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क़लम, डायरी और तू...

क़लम, डायरी और तू... 

 

आज सोचा की तेरी बड़ाई लिखूं

कुछ तेरी ही बाते कुछ तो सच्चाई लिखूं

कुछ ऐसा लिखूं जो मेरी कल्पना ना हो

चाँद, तारे, बादलों से तेरी तुलना ना हो

कुछ शब्द है मन में मेरे, कुछ पंक्तियाँ सजाई है

तुझपे कविता लिखने को मैंने डायरी उठायी है....…

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Added by Ranveer Pratap Singh on August 12, 2012 at 3:28pm — No Comments

एक कवि बीबी से अकड़ा

एक ‘कवि’ जब खिन्न हुआ तो  बीबी से ‘वो’ अकड़ा

कमर कसा ‘बीबी’ ने भी शुरू हुआ था झगडा

कितनी मेहनत मै करता हूँ दिन भर ‘चौपाये’ सा 

करूँ  कमाई सुनूं बॉस की रोता-गाता-आता

सब्जी का थैला लटकाए आटे में रंग आता…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 12, 2012 at 7:15am — 4 Comments

तीन 'घनाक्षरी'

(१) बच्चों के प्रति

दिल से प्रणाम करो, पढ़-लिख नाम करो, 

हाथ आया काम करो, यही देश प्रेम है,

अपना भले को मानो, दुष्ट ही पराया जानो,

सबका भला ही ठानो, यही देश प्रेम है |

सदा सद-बुद्धि धरो, बुद्धि से ही युद्ध…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on August 12, 2012 at 1:30am — 11 Comments

दुनिया

दुनिया

चाँद धरा पे लाना है

सूरज को पिघलाना है

सागर को भर अजुरी में

बादल को बरसाना है

है अंत जहां भी आसमान का

उससे ऊपर…

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Added by Ranveer Pratap Singh on August 12, 2012 at 12:24am — No Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
स्मृतियों की इक बगिया है....

 

काल चक्र के जीवन प्रांगण में स्मृतियों की इक बगिया है....

 

नेह तृप्त कुसुमित सुरभित सी 

बेसुध करती मादकता में,

कँवल कली के मध्य बिंधा सा

एक हठीला सा भँवरा है…

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Added by Dr.Prachi Singh on August 11, 2012 at 11:00pm — 5 Comments

होने दो.........!!!

आँखों से अश्कों को सूखने ना दीजिएगा इसे और गिरने दो
इस दर्द को और न रोको इसे और होने दो !
आखिरी मोड़ मेरे इंतज़ार में बाहें फैलाये है
उस सुकून भरी काली रात को अब आने भी दो !!

याद कभी मरेगी नहीं भले हो जाओ कितना भी दूर
ढूंढने दो जरा पता उनका थक के जब ना हो जाऊं चूर
है तुमसे बस इतनी ही दुवा करना मेरे लिए
की अपनी याद़ों को मेरे दिल से कभी जाने ना दो !!

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on August 11, 2012 at 4:39pm — 8 Comments

कटाक्ष.....

कुछ नए खेल ओलम्पिक के लिये........

-----------------------------------------

करोडो के देश में चंद लोग पदक पा कर देश का नम ऊँचा उठा रहें हैं....ये बात हजम नहीं हो रही है. उसमे से भी आधे वो लोग है जिन्हें किस्मत से भ्रूण-हत्या से निजात मिली और आज हम उनके गौरव के जुलूस में नारे लगा रहें हैं. हमारा दोगलापन भी हमारे-अपने तरह का ही है उसका कोई सानी नहीं......... हम विषय से भटक रहे हैं...सो ओलम्पिक में हमारे पदक जीतने लायक खेल ही शामिल नहीं किये जाते. पश्चिम देशों की मिलीभगत ने हॉकी तक को…

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Added by AVINASH S BAGDE on August 11, 2012 at 1:30pm — 10 Comments

चन्दा और बिजली (हास्य) // शुभ्रांशु पाण्डेय

वो कब चली गयी पता ही नहीं चला. हुँह, वो जाती है तो जाया करे. हमारे पास भी वैकल्पिक व्यवस्था है. वैसे भी…

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Added by Shubhranshu Pandey on August 11, 2012 at 12:00pm — 18 Comments

"मोर्निंग वाक्"

"मोर्निंग वाक्"



मंद मंद रौशनी

शीतल पवन के झोंके

पंछियों की चहक

कलरव है या संगीत

वसुधा का अनूठा गीत

नदियों झीलों पोखरों में

बिखरा पड़ा है स्वर्ण

कमल के…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 11, 2012 at 11:47am — 2 Comments

उद्वेग

लिख डाली थी प्रेम कहानी कभी बड़े अरमानों से.

नहीं क्लेश किंचित था मुझको विस्फोटी सामानों से.

देश व्यथित हो गया आज जब अपनों औ बेगानों से.

टीस उठी तो कलम उठाई निकले तीर कमानों से..



मानवता का ह्रास हो रहा बिका हुश्न बाजारों में.

कर्णधार जो बनकर आये लिप्त हुए व्यभिचारों में.

अरे भान करवा दो इनको डर उपजे गद्दारों में.

