For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,123)

करनी-भरनी(लघुकथा)

बदलू नेता का चौदह वर्ष का एकमात्र बेटा ड्रग के ओवरडोज से मर गया। धंधेबाज गंगुआ की गिरफ्तारी हुई है।यह खबर शहर के गली-मुहल्ले में आग की तरह फैल गई।लोग कहने लगे, ‘यह बदलू तो पहले चवन्नी छाप पिछलग्गू नेता हुआ। इधर-उधर करके एक बार पार्षद भी बन गया था।इतना घपला-घोटाला किया-कराया कि इसका एक पैर हमेशा जेल में रहता।एक मामले में बाहर आता,दूसरे में गिरफ्तार हो जाता।बाद में इसने चरस-गाँजे का धंधा शुरू किया। जेल भी गया। जहाँ-तहाँ कुछ दे-लेकर…

Continue

Added by Manan Kumar singh on October 7, 2022 at 10:42am — 2 Comments

ग़ज़ल

121 22 121 22 121 22



हरिक  धड़क पे  तड़प  उठें बद-हवास आँखें

बिछड़ के  मुझसे कहाँ गईं  ग़म-शनास आँखें



कहाँ  गगन  में  छुपे  हुये  हो ओ चाँद जाकर

तमाम  शब  अब  किसे  निहारें  उदास आँखें



बिछड़ के तुझसे सिवाय इसके रहा नहीं कुछ

कि  एक  बिगड़ा हुआ  मुक़द्दर क़यास आँखें



यक़ीन  होता  नहीं  कि  कैसे  चला  गया  वो

दिखा  रही थीं  डगर  उसी की  उजास…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 5, 2022 at 7:00pm — 10 Comments

दिल से अपने हमें गिला है ये

2122   1212    22

खुद ब खुद हो गया जुदा है ये

दिल हमारा तो मनचला है ये

गुम है दिल ये किसी पहेली में

और कई दिन से सिलसिला है ये

ज़िन्दगी का कोई सबूत नहीं

बस धड़कता सा हादसा है ये

बात करता नहीं कुछिक दिन से

" दिल से अपने हमें गिला है ये "

है समन्दर भी ये हरा अब तो

चांद पूनम तो ज़लज़ला है ये 

बदहवासी रही है हावी दिल

भागता बेहिसी मरा है ये

आखिरी दांव…

Continue

Added by Chetan Prakash on October 5, 2022 at 5:30pm — 1 Comment

गुमान (लघुकथा)



सुषमा ने तकिया समीर के सिरहाने कर दी थी।अपना सिर किनारे पर रखा था जो कभी ढुलक कर तकिये से उतर गया था।दोनों गहरी निद्रा में निमग्न थे।अचानक समीर ने करवट बदली।दोनों के नथुने टकराये।उसे आभास हुआ कि सुषमा का सिर तकिया पर नहीं, नीचे है।उसने आँखें खोली। उसे महसूस हुआ ,सुषमा दायीं करवट लेटी थी।उसकी उष्ण साँसें समीर को अच्छी लगीं।वह उसे तकिये पर लाने की कोशिश करने लगा।हालांकि वह चाहता था कि काम भी हो जाये और सुषमा की निद्रा भंग भी न हो।पर जैसे उसने उसे बाँहों में लेकर उसका…

Continue

Added by Manan Kumar singh on October 5, 2022 at 5:15pm — 2 Comments

दशहरा पर्व पर कुछ दोहे. . . .

दशहरा पर्व पर कुछ दोहे. . . .

सदियों से लंकेश का, जलता दम्भ  प्रतीक ।

मिटी नहीं पर आज तक, बैर भाव की लीक।।

सीता ढूँढे राम को, गली-गली में  आज ।

लूट रहे हर मोड़ पर, देखो रावण लाज ।।

 मन के रावण के लिए, बन जाओ तुम राम।

अंतस को पावन करो,हृदय बने श्री धाम।।

कहते हैं रावण बड़ा, जग में था विद्वान ।

पर नारी के मोह ने, छीनी उसकी जान ।।

माँ सीता का कर हरण, इठलाया  लंकेश ।

मिटा दिया फिर राम ने, लंकापति…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 5, 2022 at 1:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल (शुक्र तेरा अदा नहीं होता)

2122-1212-22

शुक्र तेरा अदा नहीं होता

और वा'दा वफ़ा नहीं होता

तू न तौफ़ीक़ दे अगर मौला 

एक सज्दा अदा नहीं होता 

सिर्फ़ तौबा पे बख़्शने वाले 

कोई तुझ-सा बड़ा नहीं होता 

घर नहीं, है वो एक वीराना 

ज़िक्र जिस में तेरा नहीं होता 

सबके अहवाल जानता है तू

कुछ भी तुझ से छुपा नहीं होता 

तेरी रहमत के आसरे पर हूँ 

तू जो चाहे तो क्या नहीं होता

और बे-ज़र 'अमीर'…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 4, 2022 at 11:08pm — 7 Comments

