For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत

*

कच्चे रास्तों गडारों से,

गाड़ी निकल रही है।

*

जा रहे हैं किधर कोई,

बूझता ही नहीं।

फूट रहे हैं सर क्योंकर,

सूझता ही नहीं।  

*

अनसुने नारों किनारों से,

गाड़ी निकल रही है।

*

होने लगी सौहार्द की,

मरघटों में सभा।

बची-खुची रिश्तों में की,

खोजते हैं वफ़ा।

*

सूखते टूटे अवारों से,

गाड़ी निकल रही है।

*

स्वप्न जैसे आशियाने,

टूटते घर कई ।

बाहर किताबों से निकल,

भटकते सर कई।   

*

बचते-बचाते इशारों से,

गाड़ी निकल रही है।

#

मौलिक/अप्रकाशित.

 

Views: 336

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 12, 2022 at 6:53pm

आदरणीय ब्रजेश कुमार जी सादर, प्रस्तुत गीत रचना पर उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2022 at 8:14pm

सरस और नव प्रवाह से सम्मोहित करती हुई रचना ...हार्दिक बधाई आदरणीय

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 30, 2022 at 6:33pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, प्रस्तुत गीत रचना की सराहना केलिए आपका हार्दिक आभार.

वर्तमान दशा में " बची खुची रिश्तों में की" अगली पंक्ति " खोजते हैं वफा " से असम्बद्ध है !...........यहाँ असम्बद्धता जैसा तो प्रतीत नहीं हो रहा है किन्तु 'भी' वाला आपका सुझाव उत्तम है. सादर  

Comment by Chetan Prakash on September 30, 2022 at 10:28am

बंधुवर,  अच्छा गीत  रचा, आपने । दूसरा अन्तरा  बेहतर हो सकता था और  सार्थक  भी । 

बशर्ते  'की' को हटाकर " भी" हो जाए  ! आपने  स्वयं  'गीत ' को नवगीत  कहा  है, अत: अन्तयानुप्रास तो स्वर से ही पर्याप्त  हो जाएगा ! और र, वर्तमान  दशा में " बची खुची  रिश्तों  में की"  अगली  पंक्ति " खोजते  हैं वफा " से असम्बद्ध है ! 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 29, 2022 at 10:02am

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत गीत रचना पर उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by Samar kabeer on September 27, 2022 at 7:23am

जनाब अशोक रक्ताले जी आदाब , भुत अच्चा गीत रचा है आपने , इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 26, 2022 at 11:24pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब सादर, आपका कहना गलत नहीं है. क्योंकि यह एक नवगीत है. नवगीत की रचनाएं अक्सर कविता जैसी ही होती है.सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 26, 2022 at 6:44pm

आदरणीय अशोक रक्ताले जी आदाब, मुझे आपकी यह रचना गीत से ज़ियादा हिन्दी की ख़ूबसूरत नज़्म लगी है, बधाई स्वीकार करें। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
8 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
21 hours ago
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service