अभी चमक बाकी है यारों भारत की तलवारों में..



छले गये हैं बहुत अभी तक अब न कभी छलने देंगें.

जाति-पांति के भेदभाव में देश नहीं जलने…

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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on August 11, 2012 at 11:00am — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
हमारे बुजुर्ग

बुजुर्गों के पाँव तले जन्नत का आभास होता है 

सभी रिश्तों में उनसे रिश्ता बहुत खास होता है 

जिस घर में मात कौशल्या दशरथ तात नहीं होते

वो  अपना घर नहीं होता वहां वनवास होता…

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Added by rajesh kumari on August 11, 2012 at 10:46am — 9 Comments

देशगीत (स्वतंत्रता दिवस पर विशेष)

जो कह गए शहीद, चलो उसको दुहराएँ |

आजादी का पर्व, आओ मिलकर मनाएँ ||

है दिन जिसको वीर, जीत कर के लाए थे,

चट्टानों को चीर, मौत से टकराए थे |

कर लें उनको याद, जिन्होंने शीश कटाए,

आजादी का पर्व, आओ मिलकर मनाएँ ||…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 11, 2012 at 8:21am — 8 Comments

श्रीकृष्ण आराधना

जय श्रीकृष्ण देवकीनंदन | हूँ कर जोड़े, करता वंदन ||

दुख-विपदा से आप निवारो | मेरे बिगड़े काज सँवारो||

भगवन जग है तेरी माया | कण-कण तेरा रूप समाया ||

जगत नियंता, हे करुणाकर | तेरी ज्योति चंदा-दिवाकर ||

देवराज आरती उतारें | नारद जय-जयकार उचारें ||…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 10, 2012 at 6:45pm — 12 Comments

मेरी सखी

मेरी सखी

कभी चंचल है, कभी है गंभीर

कभी हवा सी है, कभी जैसे नीर 

कभी मोती जैसे खानेके वो

कभी चन्दन जैसे महके वो

कभी…

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Added by Ranveer Pratap Singh on August 10, 2012 at 1:20pm — 7 Comments

"श्री कृष्ण को समर्पित कुछ दोहे"

सुध-बुध सारी भूल गयी, भूली जान-अजान,

कान्हा ने जब छेड़ दी, मधुर-मुरली की तान.



मुख पर छाए लालिमा, खिले अधर मुस्कान,

कान्हां जी को कैसा लागे राधा-राधा नाम.



जिसके हरी हैं सारथि, निश्चय उसकी जीत,

जिस मन हरी बसें, उस मन प्रीत ही प्रीत.



लाज बचाई आपने, सुन अबला मन की पीर,

अबला अब सबला भयी , छोटो है गयो चीर.



दरस तुमरे पाने को, जुग-जुग जाते बीत,

भाग बढे सुदामा के, जो भये तुम्हारे मीत.



हर युग अवतार लिए, खेले क्या-क्या दांव,…

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Added by AjAy Kumar Bohat on August 10, 2012 at 8:30am — 8 Comments

कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ

कान्हा कृष्णा मुरली मनोहर आओ प्यारे आओ

व्रत ले शुभ सब -नैना तरसें और नहीं तरसाओ

जाल –जंजाल- काल सब काटे बन्दी  गृह में आओ…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 10, 2012 at 8:00am — 10 Comments

तिनका तिनका ज़िन्दगी

तिनका तिनका ज़िन्दगी
 
बिखर गए पन्ने, मेरी ज़िन्दगी की किताब से 
तिनका तिनका ज़िन्दगी, जी रहा हूँ हिसाब से…
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Added by Ranveer Pratap Singh on August 9, 2012 at 1:30pm — 2 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कविता

 कैसे लिखी जाती है

कविता मुझे पता नहीं 
बस भावनाओं के
 कुछ बादल जन्म लेते हैं
 दिल की सतह पर 
और वाष्पित होकर  
मस्तिष्क में पंहुच कर 
उमड़ पड़ते हैं 
और बूँद बूँद बरसते 
हैं शब्द बनकर ,घुल जाते हैं 
मेरी कलम की स्याही में 
और उतर आते हैं 
किसी सपाट पन्ने 
पर कविता बनकर
******

Added by rajesh kumari on August 9, 2012 at 12:09pm — 8 Comments

दिल में मेरे कैद कैसे हो गए कान्हा

तुम हमारे बस हमारे हो गए कान्हा

इश्क वाले तुख्म दिल में बो गए कान्हा



तुम जिसे रखने को 'पा' भी कम पड़ी दुनिया

दिल में मेरे कैद कैसे हो गए कान्हा



याद तुझको जो कभी शैतान भी कर ले

पाप उस शैतान के सब धो गए कान्हा



जब तुम्हारे…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 9, 2012 at 12:00pm — 3 Comments

गिरगिट ( लघु कथा )



        चतुर चंद ने मोहल्ले के चबूतरे पर बैठकर प्रवचन देना आरंभ कर दिया था. वह गंभीरता का ढोंग धारण करते हुए बोले, “भक्त जनो! मानव के भीतर भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों का वास है.” …



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Added by SUMIT PRATAP SINGH on August 9, 2012 at 12:00pm — 2 Comments

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