ना तुझे पाने की खुशी ना तुझे खोने का ग़म

ना तुझे पाने की खुशी, ना तुझे खोने का ग़म 

मिल जाए तो मोहब्बत, ना मिले तो कहानी है 

ना आँखों में आँसू और ना चेहरे पर पानी  

बेचैन मोहब्बत में, बदनाम जवानी है 

ना तेरे साथ की चाहत,…

Continue

Added by AMAN SINHA on October 4, 2022 at 12:38pm — 3 Comments

असली चेहरा

फिर जंगल का राजा हाथी ही बना है।पर, अब उसके साथ बिल्लियाँ, भेड़ें आदि हैं। भेड़ियों की बहुतायत है।समरसता, न्याय, सबको काम देने का ऐलान हो चुका है।उधर शेर -मंडल दहाड़ मारकर जंगल को सिर पर उठाए है कि इस ढुलमुल हाथी को उनलोगों ने ही पाल -पोसकर बड़ा किया।काम लायक बनाया,पर यह तो पाला- बदलू निकला।इसपर कोई क्या भरोसा करेगा? राज -पक्ष की ओर से इन सब बातों को विधवा -विलाप करार दिया गया है। शेर -दल की अब बिल्लों के दल से…

Continue

Added by Manan Kumar singh on October 4, 2022 at 10:40am — 2 Comments

ग़ज़ल (...महफ़ूज़ है)

2122 - 2122 - 2122 - 212

वो जो हम से कह चुके वो हर बयाँ महफ़ूज़ है

दास्तान-ए-ग़ीबत-ए-कौन-ओ-मकाँ महफ़ूज़ है 

मुश्त'इल करने की हम को कोशिशें कितनी हुईं

लो हमारे दिल में देखो सब यहाँ महफ़ूज़ है 

हक़-बयानी जिसका शेवा हो कभी झुकता नहीं 

दार तक रंग-ए-रुख़-ए-ताब-ओ-तवाँ महफ़ूज़ है 

ज़ब्त कहते हैं जिसे वो है समंदर में कहाँ 

ये उलट देता है सब-कुछ जो जहांँ महफ़ूज़ है 

ज़र्फ़ ये बख़्शा है रब ने…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 3, 2022 at 10:54pm — 2 Comments

एनकाउंटर(लघुकथा)

'कभी- कभी  विपरीत विचारों में टकराव हो जाता है।चाहे- अनचाहे ढंग से अवांछित लोग मिल जाते हैं,या वैसी स्थितियाँ प्रकट हो जाती हैं। या विपरीत कार्य- व्यवसाय के लोगों के बीच अपने- अपने कर्तव्य- निर्वहन को लेकर मरने- मारने तक की नौबत आ जाती है। यदा- कदा तो परस्पर की लड़ाई- भिड़ाई में प्राणी इहलोक- परलोक के बीच का भेद भी भुला बैठते हैं।अभी यहाँ हैं,तो तुरंत ऊपर पहुँच जाते हैं।पहुँचा भी दिए जाते हैं।' प्रोफेसर  पांडेय ने अपना लंबा कथन समाप्त किया। मंगल और झगरू उनका मुँहदेखते रह…

Continue

Added by Manan Kumar singh on October 3, 2022 at 8:03pm — 4 Comments

असली - नकली. . . .

असली -नकली . . . .

सोच समझ कर पुष्प पर, अलि होना आसक्त ।

नकली इस मकरंद पर  , प्रेम न करना व्यक्त ।।

गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।

सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।

गुलशन सूने से लगें, भौंरे लगें उदास ।

नकली फूलों से भला, कब बुझती है प्यास ।।

मरीचिका सी जिन्दगी, यहाँ प्यास ही प्यास ।

पतझड़ के परिधान में, मुस्काता मधुमास ।।

अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।

नकली फूलों का नहीं, मुरझाता संसार…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 2, 2022 at 10:01pm — 6 Comments

आजकल(लघुकथा)

‘मीलॉर्ड! इसने मुझे हमेशा गलत ढ़ंग से छुआ है,मेरी रजा के खिलाफ भी।’

‘और?’

‘मुझे नींद से भी जगाता रहा है।’

‘कब से?’

‘शुरू से ही।’

‘फिर भी?’

‘तबसे जब मैं कली हुआ करता था।’ फूल ने अपनी वेदना का इजहार किया।

जज ने अपने कोट में लगे फूल की तरफ देखा।वह अपनी जगह पर कायम था,शांतिपूर्वक।जज को तसल्ली हुई।

‘फिर आज क्या हुआ?’

‘आज तो कुछ नहीं हुआ,मीलॉर्ड! पर अब भी इसकी आदतें तब्दील नहीं हुईं।यह आज भी कलियों को परेशान करता है।फूलों की नींद हराम…

Continue

Added by Manan Kumar singh on October 1, 2022 at 5:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल नूर की- दर्द है तो कभी दवा है ये



दर्द है तो कभी दवा है ये,

इश्क़ है या कि मोजज़ा है ये.

