For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

March 2015 Blog Posts (229)

दफन है बहुत आग सीने में जिसके ------ग़ज़ल उमेश कटारा

122 122 122 122



बहुत हो चुकी हैं शराफत की बातें

चलो अब करें कुछ व़गाव़त की बातें

....

हसद है उन्हें अब मेरी शौहरतों से

जो करते कभी थे रियाज़त की बातें

.....

दफन है बहुत आग सीने में जिसके

वो कैसे   करेगा नज़ाकत की बातें

.....

बुजुर्गों की सेवा जरूरी बहुत है

करो सिर्फ इनकी इवादत की बातें

......

मुआफी के काबिल नहीं बेवफाई

न मुझसे करो तुम नदामत की बातें

......

जिसे जिन्दगी देके मैंने बचाया

वो करने लगा है…

Continue

Added by umesh katara on March 31, 2015 at 7:30pm — 17 Comments

खटें गदहें

शुरू है पत्‍नी सेवा दल मुझे हर दम बताती है

दिखा बेलन सुबह से शाम तक मुझको डराती है

बदन में दर्द हो उसके करो तुम तेल से मालिश

रहेगी खुश सदा तुमसे लगाओ जब उसे पालिश

सुबह पूजा करो उसकी न है अब वो चरण दासी

अगर ऐसा न कर पाये मिले भोजन तुम्‍हें बासी

बनाना रोज वो मुझका नया एक डिस सिखाती है

शुरू है पत्‍नी सेवा दल मुझे हर दम बताती है

दिखा बेलन सुबह से शाम तक मुझको डराती है

अगर उसके कभी भाई चले आये तुम्‍हारे घर

न…

Continue

Added by Akhand Gahmari on March 31, 2015 at 7:18pm — 12 Comments

रेत की दीवार वो कुछ ही पलों में ढह गया |

२१२२ / २१२२/ २१२२/ २१२
राह चलते दिल मिला फिर याद बनकर रह गया | 
ख़्वाब  जो देखा कभी वो अश्क बनकर बह गया |
रात     बीती   चांदनी  में खाब  आँखों  में  लिये…
Continue

Added by Shyam Narain Verma on March 31, 2015 at 4:38pm — 6 Comments

जो न सोचा था कभी............'जान' गोरखपुरी

२१२२ २१२२ २१२१२

जो न सोचा था कभी,वो भी किया किये

हम सनम तेरे लिये,मर-मर जिया किये

***

तेरी आँखों से पी के आई जवानियाँ

दम निकलता गो रहा पर हम पिया किये

***

आँख हरपल राह तकतीं ही रही सनम..

फर्श पलकों को किये,दिल को दिया किये

***

आदतन हम कुछ किसी से मांग ना सके

और हिस्से जो लगा वो भी दिया किये

***

जख्म को अपने कभी मरहम न मिल सका

गैर के जख्मों को हम तो बस सिया…

Continue

Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 4:30pm — 15 Comments

दाग दार न करे ........

दाग दार न करे ........

बहुत्  हाय हाय मचेगी रे राम सुख ! तुम देखत रहो, इहाँ - बहुत मारामारी होवेगी। ई ससुरी कुर्सी की खातिर हमका न जाने कौन कौन से पहलवानी करनी पड़ेगी। सरकार,…

Continue

Added by Sushil Sarna on March 31, 2015 at 3:30pm — 8 Comments

तरही ग़ज़ल....-महिमा श्री

1.बरसों के बाद खुद को यूँ पहचान तो गया

 सीने में दफ्न इश्क जुनूं जान तो गया

2.बीती तमाम उम्र तेरी  आरज़ू में बस

 चाहत भरा सफ़र हो ये अरमान तो गया

3.हमको कहाँ खबर थी कि दिल हार जाएगें

  छो़ड़ो चलो कि दिल तेरे कुर्बान तो गया

4.मांगा खुदा से जिसको था सजदों में बारहा

 मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

5. हमसे न हो सके थे जमाने के चोंचले

सब खुश हुए कि दौड़ से नादान तो गया

यह भी…

Continue

Added by MAHIMA SHREE on March 31, 2015 at 2:00pm — 14 Comments

आतंक - पंकज त्रिवेदी

वो ख़ूबसूरती नहीं है उनमें 

काली अंधेरी रात सी चमड़ी

जैसे अमावस की रात मुखरित

काली नदी की तरह बहाव है

उन्माद भी उनमें, आग भी 

सीसम की लकड़ी सी चमक भी

मजबूरी से कसमसाती हुई

मर नहीं पाती उनके भोगने तक 

 

ज़िंदगीभर खूबसूरती खोजती

आँखों में चकाचौंध करने वाला

सफ़ेद घोडा दौड़ता है ताकत से

चने खाता तो मानते, जिस्म खाता है

भाता है केवल रूह छोड़कर सबकुछ

 

जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर…

Continue

Added by Pankaj Trivedi on March 31, 2015 at 10:00am — 16 Comments

फाइनल कट्

अस्थियाँ चटकीं थीं तेरी कलाई की,
मुझसे हाँथ मिलाते हुए.

