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आतंक - पंकज त्रिवेदी

वो ख़ूबसूरती नहीं है उनमें 

काली अंधेरी रात सी चमड़ी

जैसे अमावस की रात मुखरित

काली नदी की तरह बहाव है

उन्माद भी उनमें, आग भी 

सीसम की लकड़ी सी चमक भी

मजबूरी से कसमसाती हुई

मर नहीं पाती उनके भोगने तक 

 

ज़िंदगीभर खूबसूरती खोजती

आँखों में चकाचौंध करने वाला

सफ़ेद घोडा दौड़ता है ताकत से

चने खाता तो मानते, जिस्म खाता है

भाता है केवल रूह छोड़कर सबकुछ

 

जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर खड़े

लम्बे-ऊंचे डरावने साये पैदा करते हुए

उन लम्बे पेड़ों के बीच से निकलती है

किरणे जो ले आती है आतंकीयो की

मन:स्थिति के उजाले को अलगाव सी

 

बच्चों की मासूमियत पर सवार होकर

महिलाओं की जाँघों से निकलती आह को

रूंधती हुई इंसानियत निचौड़कर बहती है

लाल रंग की नदियाँ रेगिस्तान की तरस

मजहब के ढिंढोरे पीट-पीटकर हरा रही है

सत्ता, महासत्ताओं के गुमान को... !

 * * *

31-March-2015 (मौलिक एवं अप्रकाशित)     

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Comment

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Comment by Pankaj Trivedi on April 2, 2015 at 12:37pm

प्रिय सौरभ जी, 

आपके व्यापक विचारों से मेरी रचना को पंख लग गए... कुछ घटनाएँ दिल को झकझोर देती है... यही हुआ मेरे साथ भी...

आपका ह्रदय से आभारी हूँ  

Comment by Pankaj Trivedi on April 2, 2015 at 12:35pm

मित्र श्री मिथिलेश वामनकर जी,  आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:28am

काफी उच्चस्तरीय कविता और मर्मान्तक पीड़ा को उभारती रचना आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 2, 2015 at 12:02am

राष्ट्रवाद की क्लिष्टतम व्याख्या भी कश्मीर की घाटी में चल रहे विद्रूपकारी प्रयासों को संतुष्ट नहीं कर सकती. आतंक के पालकों के दैहिक बिम्बों को जिस गहराई से महसूसा गया है वे एकांगी मनोदशा को गहरे उभारती है. सामाजिकता का पतन, सम्बन्धों का उथलापन रचना के अंतिम भाग में खुलकर स्थान पाता हुआ है.
इस रचनाके लिए हृदय से बधाई आ. पंकजभाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:39pm

आदरणीय पंकज जी इस सशक्त रचना पर हार्दिक बधाई निवेदित है, सादर 

Comment by Pankaj Trivedi on April 1, 2015 at 9:07am

श्री जितेन्द्र जी, आपका धन्यवाद

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 1, 2015 at 8:55am

सुंदर मार्मिक प्रस्तुति पर बधाई ,आदरणीय पंकज जी.

Comment by Pankaj Trivedi on April 1, 2015 at 7:03am

Shyam Mathpal ji,  Ram Ashery,  Sushil Sama ji, Dr. Vijai Shanker ji, Hari Prakash Dube ji, 

आप सभी सम्माननीय दोस्तों का मैं आभारी हूँ 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 31, 2015 at 11:29pm

आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी, इस सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना पर हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 31, 2015 at 9:28pm
" पीटकर हरा रही है
सत्ता, महासत्ताओं के गुमान को.. "
आतंकी अंधेर का रौशन चित्रण , बहुत खूब प्रस्तुति, बधाई , आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी , सादर।

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