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गज़ल

ग़ज़ल

1222 1222 1222 122

रहे जिससे मरासिम थे वही अखबार निकला

मुसीबत है अभी जीवन निरा श्रृंगार निकला

शबे ग़म दिल मिरा टूटा रही वो आँख रोती

कई दिन हो गये सूरज न वो संसार निकला

अँधेरे अधखुली आँखों मुझे अब देखते हैं

बुरा हो इश्क़ तेरा यार वो अख़बार निकला

न कोई दोस्त है दुनिया न ही हमदम यहाँ है

जिसे गलहार समझा था अभी खूँख़्वार निकला

न हमजोली बचा है आज तो…

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Added by Chetan Prakash on September 12, 2022 at 8:30pm — No Comments

ग़ज़ल

221       1221       1221       122



ख़्वाबों को ज़रा आँख के पानी से निकालो

इन बुलबुलों को अश्क-फ़िशानी से निकालो

ईमान  की  कश्ती  पे  मुहब्बत  की  मसर्रत

इस कश्ती  को तूफ़ां की रवानी से निकालो

इस  रास्ते  पे  वस्ल   की  उम्मीद   नहीं  है

तरकीब   कोई   राह   पुरानी   से  निकालो

ग़ज़लों को रखो नफ़रती शोलों  से बचाकर

अश'आर  सभी लफ़्ज़ गिरानी से  निकालो

इक रोज़ गुज़र जाऊँगा ज्यूँ वक़्त  गुज़रता

भावों में रखो…

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Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 12, 2022 at 2:30pm — 18 Comments

कुछ ढंग का लिख ना पाओगे

जब तक तुमने खोया कुछ ना, दर्द समझ ना पाओगे 

चाहे कलम चला लो जितना, कुछ ढंग का लिख ना पाओगे 

जो तुम्हारा हृदय ना जाने, कुछ खोने का दर्द है क्या 

पाने का सुकून क्या है, और ना पाने का डर है क्या 

कैसे पिरोओगे शब्दों में तुम,  उन भावों को और आंहों को 

जो तुमने ना महसूस किया हो, जीवन की असीम व्यथाओं को 

जब तक अश्क को चखा ना तुमने, स्वाद भला क्या…

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Added by AMAN SINHA on September 12, 2022 at 2:09pm — No Comments

हिन्दी

हिन्दी



उषा अवस्थी



एकता का सूत्र हिन्दी

राष्ट्र का यह मान

है हमारा आभरण

सौन्दर्य का प्रतिमान



हिन्दी, हमारे हिन्द का है

समन्वित उदघोष

विश्व में फैला रही जो

ज्योति, गौरव बोध



भारती बागेश्वरी का

है दिया वरदान

हम सदा इसको समर्पित

देश का अभिमान



ज्ञान, भक्ति, कर्म से

अद्भुत सुसज्जित वेश

संत की वाणी सुभाषित

मुक्ति का संदेश



मातृभाषा में समाहित

ऊर्जा का स्रोत

समृद्धशाली,… Continue

Added by Usha Awasthi on September 12, 2022 at 12:31pm — 2 Comments

दिन ढले,रातें गईं....(गजल)

2122 2122 2122 212

दिन ढले,रातें गईं,बढ़ती ही जाती पीर है

'याद कर जिंदा रहें कल',आपकी तकरीर है। 1

हो रहा सब कुछ हवा तो क्या हुआ तकदीर है

चूमने को पास मेरे आपकी तस्वीर है।2

ले गईं मोती बहाकर जब समद की शोखियाँ

बन रहे तब से घरौंदे और मन मतिधीर है।3

आंसुओं का मोल किसने है चुकाया इस जहां?

सोचता रख लूं संजो इनकी बड़ी तासीर है।4

फूल की ख्वाहिश लिए चलता रहा मैं रात -दिन

क्या हुआ अब सामने…

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Added by Manan Kumar singh on September 8, 2022 at 7:08pm — 2 Comments

नज़्म (बे-वफ़ा)

2122 - 1122 - 1122 - 112/(22)

दिल धड़कने की सदा ऐसी भी गुमसुम तो न थी

इतनी बे-परवा मेरी जान कभी तुम तो न थी 

हम तड़पते ही रहे तुम को न अहसास हुआ 

अपनी उल्फ़त की कशिश इतनी सनम कम तो न थी 

सब ने देखा मेरी आँखों से बरसता सावन

थी वो बरसात बड़े ज़ोरो की रिम-झिम तो न थी

तुम जिसे ज़ीनत-ए-गुल समझे थे अरमान मेरे 

गुल पे क़तरे थे मेरे अश्कों के शबनम तो न थी 

क्यूँ न आहों ने मेरी आ के तेरे दिल को…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2022 at 11:02pm — 21 Comments

ग़ज़ल (वो गर हमसे नज़रें मिलाने लगेंगे)