इसे समझी थी तुम, शायद,
मेरी शरारत, और,
मैं क्या समझा था, मुझे कुछ याद नही.

और अब- जबकि उसके बाद,
तुम आज तक न मिल सकी ,
सोचता हूँ - -

अस्थियों की वो चटक,
क्या एक प्रहेलिका थी
जिसका अर्थ था-
रिश्ते का 'फाइनल कट्'.

मौलिक व अप्रकाशित

Added by shree suneel on March 30, 2015 at 11:30pm — 18 Comments

हादसा : लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

“ए बच्ची सुन,यहाँ जेल में किससे मिलने आई है !”

“जी सरकार ,अपने पिताजी से !”

“ पर तू तो भले घर की लगती है, और तेरा बाप जेल में, क्या हुआ था ?”

“साहब एक हादसा हो गया था !”

“कैसा हादसा ,कब ?

“ जी ,सब कहतें हैं मेरे पैदा होने के समय !”

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 9:52pm — 12 Comments

ग़ज़ल -नूर -मुश्किल सवाल ज़ीस्त के आसान हो गए

22 12 12 11 22 12 12

मुश्किल सवाल ज़ीस्त के आसान हो गए,

ता-हश्र हम जो कब्र के मेहमान हो गए.

.


जब से कमाई बंद हुई सब बदल गया

अपनों पे बोझ हो गए सामान हो गए.

.

मेरे ये हर्फ़ बन न सके गीत और ग़ज़ल

उनके तो वेद हो गए कुर’आन हो गए.

.

उसने बना के…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 30, 2015 at 1:50pm — 28 Comments

चांदनी रात है //// हिन्दी गजल (एक प्रयास)

   (212 212)

मुतदारिक मुरब्बा सालिम

चांदनी रात है

वाह क्या बात है I

रात का तम गया

अब धवल प्रात है I

मौन वंशी लिए

वह खड़ा तात है I

पुष्प के बाण से

काम का घात है I

राग-अनुराग की

दिव्य बरसात है I

कामना है मधुर

भाव अवदात है I

नन्द का लाडला

नेह  निष्णात  है I

आपगा तीर पर

राधिका स्नात है I

नेह…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 30, 2015 at 1:37pm — 29 Comments

ग़ज़ल :- उजाला काटने को दौड़ता है |

बह्र :-फ़ऊलुन फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन



दिवाना पन नहीं तो और क्या है

उजाला काटने को दौड़ता है



यही छोटा सा घर दुनिया है मेरी

इसी का नाम जन्नत रख दिया है



मैं भूका हूँ मुझे रोटी खिला दो

कोई साइल गली में चीख़ता है



मैं सच्चाई के पैरों पर खड़ा हूँ

मुक़ाबिल झूट के सर पर खड़ा है



सभंल कर ए दिल-ए-नादाँ सभंल कर

तू किन ऊंचाईयों को छू रहा है



वहीं से रोशनी फूटी है यारो

जहाँ मेरा सितारा डूबता है



"समर" दिल आपने तोड़ा… Continue

Added by Samar kabeer on March 30, 2015 at 12:14pm — 32 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल-- कई पत्थर उछाले हैं....(मिथिलेश वामनकर)

1222---1222---1222---1222

 

सभी खामोश बैठे हैं, सदा पर आज ताले हैं

हमारी बात के सबने गलत मतलब निकाले हैं  

 

उजड़ते शह्र का मंजर न देखें सुर्ख रू साहिब…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 10:00pm — 22 Comments

गलत करने का हक़ -- डा० विजय शंकर

सही होने ,

सही कहने ,

सही करने का

अधिकार किसको चाहिए ॥

किसी को थोड़ा ,

किसी को ज्यादा ,

गलत कर लेने का

हक़ सबको चाहिए ॥

किसी-किसी को तो

गुनाह करने का अख्तियार ,

भी बेइंतिहा चाहिए ॥



दुनियाँ को अच्छा होना चाहिए ।

हमारे गुनाहों पे पर्दा होना चाहिए ।

हमारे गलत कामों पर चुप,

निगाह नीची , और चर्चा पर

कठोर प्रतिबंध होना चाहिए ।

दुनियाँ में कुछ तो

शर्म-औ-हया होनी चाहिए ।

हम हैं तो ये जहांन है, ज़माना… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on March 29, 2015 at 4:54pm — 20 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
हैरत नहीं अगर कोई नाकाम हो गया- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

जो होना था फ़रेब का अंजाम हो गया

इक मुह्तरम जहान में बदनाम हो गया

 

आफ़ाक़ के सफर में नहीं मिलती मंज़िलें

हैरत नहीं अगर कोई नाकाम हो गया

 

जलने लगे चराग सितारे चमक उठे

दीदारे ताबे हुस्न सरे शाम हो गया

 

बेदार शब तमाम जला चाँद अर्श पर

जाहिर जुनूने इश्क़ सरे बाम हो गया

 

तेरी मुहब्बतों से मुनव्वर किया दयार

आलम फ़रोज़ शम्स को आराम हो गया

 

मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on March 29, 2015 at 8:30am — 13 Comments

ग़ज़ल -नूर -मेरे यार तराज़ू निकले.

