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जल बहता है -
झरनें बनकर, लिए अपनी शुद्धता का बहाव
वन की गहराई को, पेड़, पौधों, बेलों की झूलन को लिए
जानी-अनजानी जड़ीबूटियों के चमत्कारों से समृद्ध होकर
निर्मलता में तैरते पत्थरों को कोमल स्पर्श से शालिग्राम बनाता हुआ
धरती का अमृत बनकर वनवासियों का, प्राणियों का विराम !
जल बहता है -
नदी बनकर, नालों का बोझ उठाती, कूड़ा घसीटती
मंद गति से बहती, अपने निज रंग पर चढी कालिमा को लिए
भटकती है गाँव-शहरों की सरहदों से छिल जाते अपने अस्तित्व को लेकर…
Posted on April 2, 2015 at 12:30pm — 15 Comments
वो ख़ूबसूरती नहीं है उनमें
काली अंधेरी रात सी चमड़ी
जैसे अमावस की रात मुखरित
काली नदी की तरह बहाव है
उन्माद भी उनमें, आग भी
सीसम की लकड़ी सी चमक भी
मजबूरी से कसमसाती हुई
मर नहीं पाती उनके भोगने तक
ज़िंदगीभर खूबसूरती खोजती
आँखों में चकाचौंध करने वाला
सफ़ेद घोडा दौड़ता है ताकत से
चने खाता तो मानते, जिस्म खाता है
भाता है केवल रूह छोड़कर सबकुछ
जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर…
ContinuePosted on March 31, 2015 at 10:00am — 16 Comments
आज मैंने छूट्टी दे दी है -
अनगिनत दुखों को, बेचैनियों को
ज़िंदगी के अभावों और अनुभवों को
सगे-संबंधी के रिश्तों की गठरी को
अपने नाम - शोहरत के बोज को भी
जगमगाहट भरी भौतिकता की लाईट बंद
अपने नियमों - आग्रहों से दु:खी होनेवाले को
अपने साथी-संगाथियों से हुई अनबन…
Posted on June 27, 2014 at 9:00pm — 10 Comments
प्रायश्चित करना चाहिए
गुरु द्रोण को...
जिन्होंने अपने ज्ञान को
सीमित रखा उन महाराजा के
वंशजों के लिए और
ज्ञान से वंचित रहने लगा
वो वनवासी !
जिसने सिर्फ मिट्टी के
गुरु को स्थापित किया
और धनुर्विद्या में
महारत हांसिल की |
* * *
(मौलिक व अप्रकाशित)
Posted on June 27, 2014 at 9:00pm — 8 Comments
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Comment Wall (25 comments)
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पंकज जी मित्र बनने के लिए धन्यवाद
सादर प्रणाम स्वागतम आदरणीय पंकज भईया...
आपने मुझे मित्रता योग्य समझा इसके लिए आपका आभार!
Aap ka sanidhy yahan bhi uplabhdh hone par ateev harsh hua hai .hardik swagat .
आपसे मित्रता पर हार्दिक स्वागत
thnx pankajji. 4 adding me in this platform.....plz guide how to post my writing work here & also about rules & regulations etc.
आपकी रचना को ओ बी ओ द्वारा माह की श्रेष्ठ रचना चुने जाने पर हार्दिक बधाई आदरणीय श्री पंकज जी !!
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