तीन मुक्तक ......

मिट्टी को रंग के लाल-हरे रंग दे दिये

लिख-लिख किताबें सोंचने के ढंग दे दिए

देनी थीं वुसअतें तो खुले आसमान सी

धर्मो ने दायरे बड़े ही तंग दे दिए



चन्दन गुल या इत्र की खुशबू,जिसको होना है हो जाए 

घूमे जंगल-जंगल ,महके उपवन-उपवन धूम मचाए 

पर ,ख़ुलूस से बढ़ कर कोई गंध नहीं है इस दुनिया में 

जो बिखरे इस दर इठलाकर उस दर की देहरी महकाए



ईमान अब संदेह का पर्याय हो…

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Added by seema agrawal on August 24, 2012 at 11:00am — 11 Comments

बस करो अब भागना ---------

 क्यों कर जाते है परिस्थितियों से पलायन हम ,

ये परिस्थितियां ही तो सिखाती है हमें जीना

पलायन में कहाँ होती है ,

स्थितियों को बदलने की इच्छा,

फिर क्यों नहीं हम परिस्थितियों का सामना करते रूककर ,

आखिर कहाँ जा सकते है भागकर .

जहाँ जायेंगें वहां  की स्थितियां ,

फिर खड़ी होंगी बन कर परिस्थितियां

इनका कोई अंत नही ,

तो बस करो अब भागना

और करो दृढ़ निश्चय

परिस्थितियों से संघर्ष का…

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Added by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 11:00am — 7 Comments

नहीं है पास तू अगर तो तेरी याद सही

नहीं है पास तू अगर तो तेरी याद सही

रही जो याद वो शहद सी मीठी बात सही



ग़मों में मुस्कुरा रहा हूँ गहरे जख्म छुपा

दिले-नाशाद क्यूँ फिरूँ जो रहना शाद सही



उजाले चीखने लगे जो तुझको देख अगर

अँधेरी गर्दिशों भरी ही काली रात सही



तुझे तो था…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 24, 2012 at 10:14am — 6 Comments

आओ सम्वाद करें

आओ सम्वाद करें

चमन में मुरझाते हुए फूलों पर

जंगल में ख़त्म होते बबूलों पर

माली से हुई  अक्षम्य भूलों पर

सावन में सूने दिखते  झूलों पर …

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Added by Albela Khatri on August 23, 2012 at 11:30pm — 4 Comments

आईने से निगाहें हटा लीजिये

आईने से निगाहें हटा लीजिये
या निगाहों में हम को पनाह दीजिये

आपको दिल ने समझा है अपना नबी
थोडा अपने भी दिल को मना लीजिये

आप ही आप हैं हर निगाह हर तरफ
आये ना गर यकीं आजमा लीजिये

चश्म बेचैन है रौशनी के लिए
ऐ निहां अब तो परदा उठा दीजिये

हम ही हम हैं दीवाने हमीं बेफहम
आप भी होश थोडा गवां दीजिये

बोलो कब रहे तिश्नगी में नज़र
इश्क का जाम अब तो लुटा दीजिये

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Added by Pushyamitra Upadhyay on August 23, 2012 at 8:30pm — 9 Comments

नव-मीडिया : दशा, दिशा एवं दृष्टि

(0)
टीका डी एन ए सरिस, गाड-पार्टिकिल चार |
कई सदी से डालता, गहन असर संचार |
गहन असर संचार, सरस मानव का जीवन |
दिन प्रति दिन का सार,…
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Added by रविकर on August 23, 2012 at 7:30pm — No Comments

एक प्रेम कविता

जब भी गुमसुम तन्‍हा तट पर

बरबस तुम आ जाओगे

वहीं लहर के श्रृंग तोड़ते

मुझको तुम पा जाओगे

 

बिछुड़े पल के दीप तले

जब अश्रु अर्घ्‍य चढ़ाओगे

वहीं शिखा की छाया छूते

मुझको तुम पा जाओगे

 

छोड़-छोड़ सौन्‍दर्य प्रसाधन

जब कुंतल तुम बिखराओगे

वहीं किसी दर्पण में हंसते

मुझको तुम पा जाओगे

 

ना कहना ना मुझको छलिया

फिर किसको प्रीत सिखाओगे

पायल,कंगन,बिंदी,अंजन में

मुझको तुम पा…

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Added by राजेश 'मृदु' on August 23, 2012 at 4:08pm — 9 Comments

भ्रूण हत्या- समाज का एक कड़वा सच

स्वपन दुनियाँ से जागो आज

भ्रूण हत्या का करो ना पाप

आत्मा की उसकी सुनो गुहार

देखि नहीं जो, अब तक संसार

करती फरियाद वो चीख पुकार

क्यूँ करता मेरी, हत्या समाज

 

कोई तो दो मेरा दोष बता

कन्या होने की दो ना सजा

माँ बेबस लाचार, तू क्यूँ है बता

हृदय अपना शूल ना बना

मुझ पर थोडा तरस तो खा

निर्मम हत्या से मुझे बचा

 

अपने सानिध्य में मुझको ले

वंचित न कर अधिकार मेरे

दे मुझको संस्कार…

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Added by PHOOL SINGH on August 23, 2012 at 3:00pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
प्रलय ,ओ बी ओ में मेरी पचासवीं प्रविष्टि,

छंद:'कुकुभ'  लिखने का पहला प्रयास  (मात्रायें : १६-१४ अंत में दो गुरु)

प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला 

क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला 

डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा 

कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा 

राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी 

प्रलय  कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी

पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते  रहे आरी  

खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी…

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Added by rajesh kumari on August 23, 2012 at 1:00pm — 22 Comments

दो कवितायेँ

1. सब मिल जुल कर जियो



भाई देखो यह देश और दुनियां तो सबकी हैं .

किसी एक के बाप का हक नही है इस पर .

फिर क्यों झगड़ा करते हैं हम बेवजह ?

जब तक जियो सब मिल जुल कर जियो यार .

तेरा, मेरा, इसका,उसका छोडो यह तकरार .

सब मिल कर रहो आपस में करो प्यार .

क्या रखा हैं हेगडी में एक दिन मर जाओगे यार .



2. सरोकार



तुम्हारे हमारे सरोकार क्या हैं

तुम क्या समझते हो परोपकार क्या है ?

किसी को देना अठन्नी-रुपया

यह परोपकार…

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Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 12:30pm — 5 Comments

सरोकार -----

तुम्हारे हमारे सरोकार क्या हैं

   तुम क्या समझते हो

   परोपकार क्या है ?

किसी को देना अठन्नी-रुपया

यह परोपकार नहीं  है भैया ,

  उसे इस काबिल बनाने में करो मदद

   कि वो खुद कमाले …

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Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 12:19pm — 6 Comments

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