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 बहुत हो चुकी हैं शराफत की बातें
 चलो अब करें कुछ व़गाव़त की बातें
 ....
 हसद है उन्हें अब मेरी शौहरतों से
 जो करते कभी थे रियाज़त की बातें
 .....
 दफन है बहुत आग सीने में जिसके
 वो कैसे   करेगा नज़ाकत की बातें
 .....
 बुजुर्गों की सेवा जरूरी बहुत है
 करो सिर्फ इनकी इवादत की बातें
 ......
 मुआफी के काबिल नहीं बेवफाई
 न मुझसे करो तुम नदामत की बातें
 ......
 जिसे जिन्दगी देके मैंने बचाया
 वो करने लगा है खिलाफत की बातें
 
 रियाजत --समर्पण
 हसद-जलन
 नदामत--पश्चाताप
 अदावत -दुश्मनी
 
 उमेश कटारा
 मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी सादर आभार
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर आभार
बहुत खूब , आदरणीय कटारा भाई जी , हार्दिक बधाइयाँ ।
जिसे जिन्दगी देके मैंने बचाया
 वो करने लगा है खिलाफत की बातें
बहुत खूब आ०उमेश जी!बधाईयां!
आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी शुक्रिया
आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी शुक्रिया
आदरणीय बढ़िया ग़ज़ल हुई है बधाई
दफन है बहुत आग सीने में जिसके
वो कैसे   करेगा नज़ाकत की बातें
आदरणीय उमेश जी सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई.
आदरणीय pratibha tripathi जी शुक्रिया
आदरणीय vandana जी शुक्रिया
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