.

जो बिख़रने का सिलसिला है ये

ख़ुशबू होने ही की सज़ा है ये.

.

हम जो रोते हैं कुफ़्र होता है

मज़हब-ए-इश्क़ में मना है ये.

.

अपनी ताक़त को वो समझता है  

हुस्न के साथ मसअला है ये.

.

ख़त भला तेरा मैं जलाऊँगा?

आँसुओं से भभक गया  है ये.

.

हम तो फिरऔन इसको कहते हैं

ये समझता रहे ख़ुदा है ये. 

.

ग़म यहीं है यहीं कहीं होगा

तेरे देखे से छुप…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on September 29, 2022 at 11:30am — 17 Comments

ग़ज़ल

 22  22  22  22  22  2

 

मोद-सुमन  जो नित्य हृदय के पास रहे

सौरभ  का  भी  जीवन  में  आवास  रहे

 

मार्ग भले  ही छोटा  या  फिर  लम्बा हो

पैरों पर  प्रति  पल  अपने  विश्वास  रहे…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on September 28, 2022 at 7:30pm — 12 Comments

ज़िंदा हूँ अब तक मरा नहीं

ज़िंदा हूँ अब तक मरा नहीं, चिता पर अब तक चढ़ा नहीं

साँसे जब तक मेरी चलती है, तब तक जड़ मैं हुआ नहीं

जो कहते थे हम रोएंगे, कब तक मेरे ग़म को ढोएंगे?

पहले पंक्ति में खड़े है, जो कहते है कैसे सोएँगे?

 

मैं धूल नहीं उड़ जाऊंगा, धुआँ नहीं गुम हो जाऊँगा

हर दिल में मेरी पहूंच बसी, मर के भी याद मैं आऊँगा

कैसा होता है मर जाना, एक पल में सबको तरसाना

मूँह ढाके शय्या पर लेटा, मैं तकता हूँ सबका रोना

 

साँसों को रोके रक्खा है, कफन भी…

Continue

Added by AMAN SINHA on September 26, 2022 at 2:00pm — No Comments

गाड़ी निकल रही है

गीत

*

कच्चे रास्तों गडारों से,

गाड़ी निकल रही है।

*

जा रहे हैं किधर कोई,

बूझता ही नहीं।

फूट रहे हैं सर क्योंकर,…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on September 23, 2022 at 10:30am — 8 Comments

ग़ज़ल (ऐ ख़ुदा दिल को क्या हुआ है ये)

2122 - 1212 - 22/112

ऐ ख़ुदा  दिल को  क्या  हुआ  है ये

किसकी  चाहत  में खो  गया  है ये

पेट  में   तितलियाँ   सी  उड़ती  हैं

इश्क़  की  क्या  ही  इब्तिदा  है  ये

याद-ए-जानाँ  तो  है दवा  है  गोया

दिल-ए-मुज़्तर  का  आसरा   है  ये

कौन  सुन  पायेगा   मेरे   दिल  की

दिल-ए-सोज़ाँ   तो   बे-सदा   है  ये…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 23, 2022 at 9:48am — 6 Comments

गीत -२

प्रेम रस का पान आओ फिर करें

सृष्टि का नव गान आओ फिर करें !

*

हम जले दावानलों से,

आँधियों से तुम बिखर।

आ गये  हैं  एक  जैसी,

भाग्य  की  बाँधी डगर।।

*

भूल कर  बीते  दुखों  के दर्द को

मोहिनी मुस्कान आओ फिर करें !

*

सोच मन पर क्या न बीती,

और  घायल  मन  न  कर।।

तय करें फिर साथ मिलकर,

जिन्दगी   का  यह  सफर।।

*

नव सृजन को पथ मिला साथी मिले

नीड़  का  निर्माण  आओ  फिर करें !

*

हम रहे साथी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 23, 2022 at 5:00am — 6 Comments

‘गुनगुन करता गीत नया है’

गुनगुन करता गीत नया है,

क़दम बढ़ाता मीत नया है

*

दर्द दिखा हर ओर भरा है,

अचरज है हर पोर भरा है,

शब्दों में खामोशी जितनी,

भीतर उतना शोर भरा है।

कानों ने…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2022 at 10:30pm — 7 Comments

गीत

तुम  कह   देती   एक  बार

प्राण! मुझ को, तुमसे प्यार।।

*

मिट जाती जन्मों की प्यास

छा   जाता  मन  में  उजास।

खो  जाते   सकल   संत्रास

पूरित  होती  स्वर्णिम आस।।

*

पीड़ा  हो  जाती तार - तार

तुम   कह   देती  एक  बार

प्राण! मुझ को, तुमसे प्यार।।

*

पोंछ देती तुम नयन गीले

पड़ जाते सब आबंध ढीले।

हो जोते हरित, सब पर्ण पीले

मृत्यु कहती , जा और जी ले।।

*

मन  से   लेती   जो  पुकार

तुम   कह   देती  एक …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 22, 2022 at 8:30pm — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
29 minutes ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service