For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन का अधिकार

निशा की गहराती निद्रा में ,

गूँजा था जब ‘ माँ ‘ का स्वर |

चहुँ दिशाओं में देखा मैंने ,

न पाया कोई , अंदर बाहर न अम्बर ||

बोली वो पुन: आर्द्र स्वर में ,

माँ मैं तेरी अजन्मी बेटी |

तेरे अंतर्मन की व्यथित दशा ,

पलभर को भी न सोने देती ||

तेरे अश्रु की अविश्रांत धारा ,

जता रही घटना सारी |

कल होगा मेरा दुर्दांत अंत ,

भ्रूण हत्या की है तैयारी ||

जीवन के अंकुर का वृष्टिपात किया जिसने ,

आज वही उस का वज्रपात करने आया है |

पुत्र की लालसा का थाल सजाकर ,

मानवता की बली चढ़ाने आया है  ||

माँ क्यों न समझाया तुमने ,

इस निर्मम जग को |

कि, मैं तुम्हारा ही अंश हूँ ,

तुम्हारा ही वंश हूँ ,

अपनी प्रतिभा का परचम सदा लहराया है ,

इसीलिए , मैं रंच भर भी न रंज हूँ ||

सिसकियों बीच निकली ‘माँ ’ की करुण पुकार ,

मेरी बेटी आ मैं तुझको कर लूँ भरपूर दुलार |

न लगा अभियोग पिता पर ,

उनका भी क्या दोष है |

बेटी होना इस जग में ,

स्वयं में ही एक शोक है ||

बेटी फ़िक्र एक नहीं ,

तू तो चिंता की गठरी है |

सुबह – शाम  उसके सिवा ,

न कोई किसी का प्रहरी है |

वहशी गिद्धों की दुनिया में ,

बेटी सुरक्षित है कहाँ ?

दरिंदगी के दलदल से ,

मुक्त हो पाती वो कहाँ ?

पग – पग पर बेटी चिंता तेरी ,

चैन न लेने देती है |

फिर क्यों तू विवश तात को ,

दोषारोपित करती है |

बोली बेटी , मेरी प्यारी माँ ,

कितनी भोली हो तुम |

चंद घटनाओं की पीड़ा से ,

क्योंकर पीड़ित हो तुम ||

माँ , क्यों तुम भूल गईं ,

नारी की विपुल शक्ति को |

सबको जीवन देने वाली ,

आदिशक्ति की भक्ति को ||

माता हूँ मैं , जन्मभूमि हूँ मैं ,

दुर्गा हूँ , सिंह की सवारी हूँ मैं |

कल्पना , सानिया और मैरी कॉम ,

नर पर भी भारी हूँ मैं ||

माँ , स्वयं में विश्वास जगाओ ,

मेरे जीवन का साज सजाओ |

मुझको दे दो तुम पूरा आकार ,

मैं करूँगी तुम्हारा सपना साकार ||

मेरी तुमसे बस यही पुकार ,

मत करना मेरा तिरस्कार |

कर लो मुझको भी भरपूर दुलार ,

दे दो जीवन जीने का अधिकार ||  

मौलिक व अप्रकाशित  रचना 

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ANJU MISHRA on December 17, 2018 at 10:16pm

आप सभी के प्रेरणादायी वचनों हेतु हार्दिक आभार .....| विजी शंकर जी नाराज़ होने जैसी कोई बात ही नहीं है | आलोचनात्मक टिप्पणी सदैव ही प्रेरक का काम करती है | 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 7:56pm

आदरणीया अंजू  मिश्र जी , बहुत बहुत  बधाई  आपको  इस  सुंदर प्रस्तुति पर  ! शुभकामनायें

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 30, 2015 at 6:51am
आदरणीय सुश्री अंजू मिश्रा जी , बहुत सुन्दर रचना , बधाई , पर अन्यथा न लें यह जग की समस्या नही है। अत : ये पंक्तियाँ , " बेटी होना इस जग में ,
स्वयं में ही एक शोक है || " किंचित विचारणीय हैं। आप के सुन्दर श्रम साध्य के लिए बहुत बहुत बधाई। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 11:42pm

आदरणीया अंजू जी बहुत भावपूर्ण और करूण किन्तु प्रेरणास्पद रचना की प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनायें निवेदित है. बहुत अच्छी पंक्तियाँ है-

माँ , स्वयं में विश्वास जगाओ ,

मेरे जीवन का साज सजाओ |

मुझको दे दो तुम पूरा आकार ,

मैं करूँगी तुम्हारा सपना साकार ||

मेरी तुमसे बस यही पुकार ,

मत करना मेरा तिरस्कार |

कर लो मुझको भी भरपूर दुलार ,

दे दो जीवन जीने का अधिकार ||

Comment by ANJU MISHRA on March 29, 2015 at 9:19pm

प्रोत्साहन हेतु आभार ......

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 28, 2015 at 6:52pm

आ० अन्जू जी

बहुत भावपूर्ण रचना . एक गर्भस्थ  बेटी की पुकार . करुण ,करुण, करुण  !

Comment by Shyam Narain Verma on March 28, 2015 at 3:45pm
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक जी , मेरी रचना  में जो गलतियाँ इंगित की गईं थीं उन्हे सुधारने का प्रयास किया…"
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 178 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार.…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत रोला छंदों पर उत्साहवर्धन हेतु आपका…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय गिरिराज जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी छंदों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज जी छंदों पर उपस्थित और प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी छंदों की  प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिये हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय मयंक कुमार जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
" छंदों की प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    गाँवों का यह दृश्य, आम है बिलकुल इतना। आज  शहर  बिन भीड़, लगे है सूना…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service