जिंदगी में सफलता पाने के लिए जरूरी है, सबसे पहले उसको ढूंढा जाए. जो आपके और आपकी सफलता के बीच में बाधक बना हुआ है. संभव है कि वह आपके पास नहीं तो बहुत दूर भी नहीं होता है. हम जिनको अपना कहते है कि उनको हमारी सफलता पर गर्व होता है. इसलिए वह चार से ज्यादा नहीं हो सकते. क्योंकि किसी भी परिस्थिति में हम अपने दाएं-बाएं और आगे-पीछे वालों के ही नजदीक होते है. हम हमेशा उन चारों के सुरक्षा घेरे में स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है. इन चारों की वजह से ही हम अपने लक्ष्य को पाने में कामयाब होते है. इन चारों को हमारी सफलता के अलावा किसी और बात से कोई मतलब नहीं होता. यह चार ही हमारी कमियों को दूर करने का भरसक प्रयास है. इन चारों के अलावा जो भी हमारे अपने होने का विश्वास जताते है, उनमें ही हमारा दुश्मन होता है. उसको पहचान कर यदि उस पर काबू कर लिया तो समझो सफलता के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा को दूर कर लिया. अगर कही हमारी गलतियों की वजह से इन चारों में से एक हमारा विरोधी हो गया, तो समझो गए काम से, फिर कोई हमको असफल होने से नहीं रोक सकता. फिर तो दुनिया वाले ही कहते है कि घर का विभीषण लंका ढहाए. लेकिन चार के अलावा और किसी को हमारी सफलता-असफलता से कोई मतलब नहीं होता. कभी-कभी तो हम इन चारों की बात को भी अहमियत नहीं देते. और वक्त अपनी गति चलता हुआ हमारी मंजिल को हमेशा-हमेशा के लिए हमसे दूर कर देता है. परिणामत: जब हम दुनिया की नजरों में नाकामयाब साबित हो जाते है तो यह चार ही हमको सहारा व साहस देते है आगे जीने के लिए. यह भी एक कटु सत्य है कि अपनी ही धुन में लक्ष्य पर अडिग रहने वाले को दुनिया वाले एक पागल से ज्यादा कुछ नहीं समझते. लेकिन सफलता मिलते ही वह पागल स्टार बन जाता है. तब वह इन चारों के सहयोग से ही चारों दिशाओं में जगमगाता है. सफलता अचानक नहीं मिलती, इसके लिए दिन-रात एक करना पड़़ता है और जो अपने लक्ष्य को पाने के लिए लालायित रहे, उनके पास फालतू की बातों के लिए वक्त कहां से होगा. बस यह चार ही हमको लक्ष्य पर पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण साबित होते है. इसलिए जरूरी है अपने दाएं-बाएं और आगे-पीछे रहने वालों की अहमियत को समझने और इनके अलावा अपने सबसे बड़े दुश्मन को पहचानने की. अगर सबसे बड़ा सत्य मृत्यु है, इस दुनिया से जाते वक्त भी तो चार कंधों की जरूरत होती है.
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हरीश जी ,अपनों का साथ हो तो इंसान क्या नही कर सकता ,बढ़िया आलेख ,बधाई
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