22/22/22/22 (सभी संभव कॉम्बीनेशंस)



यादो के जब पहलू निकले

जंगल जंगल आहू निकले.     आहू-हिरण

.

काजल रात घटाएँ गेसू

उसके काले जादू निकले.

.

जज़्बातों को रोक रखा था

देख तुझे, बे-काबू निकले.

.

चाँद मेरी पलकों से फिसला   

आँखों से जब आँसू निकले.

.

तेरे ग़म में जब भी डूबा, 

मयखानों के टापू निकले. 

.

भीग गया धरती का आँचल  

अब मिट्टी से ख़ुशबू…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2015 at 8:30am — 22 Comments

रघुनाथ ..ग़ज़ल 2122—1122—1122—22

2122—1122—1122—22

रूठ मत जाना कभी दीन दयाला मुझसे

रखना रघुनाथ हमेशा यही नाता मुझसे

 

हर मनोरथ हुआ है सिद्ध कृपा से तेरी

तू न होता तो हर इक काम बिगड़ता मुझसे

 

नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर

इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे

 

जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव

भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे

 

एक विश्वास तुम्हारा है मुझे रघुनंदन

दूर जाना न कोई करके बहाना मुझसे

 

जानकी नाथ…

Continue

Added by khursheed khairadi on March 28, 2015 at 11:16pm — 9 Comments

पागल

 कहें भी तो कहें किससे जला दिल वो दिखाता है

मिला कर जाम में आँसू मुझे हरदम पिलाता है

मिटाने को अगर तुम गम चले हो जाम पीने तो

न पीना तुम कभी इसको बहुत ये दिल जलाता है

न मैखाना कभी देखे समझ लो कुछ न देखे तुम

निराली है अदा इसकी गज़ल गूगॉं सुनाता है

बड़ी बेकार दुनिया है नहीं है प्‍यार अब इसमें

बिना मतलब यहाँ कोई न हाथो को बढ़ाता है

न रखनी है मुझे यारी कभी धीरज से मानव अब

जिसे मैं प्‍यार करता हूँ उसे…

Continue

Added by Akhand Gahmari on March 28, 2015 at 7:23pm — 5 Comments

आँखे : लघुकथा

“कार से एक लड़की उतरी और बस स्टैंड की तरफ बढ़ी, एक बुजुर्ग से बोली, अंकल ये ‘मौर्या शेरेटन’ जाने का रास्ता किधर से है, बेटा आगे से जाकर दायें हाथ पर मुड़ जाना, जी शुक्रिया, तभी उसके कानों में एक मधुर संगीत गूँज उठा, “ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आँखे इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी....! “

“उसने पलट कर देखा,  रंगीन चश्मा लगाए हुए एक लड़का गा रहा था, बस देखते ही लड़की का पारा गर्म हो गया और तभी उसने उसे एक झापड़ दे मारा, ये ले!”

“बस इतना देखते ही वहाँ खड़े लोग उस पर टूट पड़े और चप्पल, लात,…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on March 28, 2015 at 3:12pm — 8 Comments

जीवन का अधिकार

निशा की गहराती निद्रा में ,

गूँजा था जब ‘ माँ ‘ का स्वर |

चहुँ दिशाओं में देखा मैंने ,

न पाया कोई , अंदर बाहर न अम्बर ||

बोली वो पुन: आर्द्र स्वर में ,

माँ मैं तेरी अजन्मी बेटी |

तेरे अंतर्मन की व्यथित दशा ,

पलभर को भी न सोने देती ||

तेरे अश्रु की अविश्रांत धारा ,

जता रही घटना सारी |

कल होगा मेरा दुर्दांत अंत ,

भ्रूण हत्या की है तैयारी ||

जीवन के अंकुर…

Continue

Added by ANJU MISHRA on March 28, 2015 at 12:35pm — 7 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन अभिवादन व हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी. सादर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
" आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"  कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता होता  ऐसा कमाल  होली का...वाह.. इस सुन्दर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली.. हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली..हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"सुन्दर होली गीत के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। बहुत अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, उत्तम दोहावली रच दी है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service