आओ सम्वाद करें
चमन में मुरझाते हुए फूलों पर
जंगल में ख़त्म होते बबूलों पर
माली से हुई अक्षम्य भूलों पर
सावन में सूने दिखते झूलों पर
कि कैसे इन्हें आबाद करें........आओ सम्वाद करें
गरीबी व भूख के मसलों पर
शहर में सड़ रही फसलों पर
भटकती हुई नई नस्लों पर
आँगन में उग रहे असलों पर
थोड़ा वाद करें, विवाद करें........आओ सम्वाद करें
शातिर रहनुमा की अवाम से गद्दारी पर
हाशिये पर खड़ी पहरुओं की खुद्दारी पर
मिट्टी के माधो बने हर एक दरबारी पर
बेदखल किये गये लोगों की हकदारी पर
थोड़ा रो लें, अवसाद करें .........आओ सम्वाद करें
ज़ुल्म अब तक जो हुआ, जितना हुआ हमने सहा
न तो ज़ुबां मेरी खुली और न ही कुछ तुमने कहा
किन्तु अब खामोशियाँ अपराध है
अब गति स्वाभिमान की निर्बाध है
तोड़ना है चक्रव्यूह अब देशद्रोही राज का
हर बशर मुँह ताकता है क्रांति के आगाज़ का
बीज जो बोया था हमने रक्त का, बलिदान का
व्यर्थ न जा पाए इक कतरा भी हिन्दुस्तान का
साजिशें खूंख्वारों की बर्बाद करें ....आओ सम्वाद करें ....आओ संवाद करें
जय हिन्द !
-अलबेला खत्री
Comment
सम्मान्य सीमा जी.......आपके शब्दों ने मुझे हौसला दिया है.......आपके आत्मिक और उदार लफ़्ज़ों में पोशीदा ज़र्फ़ से भरकर मेरी लेखनी को धार मिलेगी ऐसा मुझे भरोसा है
बहुत बहुत शुक्रिया
सादर
वो सारे ज़रूरी मसले जिन पर सब मुह बंद रखते हैं चाहे वो समाज हो या राजनीति ,एक कवि ही मुह खोल सकता है और खुल कर बोल सकता है ...निश्चित ही आपने वो सारे मुद्दे उठाये हैं जिन पर नेता सिर्फ चुनाव के समय मुह खोलते हैं और समाज सिर्फ तब बोलता है जब उसे यह दिखाना होता की हम भी यहाँ हैं ज़िंदा हैं
एक सच यह भी है कलम सिर्फ आगाह कर सकती है जागने के लिए प्रेरित कर सकती है समाज के अहम हिस्से के रूप में आपने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई अलबेला जी
ज़ुल्म अब तक जो हुआ, जितना हुआ हमने सहा
न तो ज़ुबां मेरी खुली और न ही कुछ तुमने कहा
किन्तु अब खामोशियाँ अपराध है
अब गति स्वाभिमान की निर्बाध है
तोड़ना है चक्रव्यूह अब देशद्रोही राज का
हर बशर मुँह ताकता है क्रांति के आगाज़ का
बीज जो बोया था हमने रक्त का, बलिदान का
व्यर्थ न जा पाए इक कतरा भी हिन्दुस्तान का
साजिशें खूंख्वारों की बर्बाद करें .............ईश्वर आपकी ललकार कामयाब करे
बहुत सुन्दर और प्रभावी लिखा लड़ी वाला जी आपने,..
तहेदिल से अभिनन्दन आपका
आदनीय अलबेला जी, आपभी खूब है, कोई नया वाद-संवाद लेही आते है, फिर कलम कैसे रुके
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