जो तुम बोलते हो क्या सिर्फ वही है भाषा ?
मैं जब सोचती हूँ तुम्हें
और खोती हूँ ,
तुम्हारे ख्यालों में ,
सपने सजाती हूँ नयनों में ,
और मुझे बहुत दूर जहाँ
के पार ले जाते है मेरे सपने
वहां जहाँ कोई नही होता मेरे पास
मैं नहीं खोलती अपना मुंह
फिर भी मैं बतयाती हूँ
फूलों से,तितलियों से, बहारों से
और तुमसे .
मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती हूँ तुमसे बातें ,
क्या यह नहीं है भाषा ?
और क्या भाषा बिना संभव है यह सब ????
Comment
नवल किशोर भाई, आपकी इस भाव-रचना ने अत्यंत प्रभावित किया है. शुभेच्छाएँ.. .
मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती हूँ तुमसे बातें ,
क्या यह नहीं है भाषा ?
और क्या भाषा बिना संभव है यह सब ????इसी को कहते हैं आत्मा से आत्मा का अप्रत्यक्ष वर्तालात/संवाद जिसके तार आपस में जुड़े होते हैं जो दिखाई नहीं देते जिनको समझाने के लिए किसी भाषा या शब्दों के भी जरूरत नहीं होती ----बहुत अच्छे भाव छुपे हैं प्रस्तुति में बहुत बधाई |
आदरणीय प्रधान संपादक जी आपका और ओ बी ओ परिवार का बहुत बहुत धन्यवाद for featured my blog post.
प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया रेखा जी और सीमा जी .
मेरे अहसास में होते हो तुम ,
बिन बोलें करती हूँ तुमसे बातें ,
क्या यह नहीं है भाषा ?
और क्या भाषा बिना संभव है यह सब ????,बहुत खूब ,अपने जज़्बात बयाँ बिन बोले भी कर सकते है ,अति सुंदर ,हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति नवल जी
मौन संभाषण से सहज और सुरक्षित तो कोई और संभाषण हो ही नहीं सकता इस मौन के सम्मान में कुछ प्रस्तुत है
मौन ही को सुन रहा था आज मौन
मौन की भाषा समझता और कौन
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