122 - 122 - 122 - 122 

वो गर हमसे नज़रें मिलाने लगेंगे 

रक़ीबों पे बिजली गिराने लगेंगे 

ये लकड़ी है गीली उठेगा धुआँ ही  

सुलगने में इसको ज़माने लगेंगे 

करोगे जो बातें बिना पैर-सर की

कई इनमें फिर शाख़साने लगेंगे 

उमीदों को जिसने न मरने दिया हो

हदफ़ पर उसी के निशाने लगेंगे 

तेरी शाइरी से परेशाँ हैं जो-जो 

तेरी नज़्में ख़ुद गुनगुनाने लगेंगे 

ये जो बात तुमने कही है बजा…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2022 at 10:11pm — 4 Comments

कितना कठिन था

कितना कठिन था बचपन में गिनती पूरी रट जाना 

अंकों के पहाड़ो को अटके बिन पूरा कह पाना 

जोड़, घटाव, गुणा भाग के भँवर में  जैसे बह जाना

किसी गहरे सागर के चक्रवात में फँस कर रह जाना

 

बंद कोष्ठकों के अंदर खुदको जकड़ा सा पाना 

चिन्हों और संकेतों के भूल-भुलैया में खो जाना 

वेग, दूरी, समय, आकार, जाने कितने आयाम रहे 

रावण के दस सिर के जैसे इसके दस विभाग रहे 

 

मूलधन और ब्याज दर में ना जाने कैसा रिश्ता था 

क्षेत्रमिति और…

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Added by AMAN SINHA on September 5, 2022 at 2:58pm — 2 Comments

शिक्षक दिवस पर विशेष

२२१/२१२१/२२१/२१२

*

अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए

जीवन को एक दृढ़ नया आधार दीजिए।।

*

व्याख्या गुणों की कीजिए दुर्गुण निथार के

सारे जगत को  मान्य  हो वह सार दीजिए।।

*

पथ से  परोपकार  व  सच  के  न दूर हों

नैतिक बलों की शक्ति का संचार दीजिए।।

*

अच्छा करें तो  हौसला  देना  दुलार कर

करदें गलत तो वक़्त पे फटकार दीजिए।।

*

गुरुकुल बृहद सा गेह है मुझको लगा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2022 at 7:30am — 6 Comments

कह मुकरियाँ

         ( 1 )

आ जाये दिल खुश हो जाये

चला जाय तो भादों आवे

चाकर बन पैरों गिर पसरा

क्या सखि  साजन ? ना सखि भँवरा !

           ( 2 )

दादुर मोर पपीहा बोले 

कोयल सी वो  बोली बोले 

समीर बहती है दिल-आँगन 

क्या सखि साजन ? ना सखि सावन !

           ( 3 )

पोर- पोर में रस भर जावे

चहुँओर मुरलिया सी बाजे

खुशियों का नहीं जग में अंत

क्या सखि साजन ? ना सखि…

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Added by Chetan Prakash on September 4, 2022 at 3:36pm — No Comments

दोहा मुक्तक -मुफलिसी ......

दोहा मुक्तक-मुफलिसी ..........

चौखट  पर   ईमान  की,  झूठे   पहरेदार ।
भूख, प्यास, आहें भरे, रुदन  करे  शृंगार ।
नीर बहाए मुफलिसी,  जग न समझा पीर -
फुटपाथों पर भूख का, सजा हुआ बाजार ।
                      * * * * *
मौसम की हैं झिड़कियाँ, तानों का  उपहार ।
मुफलिस की हर भोर का , क्षुधा करे शृंगार ।
क्या आँसू क्या कहकहे, सब के सब है मौन -
दो  रोटी  के  वास्ते, तन  बिकता  सौ  बार ।

सुशील सरना / 4-9-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on September 4, 2022 at 2:51pm — 4 Comments

साज-श्रृंगार व्यर्थ है तेरा (ग़ज़ल)

2122   1212   22

जितना बढ़ते गए गगन की ओर
उतना उन्मुख हुए पतन की ओर

साज-श्रृंगार व्यर्थ है तेरा
दृष्टि मेरी है तेरे मन की ओर

फल परिश्रम का तब मधुर होगा
देखना छोड़िए थकन की ओर

मन को वैराग्य चाहिए, लेकिन
तन खिंचा जाता है भुवन की ओर

"जय" भी एकांतवास-प्रेमी है
इसलिए आ गया सुख़न की ओर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by जयनित कुमार मेहता on September 4, 2022 at 1:25am — 7 Comments

हिंदी क्या है?

हिंदी क्या है?

बस एक लिपि?

नहीं

बस एक भाषा?

नहीं

बस एक अनुभव है?

नहीं

हिंदी आत्मा है,

सम्मान है, स्वाभिमान है

भारत की पहचान है

 

हिंदी क्या है?

बस एक बोली?

नहीं

बस एक संवाद का माध्यम?

नहीं

बस एक भाव?

नहीं

हिंदी जान है, गुमान है,

आर्याव्रत का अभिमान है

 

हिंदी क्या है?

एक रास्ता है

जिसपर…

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Added by AMAN SINHA on August 31, 2022 at 10:24am — No Comments

निभाते रहे दुश्मनी को वो ऐसे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



१२२/१२२/१२२/१२२

***

न मन के  सहारे  रहे साथ अपने

न सुख के पिटारे रहे साथ अपने।।

*

कभी साथ देने न मझधार आयी

कि सूखे किनारे रहे साथ अपने।।

*

बहारें भले मुह फुलाती हों अब भी

खिजां  के  नजारे  रहे  साथ अपने।।

*

खुशी ने जो पाले अछूतों में गिनते

दुखों  के  दुलारे  रहे  साथ  अपने।।

*

नदी नीर मीठा लिए गुम गयी पर

समन्दर वो खारे  रहे साथ अपने।।

*

भले आज फैली अमा हर तरफ हो

कभी  चाँद  तारे   रहे  साथ …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 29, 2022 at 9:30pm — 8 Comments

कुछ क्षण हीं शेष है अब तो

कुछ क्षण हीं शेष है अब तो, मिल जाओ तुम तो अच्छा है 

कैसे मैं समझाऊँ तुमको, जीवन का धागा कच्चा है 

साँस में आस  जगी है अब भी, तुम मुझसे मिलने आओगे 

आँखें बंद होने से पहले, आँखों की प्यास बुझाओगे 

 

तुम बिन मेरा…

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Added by AMAN SINHA on August 29, 2022 at 3:11pm — No Comments

कब तक झुट्टे को पूजोगे (ग़ज़ल)

बह्र : 22 22 22 22

जब तक पैसे को पूजोगे

चोर लुटेरे को पूजोगे

जल्दी सोकर सुबह उठोगे 

तभी सवेरे को पूजोगे

खोलो अपनी आँखें वरना

सदा अँधेरे को पूजोगे

नहीं पढ़ोगे वीर भगत को

तुम बस पुतले को पूजोगे

ईश्वर जाने कब से मृत है

कब तक…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 27, 2022 at 7:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल

दिल में जो छुपाया है बोलना चाहेंगे

उसे दिल से मिटाया है बोलना चाहेंगे।

करेंगे जतन मिटादें उसकी यादों को

उसे हमने भुलाया है बोलना चाहेंगे।

वो हरगिज़ न रहेगा यादों में मिरी

याद बनके सताया है बोलना चाहेंगे।

बड़ा गुरुर था उसे मुझे अपने प्यार पर

हालात ने मिटाया है बोलना चाहेंगे।

फलक के चाँद से बातें किया रातें जगी मैंने

माहताब भी शर्माया है बोलना चाहेंगे।

अच्छा सिला दिया है मेरे यार ने…

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Added by Awanish Dhar Dvivedi on August 26, 2022 at 11:09pm — 1 Comment

गज़ल

गज़ल

1212 1122 1212 22

वो जिसकी मैंने मदद की शरर पे बैठ गया

सितारा हो गया सबकी नज़र पे बैठ गया

गरीब जान के जिसकी कभी मदद की थी

वही ये शहर का बालक तो ज़र पै बैठ गया

वो बार-बार मुझे अपने घर बुलाता था

जो एक बार गया मैं तो दर पे बैठ गया

तुम्हारे जाने से पहले न कोई मुश्किल थी

लो फिर हुआ ये कि तूफाँ डगर पे बैठ गया

बदल गये हैं वो हालात ज़िन्दगी के अब

अगर कहूँ तो शनीचर ही सर पे बैठ…

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Added by Chetan Prakash on August 26, 2022 at 4:00am — No Comments

ग़ज़ल - जो हसीनों से दिल लगाते हैं

ग़ज़ल
जो हसीनों से दिल लगाते हैं
वो हमेशा फरेब खाते हैं
सिर्फ़ कहते हैं वो यही है ग़म
मुझको अपना कहाँ बनाते हैं
ज़द में उनका मकां भी आएगा
जो पड़ोसी का घर जलाते हैं
बेवफ़ाई है आपकी फ़ितरत
हम तो करके वफा निभाते हैं
दिल में उठती है इक क़यामत सी
जब ख़यालों में उनको लाते हैं
पूछता ही नहीं उसे कोई
वो नजर से जिसे गिराते हैं
होश रहता नहीं हमें तस्दीक
उनसे जब भी नजर मिलाते हैं

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

Added by Tasdiq Ahmed Khan on August 23, 2022 at 11:24am — 1 Comment

हमको जाँ से ज़ियादा है प्यारा वतन

हमको जाँ से ज़्यादा है प्यारा वतन

सारी दुनिया से बहतर हमारा वतन

आपसी भाइचारे का हो खात्मा

कैसे करले भला ये गवारा वतन

यौमे आज़ादगी का है मंज़र हसीं

ढंक गया है तिरंगों से सारा वतन

सिर्फ़ हिन्दू मुसलमान सिख ही नहीं

सबकी जाँ सबकी आंखों का तारा वतन

दौर - ए - मुश्किल है इसकी हिफाज़त करो

दे रहा है सभी को सहारा वतन

रखिए फिरका परस्तों पे पैनी नज़र

कर नहीं दें ये फिर पारा पारा वतन

इसकी मिट्टी में शामिल है मेरा भी…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on August 23, 2022 at 11:00am — 8 Comments

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